गोवर्धन गिरि ब्रजरज यमुना कण कण बोले राधा
गोवर्धन गिरि ब्रजरज यमुना कण कण बोले राधा
ब्रज भूमि में पाँव धरत ही,
तन-मन बोले — राधा राधा, राधा राधा।।
गोवर्धन गिरि, ब्रजरज, यमुना —
कण-कण बोले — राधा राधा।।
पशु, पक्षी, तरु, फूल-लताएं —
कुंज-कुंज बोले — राधा राधा।।
छाछ, दूध, दही, माखन-मटकी —
बंसी बोले — राधा राधा।।
निगम, आगम, सुर, सन्त-मुनि —
जन-गण बोले — राधा राधा।।
मधुर-मधुर रस चाख 'मधुप हरि' —
रसना बोले — राधा राधा।।
तन-मन बोले — राधा राधा, राधा राधा।।
गोवर्धन गिरि, ब्रजरज, यमुना —
कण-कण बोले — राधा राधा।।
पशु, पक्षी, तरु, फूल-लताएं —
कुंज-कुंज बोले — राधा राधा।।
छाछ, दूध, दही, माखन-मटकी —
बंसी बोले — राधा राधा।।
निगम, आगम, सुर, सन्त-मुनि —
जन-गण बोले — राधा राधा।।
मधुर-मधुर रस चाख 'मधुप हरि' —
रसना बोले — राधा राधा।।
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Author - Saroj Jangir
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