अज्ज थोड़ी जेही सानू भी पिला दियो

अज्ज थोड़ी जेही सानू भी पिला दियो


अज्ज थोड़ी जेही सानू भी पिला दियो,
नाम रस पीन वालियो।
नशा नाम दा सानू भी चढ़ा दियो,
नाम रस पीन वालियो।

नाम दी बुट्टी नू लाई जावो रगड़े,
तेर-मेर वाले सब मूक जान झगड़े।
ऐसा प्रेम दा पाठ पढ़ा दियो,
नाम रस पीन वालियो।

नाम दीवानियो, नाम वंजारियो,
मस्त अलबेले संतों-भगतो प्यारियो।
यार अपने नाल सानू भी मिला दियो,
नाम रस पीन वालियो।

ख़ाली न रह जावे अज पैमाना कोई,
मुड़ न जावे प्यासा प्रेम दीवाना कोई।
सारा महख़ाना साकी दा लूटा दियो,
नाम रस पीन वालियो।

आखदा मधुप अज पिणों नहीं हटना,
नाम दी मस्ती च झूम-झूम नचना।
ऐसी नाम खुमारी चढ़ा दियो,
नाम रस पीन वालियो।


महाकुंभ स्पेशल भजन!!भजन नाम रस पीन वालियो !! #प्रयागराज#mahakumbh2025 #madhavpremi#pryagraj#kumbh

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Shri guru Purnima mahotshav 
Presents- Madhavpremii 
Produced by :- Shri Gurudev
Video credit :- Santana dharma
Bhajan :- nam rass pin waliyo
भजन :- नाम रस पीन वालियो
स्वर :- भजन गायक माधव प्रेमी जी
लिरिक्स :- श्री केवल कृष्ण मधुप (मधुप हरि जी महाराज ) अमृतसर 
 
सतगुरु शिष्य के जीवन में अज्ञान के अंधकार को दूर करके ज्ञान के प्रकाश से भर देते हैं और उसकी आँखों को खोलकर उसे परम सत्य का दर्शन कराते हैं। उनकी कृपा से शिष्य को ज्ञान के चक्षु मिलते हैं, जिससे वह जीवन के वास्तविक उद्देश्य और परम तत्त्व को समझ पाता है। जब हम नाम रूपी औषधि को अपने जीवन में निरंतर घिसते हैं, अर्थात लगातार नाम-सिमरन में लीन होते हैं, तो 'तेरा-मेरा' जैसे भेद मिट जाते हैं। ये भेद ही हमारे भीतर अहंकार और द्वेष को जन्म देते हैं। नाम की शक्ति से यह अहंकार नष्ट होता है, और हम एक-दूसरे से जुड़ने लगते हैं, जिससे सच्चे प्रेम का संचार होता है। यह प्रेम ही हमें सभी द्वेषों से मुक्ति दिलाकर, एक समरस समाज की ओर ले जाता है।
 
आत्मा एक उत्कट प्यास से तड़पती है, वह प्यास जो सांसारिक तृष्णाओं से कहीं बढ़कर है। यह कामना है उस 'नाम रस' की, जिसे पीकर जीवन की सारी अपूर्णताएँ मिट जाएँ। यह इच्छा है कि वे धन्य आत्माएँ जो इस रस में लीन हैं, वे हमें भी अपनी एक बूँद पिला दें, ताकि हृदय में वह दिव्य मस्ती और नाम का नशा छा जाए जो हर भौतिक सुख से परे है।
 
हृदय में यह दृढ़ संकल्प है कि आज कोई भी 'प्यासा प्रेम-दीवाना' खाली न लौटे। यह कामना है कि ईश्वरीय प्रेम का महखाना इतना भरपूर हो कि हर प्यासी आत्मा तृप्त हो जाए। इस नाम की मस्ती में झूम-झूमकर नाचने और इस खुमारी को कभी न उतरने देने का अटल निश्चय है। यह पूर्ण समर्पण और ईश्वरीय प्रेम में सतत लीनता की अवस्था है, जहाँ जीवन का प्रत्येक क्षण आनंद और कृतज्ञता से भर जाता है। 
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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