कहां से आई तुलसा कहां से सियाराम

कहां से आई तुलसा कहां से सियाराम तुलसीमाता भजन

कहां से आई तुलसा कहां से सियाराम तुलसीमाता भजन

कहां से आई तुलसा,
कहां से सियाराम
कहां से आये रे,
मेरे शालिग्राम।

वृंदावन से तुलसा,
अयोध्या से सियाराम,
बैकुंठ से आये रे,
मेरे शालिग्राम,
कहां से आई तुलसा,
कहां से सियाराम
कहां से आये रे,
मेरे शालिग्राम

कहां पे उतरी तुलसा,
कहां पे सियाराम,
कहां पे उतरे रे,
मेरे शालिग्राम,
कहां से आई तुलसा,
कहां से सियाराम
कहां से आये रे,
मेरे शालिग्राम।

गमले में उतरी तुलसा,
मंदिर में सियाराम,
सिंहासन उतरे रे,
मेरे शालिग्राम,
कहां से आई तुलसा,
कहां से सियाराम
कहां से आये रे,
मेरे शालिग्राम।

क्या पिये तुलसा,
क्या सियाराम,
क्या पिये रे,
मेरे शालिग्राम,
कहां से आई तुलसा,
कहां से सियाराम
कहां से आये रे,
मेरे शालिग्राम।

जल पिये तुलसा,
गंगाजल सियाराम,
दूध पिये रे,
मेरे शालिग्राम।

क्या देवे तुलसा,
और क्या शालिग्राम,
क्या देवे रे,
मेरे शालिग्राम।

भक्ति देवे तुलसा,
संसार सियाराम,
मुक्ति देवे रे,
मेरे शालिग्राम।

कैसी सेवा तुलसा,
कैसी सियाराम,
कैसी सेवा रे,
मेरे शालिग्राम।

घर में सेवा तुलसा,
मंदिर में सियाराम,
मन में सेवा रे,
मेरे शालिग्राम,
कहां से आई तुलसा,
कहां से सियाराम
कहां से आये रे,
मेरे शालिग्राम।


तुलसा भजन ।। कहाँ से आई तुलसा कहाँ से सिया राम || Kahan se aai tulsa kahan se siya ram
 
लेडीज डांस भजन - कहाँ से आई तुलसा कहाँ से सिया राम || Tulsa bhajan || Kahan se aai tulsa kahan se siya ram - Bhajan Mala
Artist - Vanshika Sharma
Singer - Aarti
Banjo / Keyboard - Raj Bagdi 
 
तुलसी में वह सुगंध है जो गृहस्थ के द्वार पर भक्ति का वातावरण रच देती है, सीता‑राम उस भक्ति का हृदय हैं जो मर्यादा और सौंदर्य का संगम रचते हैं, और शालिग्राम वह निश्चल स्वरूप है जिसमें शुद्ध चेतना निवास करती है। जब कोई मन से इन तीनों का दर्शन करता है, तो उसे समझ आता है कि भक्ति कहीं बाहर से नहीं आती – वह तो जीवन के हर तत्व में पहले से विराजमान है।

जब तुलसी को जल मिलता है, राम को गंगाजल अर्पित होता है, और शालिग्राम दूध से स्नान करते हैं, तो यह सिर्फ पूजा नहीं होती – यह एक संदेश होता है कि सृष्टि के हर स्तर पर संतुलन और पवित्रता आवश्यक है। तुलसी घर की आत्मा बन जाती है, मंदिर साकार प्रभु का प्रतीक और मन उनका अनंत निवास। यह त्रिवेणी हमें बताती है कि सच्ची सेवा स्थानों से नहीं, स्थिति से जन्म लेती है। जब मन भीतर श्रদ্ধा से भीगता है, तो तुलसी की हर पत्ती, राम के हर नाम, और शालिग्राम की हर आकृति में वही शाश्वत अनुभव प्रकट होता है — जहाँ भक्ति जगती है और मुक्ति मिलती है। 

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