जब भी मुझको याद करोगे

जब भी मुझको याद करोगे

(मुखड़ा)

जब भी मुझको याद करोगे,
जब भी मुझको याद करोगे,
जब भी मुझको याद करोगे — मैं आऊँगा।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं,
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(अंतरा 1)

ध्यान लगाओ, हाँ ध्यान लगाओ,
मुझे सामने ही पाओगे।
नज़र से कहीं दूर तुम जा न पाओगे।
अलख जगाओ, ज्योत जलाओ,
अलख जगाओ, ज्योत जलाओ,
अलख जगाओ, ज्योत जलाओ — मैं दिखूँगा।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(अंतरा 2)

मैं भक्तों से —
हाँ मैं भक्तों से, नहीं बिछड़कर रह सकता हूँ।
भक्तों का दुःख-दर्द ज़रा भी सह सकता हूँ।
भीतर के पट खोल रे बंदे,
भीतर के पट खोल रे बंदे,
भीतर के पट खोल — तार से तार मिलाओ।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(अंतरा 3)

शिरडी से जो —
ओ शिरडी से जो सच्चे दिल से प्यार करेगा,
भवसागर की लहरों में वो नहीं बहेगा।
यहाँ वहाँ हर थल में मेरी —
हाँ, यहाँ वहाँ हर थल में मेरी,
यहाँ वहाँ हर थल में मेरी खुशबू फैली।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(अंतरा 4)

मुझ पर अपना —
ओ मुझ पर अपना जिसने सब कुछ किया समर्पित,
मैं भी उस पर कर देता हूँ सब कुछ अर्पित।
मुझ में और भक्त में कोई —
मुझ में और भक्त में कोई,
मुझ में और भक्त में कोई भेद नहीं है।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(पुनरावृत्ति)

जब भी मुझको याद करोगे — मैं आऊँगा।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...


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प्रभु की कृपा का वह पवित्र धाम, जहाँ उनकी उपस्थिति सदा बसी रहती है, भक्त के लिए एक ऐसी ज्योति है जो कभी बुझती नहीं। जब भक्त सच्चे मन से उनका स्मरण करता है, तब वह प्रभु को अपने सामने ही पाता है, मानो वह कभी उससे दूर थे ही नहीं। यह भक्ति का वह गहरा भाव है, जो भक्त के हृदय में एक अलख जगाता है और उसे प्रभु की कृपा की खुशबू से सराबोर कर देता है। उनकी शरण में रहने वाला भक्त भवसागर की लहरों से पार हो जाता है, क्योंकि प्रभु की कृपा हर थल, हर पल में उसकी रक्षा करती है। यह स्मरण और समर्पण ही भक्त को प्रभु के और करीब लाता है, और उसका जीवन उनकी कृपा से सदा आलोकित रहता है।

प्रभु और भक्त का रिश्ता इतना गहरा है कि उनके बीच कोई भेद नहीं रहता। जब भक्त अपने मन के पट खोलकर प्रभु को पूर्णतः समर्पित कर देता है, तब प्रभु भी उस पर अपनी सारी दया और कृपा उड़ेल देते हैं। वह भक्तों के दुख-दर्द को सहन नहीं कर सकते और सदा उनकी पुकार सुनकर उनके साथ रहते हैं। यह उनकी करुणा का वह स्वरूप है, जो भक्त को यह अनुभव कराता है कि प्रभु और वह एक ही हैं। उनकी कृपा की यह पवित्र धारा भक्त के जीवन को प्रेम और शांति से भर देती है, और उसे हर पल यह विश्वास दिलाती है कि प्रभु सदा उसके साथ हैं, उसके हृदय में बसे हुए, उसकी हर पुकार को सुनते हुए।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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