हम सभी का जन्म तव प्रतिबिम्ब सा बन जाय
प्रतिबिम्ब सा बन जाय,
और अधुरी साधना,
चिर पूर्ण बस हो जाय।
बाल्य जीवन से लगाकर,
अन्त तक की दिव्य झांकी,
मूक आजीवन तपस्या,
जा सके किस भाँति आँकी,
क्षीर सिंधु अथाह विधि से,
भी न नापा जाय,
चाह है उस सिंधु की हम,
बूँद ही बन जाय।
एक भी क्षण जन्म में नही,
आपने विश्राम पाया,
रक्त के प्रत्येक कण को,
हाय पानी सा सुखाया,
आत्म आहुती दे बताया,
राष्ट्र मुक्ति उपाय,
एक चिनगारी हमें,
उस यज्ञ की छू जाय।
थे अकेले आप लेकिन,
बीज का था भाव पाया,
बो दिया निज को अमर,
वट संघ भारत में उगाया,
राष्ट्र ही क्या अखिल जग का,
आसरा हो जाय,
और उसकी हम,
टहनियाँ पत्तियाँ बन जाय।
आपके दिल की कसक हो,
वेदना जागृत हमारी,
याचि देही याचि डोला,
मन्त्र रटते हैं पुजारी,
बढ़ रहे हम आपका,
आशीष स्वग्रिक पाय,
जो सिखया आपने,
प्रत्यक्ष हम कर पाय।
साधना की पूर्ति फिर,
लव मात्र में हो जाय।
हम सभी का जन्म तव,
प्रतिबिम्ब सा बन जाय,
और अधुरी साधना,
चिर पूर्ण बस हो जाय।
हम सभी का जन्म तव प्रतिबिम्ब सा बन जाय! Deshbhakti song!
अपने जीवन को राष्ट्र और मानवता के लिए पूर्णतः समर्पित कर दिया, और जिसका प्रत्येक क्षण तप, त्याग, और आत्म-आहुती से भरा रहा। "हम सभी का जन्म तव प्रतिबिम्ब सा बन जाय" गीत एक महान राष्ट्र-निर्माता, त्यागमूर्ति और अनासक्त संत की वंदना है, जिसमें भाव है कि हम सभी के जीवन की सार्थकता तभी है जब हमारा जीवन भी उन्हीं के आदर्शों का प्रतिबिंब बने। इसमें बाल्यकाल से आजीवन तपस्या और त्याग की उस साधना का स्मरण है जो सागर-सी गहन व अथाह है—जिसे कभी मापा नहीं जा सकता, और जिसकी एक बूंद बनना भी हमारे लिए गर्व है। गीत में राष्ट्र के लिए उनके जीवन-यज्ञ, रक्त-स्वेद के बलिदान और आत्म–आहुति की प्रेरणा है, जिससे हममें भी राष्ट्रसेवा की चिनगारी प्रज्वलित हो। वे अकेले थे, लेकिन जो बीज वे बोए, उसने भारतभूमि में अमर वटवृक्ष का रूप ले लिया—हम सब उस वटवृक्ष की शाखाएँ-पत्तियाँ बनने का संकल्प लें। उनकी पीड़ा व कसक हमारी चेतना में भी जागृत हो, और हम उन्हीं की दीक्षा और साधना प्रत्यक्ष आचरण में उतार सकें, यही उनकी सच्ची साधना पूर्णता होगी। यह गीत, केवल भक्ति या स्मरण नहीं, बल्कि साधक के लिए सेवा, त्याग, आदर्श और कर्म के उच्चतम मानदंड की प्रेरणा है।
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