कैसे जमे अपनी ये जोड़ी सांवरे

कैसे जमे अपनी ये जोड़ी सांवरे कृष्णा भजन

 
कैसे जमे अपनी ये जोड़ी सांवरे Kaise Jame Apni Jodi Lyrics

तुम हो कारे कारे मैं हूँ गोरी सांवरे,
कैसे जमे अपनी ये जोड़ी सांवरे,
तुम तो हो छलियाँ ठगियां के ठगियां,
मैं हूँ बड़ी गोरी सांवरे,
तुम हो कारे कारे मैं हूँ गोरी सांवरे।

कान्हां तोरे काँधे पे काली कामरिया,
मैं उदू सतरंगी रेशमी चुनरिया,
तुम ग्वाले मैं चंदा की चकोरी सांवरे,
कैसे जमे अपनी ये जोड़ी सांवरे।

मोर मुकट कान्हा तेरे सिर बंधा रे,
मेरा तो मुकट कान्हा रत्नो से जड़ा रे,
काहे बतिया करे गोरी गोरी सांवरे,
कैसे जमे अपनी ये जोड़ी सांवरे।

दिन भर चराते फिरू तुम तोरी गैया,
मैं अपने ही महलों में खेलु कन्हैया,
करते हो माखन की चोरी सांवरे,
कैसे जमे अपनी ये जोड़ी सांवरे।

हाथो में बांस की बंसी है तेरी,
हीरे की कान्हा मुंदरिया है मेरी,
हथ फूल मेरा करोड़ी सांवरे,
कैसे जमे अपनी ये जोड़ी सांवरे।

तुम हो कारे कारे मैं हूँ गोरी सांवरे,
कैसे जमे अपनी ये जोड़ी सांवरे,
तुम तो हो छलियाँ ठगियां के ठगियां,
मैं हूँ बड़ी गोरी सांवरे,
तुम हो कारे कारे मैं हूँ गोरी सांवरे।


राधा कृष्णा का लॉकडाउन भजन | कैसे जमे अपनी ये जोड़ी साँवरे | Kese Jame Apni Jodi Sanware..

Singer - Renuka Panwar
Artist - Shivam{9720819389} , Shiva Agnihotri
Lyrics - Ds Raghuwanshi
Music - Aman {Sonotek Music Studio}
Edit : Dharmendra Sagar
Label - Shyam Bhajan Sonotek
 
प्रेम का यह रूप भिन्नता में एकता का सौंदर्य उभराता है। रंग, रूप, आचरण या जन्म कुछ भी उस मिलन को नहीं रोक पाता जिसमें आत्मा का आकर्षण परम बन जाता है। यहाँ एक मनुष्यता झलकती है जो बाहरी भेद नहीं देखती, केवल सच्चे प्रेम की संगत पहचानती है। यह भावना उस वृंदावन की याद दिलाती है जहाँ कृष्ण का सांवरापन राधा की गोरी छवि में घुलकर एक अनुपम रंग रच देता है। न ग्वाले का चरवाहापन छोटा है, न वैभव की चमक बड़ी; दोनों का मिलन बस एक लय बन जाता है — जो दिखावे से परे, सच्चे स्नेह पर टिका है।

कृष्ण का प्रेम सदा सीमाओं से परे रहा है। वे प्रेम को धर्म, पद, या वेश से नहीं तोलते; उनका स्नेह सरल है, पर गहराई में सागर-सा विशाल। उनके सांवरे रूप की गहराई और गोरी आत्मा की उजली सादगी जब मिलती है, तो ब्रह्मांड में माधुर्य गूंज उठता है। यही जीवन का सच्चा रहस्य है — भिन्नता में सामंजस्य की अनुभूति। जब व्यक्ति अपने भीतर और दूसरे के भीतर उस एक ही दिव्यता को देख लेता है, तब कोई जोड़ी असंगत नहीं रहती। रंग, वाणी, या चाल चाहे जुदी हो, प्रेम की रसधारा सबको एक कर देती है — वहीं से शुरू होता है आत्मा का असली मिलन, और वहीं मिल जाता है सृष्टि का शाश्वत अर्थ।

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