श्यामा जी की इस ओढ़नी को
श्यामा जी की इस ओढ़नी को
श्यामा जी की इस ओढ़नी को,
ले जाकर हरि को दे देना।
मेरा तो पत्र यही है केवल,
लिखना-पढ़ना हम क्या जाने।।
राधा नेत्रांजलि से छलके,
आँसू हर एक धागे में।
आँसू-मिश्रित काजल देखो,
इसका मर्म कौन क्या जाने।। श्यामा जी...
रासेश्वरी के कर-कमलों की,
मेंहदी इसमें रची हुई।
केसर उरोजों की भी छाया,
यह संकेत कौन क्या जाने।। श्यामा जी...
प्रस्वेद-बिंदु प्यारी जू के,
इस ओढ़नी में घुले हुए।
मादक इसकी गंध अपार,
गोपाल सिवा कौन पहचाने।। श्यामा जी...
सारा जीवन बाँचें इसको,
पर अन्त न पाएँगे नटवर।
उत्तर इसका आँसू ही है,
देवा! तू ही इसे पहचाने।। श्यामा जी...
ले जाकर हरि को दे देना।
मेरा तो पत्र यही है केवल,
लिखना-पढ़ना हम क्या जाने।।
राधा नेत्रांजलि से छलके,
आँसू हर एक धागे में।
आँसू-मिश्रित काजल देखो,
इसका मर्म कौन क्या जाने।। श्यामा जी...
रासेश्वरी के कर-कमलों की,
मेंहदी इसमें रची हुई।
केसर उरोजों की भी छाया,
यह संकेत कौन क्या जाने।। श्यामा जी...
प्रस्वेद-बिंदु प्यारी जू के,
इस ओढ़नी में घुले हुए।
मादक इसकी गंध अपार,
गोपाल सिवा कौन पहचाने।। श्यामा जी...
सारा जीवन बाँचें इसको,
पर अन्त न पाएँगे नटवर।
उत्तर इसका आँसू ही है,
देवा! तू ही इसे पहचाने।। श्यामा जी...
उद्धव गोपी प्रसंग का बड़ा ही भावपूर्ण भजन | श्यामा जी की इस ओढ़नी को ले जाकर हरि को दे देना ।
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Author - Saroj Jangir
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