कैलाश पुरी सै चालकै,
शिव नन्द महर घर आयो,
शिव भगति मं मगन,
दरस री लगन,
ध्यान लाग्यो धरणै,
महाराज ध्यान लाग्यो धरणै,
हेजी ओ ध्यान लाग्यो धरणै,
बिष्णु रो कठै निवास,
देखणूं हरि नै।
देख्यो च्यारूं कूंट,
और बैकूण्ट,
देव और नर मं,
महाराज देव और नर मं,
हेजी ओ देव और नर मं,
नारायण लियो अवतार,
नन्द कै घर मं।
प्रभु नन्द घरां अवतारी,
लख मगन भयो त्रिपुरारी,
आंखड़ल्यां तरसै म्हारी,
चालण री करी त्यारी,
स्रींगी सेळी कण्ठी माळा,
गळै बीच घाली है,
बाघम्बर लपेटी तन पर,
भस्मी रमाली है,
शीश ऊपर शोभा देवै,
जग नै तारण हाळी है,
कैलासां सूं बिदा होया,
बोल्या हर बम बम,
हाथ मं त्रिशूल डमरू,
बाज रयो डम् डम्,
चन्दरमा लिलाड़ ऊपर,
कर रयो चम् चम्।
चाल्यो सरप गळा मं घाल की,
दिण ब्रज मं आय उगायो,
कैलाश पुरी सै चालकै,
शिव नन्द महर घर आयो।
गोकुळ री देखी झलक,
जगाई अलख नन्द रै द्वारै,
महाराज नन्द रै द्वारै,
हेजी ओ नन्द रै द्वारै,
एक दरस भिखारी,
खड़्यो बारणै थांरै।
अलख अलख रयो टेर,
होय रयी देर,
जावूं घर म्हारै,
महाराज जावूं घर म्हारै,
हेजी ओ जावूं घर म्हारै,
माई माई,
शिवशंकर खड़्यो पुकारै।
जद माता जसोदा बोली,
एक संत खड़्यो छै पोळी,
भिच्छा ल्यायी अण़मोली,
जोगी की भर देवूं झोळी।
थाळी भरकै ल्यायी माता,
रतन अमोला रे,
लालै री बधाई देवूं,
लेज्या जोगी भोळा रे,
जाग्यावै कन्हैयो म्हारो,
करै मत रोळा रे,
भीख कोनीं लेवूं तेरै,
पुत्तर नै दिखा दे माई,
भोळेनाथ घरै आयो,
जायकै सुणा दे माई,
अलख पालणियै तेरै,
सुत्यो है जगा दे माई।
सूरत दिखा दे थारै लाल की,
शिव दरसण तांईं आयो,
कैलाश पुरी सै चालकै,
शिव नन्द महर घर आयो।
तेरी सुण डमरू की तान,
सूतेड़ो कान,
चिमक कै जागै,
महाराज चिमक कै जागै,
हेजी चिमक कै जागै,
लाला रै निजर लग जायै,
ल्यावूं नीं तेरै आगै।
तेरै गळै बीच मं शेष,
अजब तेरो भेष,
मनै डर लागै,
महाराज मनै डर लागै,
हेजी ओ मनै डर लागै,
बाळक लालो देखै तेरो,
रूप रोयकर भागै।
कै रिया बचन कैलासी,
माई कर दे मै'र जरासी,
थारै घर प्रगट्यो अबिनासी,
आंख्यां दरसण री प्यासी।
मेरो ईष्ट देव माई,
झूलै थारै पालणै,
जगत को करता धरता,
खेलै थारै आंगणै,
दरसण करबा आयो कोनीं,
आयो भीख मांगणै,
तातो पाणी कर द्यूं जोगी,
बैठकर कै न्हायले,
भूख जे लगी तो जोगी,
दही रोटी खायले,
पुत्तर नै दिखावूं कोनीं,
चायै भिक्षा नांयले।
क्यूं बात करै है जाळकी,
चल्यो जायै जठै सै आयो,
कैलाश पुरी सै चालकै,
शिव नन्द महर घर आयो।
शंकर होय निरास,
फेर कैलास,
चालण नै लाग्यो,
महाराज चालण नै लाग्यो,
हेजी ओ चालण नै लाग्यो,
पलणै मं सूत्यो,
कंवर कन्हैयो जाग्यो।
चिमक मारी किलकार,
पैर फटकार रोवण नै लाग्यो,
महाराज रोवण नै लाग्यो,
हेजी ओ रोवण नै लाग्यो,
माता कै ती,
जोगिड़ो निजर लगाग्यो।
झट गोद लियो महतारी,
हुलरा हुलरा कै हारी,
आई दस पांच बिरज की नारी,
थारो क्यूं रोवै बनवारी।
कोई बोली पेट दुखै,
कान मं है चटको,
कोई बोली कीड़ो कांटो,
भर लियो बटको,
माता बोली भैणा म्हारै,
जी मं ओर खटको,
अेक जोगी आयो भैणा,
करग्यो जादू टूणो अे,
जोगिड़ो जाणै कै पीछै,
रोवै दूणो दूणो अे,
पकड़ कै जोगी नै ल्यावूं,
ढून्ढूं कूणो कूणो अे।
काम्बळ छी नार खाळ की,
शिव शंकर नाम बतायो,
कैलाश पुरी सै चालकै,
शिव नन्द महर घर आयो।
जसुमति दौड़ी लैर,
जोगिड़ा ठैर,
जाण देवूं नांई,
महाराज जाण देवूं नांई,
हेजी ओ जाण देवूं नांई,
कान्है रो दुखै पेट,
थूं निजर लगाई।
के कर आयो जादू,
पाखण्डी सादू,
बोल रयी माई,
महाराज बोल रयी माई,
हेजी ओ बोल रयी माई,
शिवशंकर कवै घर चालूं,
देवूंला दवाई।
शंकर मन मं हरसायो,
संग जसुमति कै घर आयो,
पोळी मं कृष्ण बुलायो,
हंस कर कै कण्ठ लगायो।
निजर लागी तो तनै,
बभूती री चूंटी देवूं,
सरद जुखाम व्है तो,
ओर जड़ी बूंटी देवूं,
पेट मं दर्द व्है तो,
जायफळ री घूंटी देवूं,
शीश ऊपर हाथ फेरै,
आशीषां सुणाय रयो,
गद गद कण्ठ हो कै,
मन मं हरसाय रयो,
शंकर-श्याम मिल्या जद,
मोहन गुण गाय रयो।
ल्यायो उमर हजारां साळ की,
यो जसुमति थांको जायो,
कैलाश पुरी सै चालकै,
शिव नन्द महर घर आयो।
शिव नन्द महर घर आयो,
शिव भगति मं मगन,
दरस री लगन,
ध्यान लाग्यो धरणै,
महाराज ध्यान लाग्यो धरणै,
हेजी ओ ध्यान लाग्यो धरणै,
बिष्णु रो कठै निवास,
देखणूं हरि नै।
देख्यो च्यारूं कूंट,
और बैकूण्ट,
देव और नर मं,
महाराज देव और नर मं,
हेजी ओ देव और नर मं,
नारायण लियो अवतार,
नन्द कै घर मं।
प्रभु नन्द घरां अवतारी,
लख मगन भयो त्रिपुरारी,
आंखड़ल्यां तरसै म्हारी,
चालण री करी त्यारी,
स्रींगी सेळी कण्ठी माळा,
गळै बीच घाली है,
बाघम्बर लपेटी तन पर,
भस्मी रमाली है,
शीश ऊपर शोभा देवै,
जग नै तारण हाळी है,
कैलासां सूं बिदा होया,
बोल्या हर बम बम,
हाथ मं त्रिशूल डमरू,
बाज रयो डम् डम्,
चन्दरमा लिलाड़ ऊपर,
कर रयो चम् चम्।
चाल्यो सरप गळा मं घाल की,
दिण ब्रज मं आय उगायो,
कैलाश पुरी सै चालकै,
शिव नन्द महर घर आयो।
गोकुळ री देखी झलक,
जगाई अलख नन्द रै द्वारै,
महाराज नन्द रै द्वारै,
हेजी ओ नन्द रै द्वारै,
एक दरस भिखारी,
खड़्यो बारणै थांरै।
अलख अलख रयो टेर,
होय रयी देर,
जावूं घर म्हारै,
महाराज जावूं घर म्हारै,
हेजी ओ जावूं घर म्हारै,
माई माई,
शिवशंकर खड़्यो पुकारै।
जद माता जसोदा बोली,
एक संत खड़्यो छै पोळी,
भिच्छा ल्यायी अण़मोली,
जोगी की भर देवूं झोळी।
थाळी भरकै ल्यायी माता,
रतन अमोला रे,
लालै री बधाई देवूं,
लेज्या जोगी भोळा रे,
जाग्यावै कन्हैयो म्हारो,
करै मत रोळा रे,
भीख कोनीं लेवूं तेरै,
पुत्तर नै दिखा दे माई,
भोळेनाथ घरै आयो,
जायकै सुणा दे माई,
अलख पालणियै तेरै,
सुत्यो है जगा दे माई।
सूरत दिखा दे थारै लाल की,
शिव दरसण तांईं आयो,
कैलाश पुरी सै चालकै,
शिव नन्द महर घर आयो।
तेरी सुण डमरू की तान,
सूतेड़ो कान,
चिमक कै जागै,
महाराज चिमक कै जागै,
हेजी चिमक कै जागै,
लाला रै निजर लग जायै,
ल्यावूं नीं तेरै आगै।
तेरै गळै बीच मं शेष,
अजब तेरो भेष,
मनै डर लागै,
महाराज मनै डर लागै,
हेजी ओ मनै डर लागै,
बाळक लालो देखै तेरो,
रूप रोयकर भागै।
कै रिया बचन कैलासी,
माई कर दे मै'र जरासी,
थारै घर प्रगट्यो अबिनासी,
आंख्यां दरसण री प्यासी।
मेरो ईष्ट देव माई,
झूलै थारै पालणै,
जगत को करता धरता,
खेलै थारै आंगणै,
दरसण करबा आयो कोनीं,
आयो भीख मांगणै,
तातो पाणी कर द्यूं जोगी,
बैठकर कै न्हायले,
भूख जे लगी तो जोगी,
दही रोटी खायले,
पुत्तर नै दिखावूं कोनीं,
चायै भिक्षा नांयले।
क्यूं बात करै है जाळकी,
चल्यो जायै जठै सै आयो,
कैलाश पुरी सै चालकै,
शिव नन्द महर घर आयो।
शंकर होय निरास,
फेर कैलास,
चालण नै लाग्यो,
महाराज चालण नै लाग्यो,
हेजी ओ चालण नै लाग्यो,
पलणै मं सूत्यो,
कंवर कन्हैयो जाग्यो।
चिमक मारी किलकार,
पैर फटकार रोवण नै लाग्यो,
महाराज रोवण नै लाग्यो,
हेजी ओ रोवण नै लाग्यो,
माता कै ती,
जोगिड़ो निजर लगाग्यो।
झट गोद लियो महतारी,
हुलरा हुलरा कै हारी,
आई दस पांच बिरज की नारी,
थारो क्यूं रोवै बनवारी।
कोई बोली पेट दुखै,
कान मं है चटको,
कोई बोली कीड़ो कांटो,
भर लियो बटको,
माता बोली भैणा म्हारै,
जी मं ओर खटको,
अेक जोगी आयो भैणा,
करग्यो जादू टूणो अे,
जोगिड़ो जाणै कै पीछै,
रोवै दूणो दूणो अे,
पकड़ कै जोगी नै ल्यावूं,
ढून्ढूं कूणो कूणो अे।
काम्बळ छी नार खाळ की,
शिव शंकर नाम बतायो,
कैलाश पुरी सै चालकै,
शिव नन्द महर घर आयो।
जसुमति दौड़ी लैर,
जोगिड़ा ठैर,
जाण देवूं नांई,
महाराज जाण देवूं नांई,
हेजी ओ जाण देवूं नांई,
कान्है रो दुखै पेट,
थूं निजर लगाई।
के कर आयो जादू,
पाखण्डी सादू,
बोल रयी माई,
महाराज बोल रयी माई,
हेजी ओ बोल रयी माई,
शिवशंकर कवै घर चालूं,
देवूंला दवाई।
शंकर मन मं हरसायो,
संग जसुमति कै घर आयो,
पोळी मं कृष्ण बुलायो,
हंस कर कै कण्ठ लगायो।
निजर लागी तो तनै,
बभूती री चूंटी देवूं,
सरद जुखाम व्है तो,
ओर जड़ी बूंटी देवूं,
पेट मं दर्द व्है तो,
जायफळ री घूंटी देवूं,
शीश ऊपर हाथ फेरै,
आशीषां सुणाय रयो,
गद गद कण्ठ हो कै,
मन मं हरसाय रयो,
शंकर-श्याम मिल्या जद,
मोहन गुण गाय रयो।
ल्यायो उमर हजारां साळ की,
यो जसुमति थांको जायो,
कैलाश पुरी सै चालकै,
शिव नन्द महर घर आयो।
KailashPuri se Chal kar Shiv Nand Mahar Ghar Aayo - Jogi Amavasya - Hari Har Milan Bhajan Jogi Leela
(राग - पारवा ~ लावणी )कैलाश पुरी सै चालकै शिव नन्द महर घर आयो।।(टेर)।।
---- चौक ----
शिव भगति मं मगन, दरस री लगन, "ध्यान लाग्यो धरणै"-२
महाराज ध्यान लाग्यो धरणै, हेजी-२ ओ ध्यान लाग्यो धरणै।
बिष्णु रो कठै निवास,-२ देखणूं हरि नै।।
देख्यो च्यारूं कूंट, और बैकूण्ट, "देव और नर मं"-२
महाराज देव और नर मं, हेजी-२ ओ देव और नर मं।
नारायण लियो अवतार,-२ नन्द कै घर मं।।
---- मध्य ----
प्रभु नन्द घरां अवतारी, लख मगन भयो त्रिपुरारी।
आंखड़ल्यां तरसै म्हारी, चालण री करी त्यारी।।
---- संगीत ----
स्रींगी सेळी कण्ठी माळा, गळै बीच घाली है।
बाघम्बर लपेटी तन पर, भस्मी रमाली है।
शीश ऊपर शोभा देवै, जग नै तारण हाळी है।।
कैलासां सूं बिदा होया, बोल्या हर बम-बम।
हाथ मं त्रिशूल डमरू, बाज रयो डम् डम्।
चन्दरमा लिलाड़ ऊपर, कर रयो चम् चम्।।
चाल्यो सरप गळा मं घाल की, दिण ब्रज मं आय उगायो।
कैलाश पुरी सै चालकै शिव नन्द महर घर आयो।।(१)।।
---- चौक ----
गोकुळ री देखी झलक, जगाई अलख, "नन्द रै द्वारै"-२
महाराज नन्द रै द्वारै, हेजी-२ ओ नन्द रै द्वारै।
एक दरस भिखारी,-२ खड़्यो बारणै थांरै।।
अलख-अलख रयो टेर, होय रयी देर, "जावूं घर म्हारै"-२
महाराज जावूं घर म्हारै, हेजी-२ ओ जावूं घर म्हारै।
माई माई,-२ शिवशंकर खड़्यो पुकारै।।
---- मध्य ----
जद माता जसोदा बोली, एक संत खड़्यो छै पोळी।
भिच्छा ल्यायी अण़मोली, जोगी की भर देवूं झोळी।।
---- संगीत ----
थाळी भरकै ल्यायी माता, रतन अमोला रे।
लालै री बधाई देवूं, लेज्या जोगी भोळा रे।
जाग्यावै कन्हैयो म्हारो, करै मत रोळा रे।।
भीख कोनीं लेवूं तेरै, पुत्तर नै दिखा दे माई।
भोळेनाथ घरै आयो, जायकै सुणा दे माई।
अलख पालणियै तेरै, सुत्यो है जगा दे माई।।
सूरत दिखा दे थारै लाल की, शिव दरसण तांईं आयो।
कैलाश पुरी सै चालकै शिव नन्द महर घर आयो।।(२)।।
---- चौक ----
तेरी सुण डमरू की तान, सूतेड़ो कान, "चिमक कै जागै"-२
महाराज चिमक कै जागै, हेजी-२ चिमक कै जागै।
लाला रै निजर लग जायै,-२ ल्यावूं नीं तेरै आगै।।
तेरै गळै बीच मं शेष, अजब तेरो भेष, "मनै डर लागै"-२
महाराज मनै डर लागै, हेजी-२ ओ मनै डर लागै।
बाळक(लालो) देखै तेरो,-२ रूप रोयकर भागै।।
---- मध्य ----
कै' रिया बचन कैलासी, माई कर दे मै'र जरासी।
थारै घर प्रगट्यो अबिनासी, आंख्यां दरसण री प्यासी।।
---- संगीत ----
मेरो ईष्ट देव माई, झूलै थारै पालणै।
जगत को करता धरता, खेलै थारै आंगणै।
दरसण करबा आयो कोनीं आयो भीख मांगणै।।
तातो पाणी कर द्यूं जोगी, बैठकर कै न्हायले।
भूख जे लगी तो जोगी, दही रोटी खायले।
पुत्तर नै दिखावूं कोनीं, चायै भिक्षा नांयले।।
क्यूं बात करै है जाळकी, चल्यो जायै जठै सै आयो।
कैलाश पुरी सै चालकै शिव नन्द महर घर आयो।।(३)।।
---- चौक ----
शंकर होय निरास, फेर कैलास, "चालण नै लाग्यो"-२
महाराज चालण नै लाग्यो, हेजी-२ ओ चालण नै लाग्यो।
पलणै मं सूत्यो,-२ कंवर कन्हैयो जाग्यो।।
चिमक मारी किलकार, पैर फटकार, "रोवण नै लाग्यो"-२
महाराज रोवण नै लाग्यो, हेजी-२ ओ रोवण नै लाग्यो।
माता कै'ती,-२ जोगिड़ो निजर लगाग्यो।।
---- मध्य ----
झट गोद लियो महतारी, हुलरा-हुलरा कै हारी।
आई दस पांच बिरज की नारी, थारो क्यूं रोवै बनवारी।।
---- संगीत ----
कोई बोली पेट दुखै, कान मं है चटको।
कोई बोली कीड़ो कांटो, भर लियो बटको।
माता बोली भैणा म्हारै, जी मं ओर खटको।।
अेक जोगी आयो भैणा, करग्यो जादू टूणो अे।
जोगिड़ो जाणै कै पीछै, रोवै दूणो दूणो अे।
पकड़ कै जोगी नै ल्यावूं, ढून्ढूं कूणो कूणो अे।।
काम्बळ छी ना'र खाळ की, शिव शंकर नाम बतायो।
कैलाश पुरी सै चालकै शिव नन्द महर घर आयो।।(४)।।
---- चौक ----
जसुमति दौड़ी लैर, जोगिड़ा ठैर, "जाण देवूं नांई"-२
महाराज जाण देवूं नांई, हेजी-२ ओ जाण देवूं नांई।
कान्है रो दुखै पेट,-२ थूं निजर लगाई।।
के कर आयो जादू, पाखण्डी सादू, "बोल रयी माई"-२
महाराज बोल रयी माई, हेजी-२ ओ बोल रयी माई।
शिवशंकर कवै घर चालूं, देवूंला दवाई।।
---- मध्य ----
शंकर मन मं हरसायो, संग जसुमति कै घर आयो।
पोळी मं कृष्ण बुलायो, हंस कर कै कण्ठ लगायो।।
---- संगीत ----
निजर लागी तो तनै, बभूती री चूंटी देवूं।
सरद जुखाम व्है तो, ओर जड़ी बूंटी देवूं।
पेट मं दर्द व्है तो, जायफळ री घूंटी देवूं।।
शीश ऊपर हाथ फेरै, आशीषां सुणाय रयो।
गद गद कण्ठ हो कै, मन मं हरसाय रयो।
शंकर-श्याम मिल्या जद, "मोहन" गुण गाय रयो।।
ल्यायो उमर हजारां साळ की, यो जसुमति थांको जायो।
कैलाश पुरी सै चालकै शिव नन्द महर घर आयो।।(५)।।
ठौड़ — श्रीबालाजी मन्दर, सालासर धाम
गायन — श्रीरोहित पुजारी(सालासर)
लेखक —
स्व॰ श्रीमोहन लाल जी चोटिया
•जन्म - सम्वत १९८१ ~ सन् १९२४
•स्वर्ग वास - सम्वत २०६० ~ ३ जनवरी सन् २००४
•गांव - रिणूं, तहसील - लिछ्मणगढ, जिला - सीकर (राजस्थान)
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