दर पर तुम्हारे आया ठुकराओ या उठा लो
दर पर तुम्हारे आया
ठुकराओ या उठा लो,
करुणा की सिंधु मालिक,
अपनी बिरद बचा लो।
मीरा या सबरी जैसा,
पाया हृदय न मैंने,
जो है दिया तुम्हारा,
लो अब इसे संभालो,
दर पर तुम्हारे आया,
ठुकराओ या उठा लो,
करुणा की सिंधु मालिक,
अपनी बिरद बचा लो।
दिन रात अपना अपना करके
बहुत ठगाया,
कोई हुआ न अपना
अपना मुझे बना लो,
दर पर तुम्हारे आया,
ठुकराओं या उठा लो,
करुणा की सिंधु मालिक,
अपनी बिरद बचा लो।
दोषी हूं मै या सच्चा,
ये खेल है तुम्हारा,
हो तुम चाहे जो चाहो में
दास हूं तुम्हारा,
दर पर तुम्हारे आया,
ठुकराओं या उठा लो,
करुणा की सिंधु मालिक,
अपनी बिरद बचा लो।
ठुकराओ या उठा लो,
करुणा की सिंधु मालिक,
अपनी बिरद बचा लो।
मीरा या सबरी जैसा,
पाया हृदय न मैंने,
जो है दिया तुम्हारा,
लो अब इसे संभालो,
दर पर तुम्हारे आया,
ठुकराओ या उठा लो,
करुणा की सिंधु मालिक,
अपनी बिरद बचा लो।
दिन रात अपना अपना करके
बहुत ठगाया,
कोई हुआ न अपना
अपना मुझे बना लो,
दर पर तुम्हारे आया,
ठुकराओं या उठा लो,
करुणा की सिंधु मालिक,
अपनी बिरद बचा लो।
दोषी हूं मै या सच्चा,
ये खेल है तुम्हारा,
हो तुम चाहे जो चाहो में
दास हूं तुम्हारा,
दर पर तुम्हारे आया,
ठुकराओं या उठा लो,
करुणा की सिंधु मालिक,
अपनी बिरद बचा लो।
ठुकराओ या उठा लो- पूज्य राजन जी। MOTIVATIONAL BHAJAN RAJAN JI ।। +919831877060, +919038822776
यह भाव उस क्षण का है जब मनुष्य अपनी सब सीमाएँ, अपनी सब चतुराइयाँ छोड़कर सच्चे शरणागत की तरह प्रभु के द्वार पर आता है। यहाँ कोई तर्क नहीं, कोई शिकायत नहीं—केवल आत्मा की थकान और समर्पण की संपूर्णता है। “ठुकराओ या उठा लो” में एक विरल विश्वास छिपा है, जहाँ निर्णय का अधिकार पूरी तरह ईश्वर को सौंप दिया गया है। साधक जानता है कि उसका आना ही बहुत है—अब बाकी सब प्रभु की दया पर निर्भर है। यही भाव ईश्वर-भक्ति का सबसे पवित्र रूप है, जहाँ अपने सुधार या उद्धार की चिंता भी प्रभु की इच्छा पर छोड़ दी जाती है।
जब व्यक्ति अपने कर्मों की उलझनों, अपने दोषों और असफलताओं के बोझ से मुक्त होकर कहता है, “करुणा की सिंधु मालिक, अपनी बिरद बचा लो,” तब वह ईश्वर को उनकी अपनी करुणा की याद दिलाता है। जैसे मीरा और शबरी ने बिना किसी प्रमाण के विश्वास किया, वैसे ही यह आत्मा अपने प्रभु की दया पर टिक जाती है। यहाँ कोई भय नहीं, केवल विनम्र निवेदन है—कि उस दिव्य परंपरा को बनाए रखो, जो हर युग में भटके जनों को अपनाती आई है। यही प्रेम का सबसे सुन्दर रूप है, जहाँ प्रार्थना आदेश नहीं बनती—वह बस एक मौन गुहार बन जाती है, और उस गुहार में ही ईश्वर अपने स्वरूप में उतर आता है।
जब व्यक्ति अपने कर्मों की उलझनों, अपने दोषों और असफलताओं के बोझ से मुक्त होकर कहता है, “करुणा की सिंधु मालिक, अपनी बिरद बचा लो,” तब वह ईश्वर को उनकी अपनी करुणा की याद दिलाता है। जैसे मीरा और शबरी ने बिना किसी प्रमाण के विश्वास किया, वैसे ही यह आत्मा अपने प्रभु की दया पर टिक जाती है। यहाँ कोई भय नहीं, केवल विनम्र निवेदन है—कि उस दिव्य परंपरा को बनाए रखो, जो हर युग में भटके जनों को अपनाती आई है। यही प्रेम का सबसे सुन्दर रूप है, जहाँ प्रार्थना आदेश नहीं बनती—वह बस एक मौन गुहार बन जाती है, और उस गुहार में ही ईश्वर अपने स्वरूप में उतर आता है।
PUJYA RAJAN JEE
।। Full HD Video ।।
।। पूज्य राजन जी के द्वारा गाया हुआ शरणागत भाव का एक अद्भुत भजन।।
।। A VERY BEAUTIFUL BHAJAN OF SHARANAGATI SUNG BY PUJYA RAJAN JEE ।।
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