कैलाश पुरी सै चालकै, शिव नन्द महर घर आयो, शिव भगति मं मगन, दरस री लगन, ध्यान लाग्यो धरणै, महाराज ध्यान लाग्यो धरणै, हेजी ओ ध्यान लाग्यो धरणै, बिष्णु रो कठै निवास, देखणूं हरि नै।
देख्यो च्यारूं कूंट, और बैकूण्ट, देव और नर मं, महाराज देव और नर मं, हेजी ओ देव और नर मं, नारायण लियो अवतार, नन्द कै घर मं।
तेरै गळै बीच मं शेष, अजब तेरो भेष, मनै डर लागै, महाराज मनै डर लागै, हेजी ओ मनै डर लागै, बाळक लालो देखै तेरो, रूप रोयकर भागै।
कै रिया बचन कैलासी, माई कर दे मै'र जरासी, थारै घर प्रगट्यो अबिनासी, आंख्यां दरसण री प्यासी।
मेरो ईष्ट देव माई, झूलै थारै पालणै, जगत को करता धरता, खेलै थारै आंगणै, दरसण करबा आयो कोनीं, आयो भीख मांगणै, तातो पाणी कर द्यूं जोगी, बैठकर कै न्हायले, भूख जे लगी तो जोगी, दही रोटी खायले, पुत्तर नै दिखावूं कोनीं, चायै भिक्षा नांयले।
क्यूं बात करै है जाळकी, चल्यो जायै जठै सै आयो, कैलाश पुरी सै चालकै, शिव नन्द महर घर आयो।
शंकर होय निरास, फेर कैलास, चालण नै लाग्यो, महाराज चालण नै लाग्यो, हेजी ओ चालण नै लाग्यो, पलणै मं सूत्यो, कंवर कन्हैयो जाग्यो।
चिमक मारी किलकार, पैर फटकार रोवण नै लाग्यो, महाराज रोवण नै लाग्यो, हेजी ओ रोवण नै लाग्यो, माता कै ती,
Shiv Bhajan Lyrics in Hindi
जोगिड़ो निजर लगाग्यो।
झट गोद लियो महतारी, हुलरा हुलरा कै हारी, आई दस पांच बिरज की नारी, थारो क्यूं रोवै बनवारी।
कोई बोली पेट दुखै, कान मं है चटको, कोई बोली कीड़ो कांटो, भर लियो बटको, माता बोली भैणा म्हारै, जी मं ओर खटको, अेक जोगी आयो भैणा, करग्यो जादू टूणो अे, जोगिड़ो जाणै कै पीछै, रोवै दूणो दूणो अे, पकड़ कै जोगी नै ल्यावूं, ढून्ढूं कूणो कूणो अे।
काम्बळ छी नार खाळ की, शिव शंकर नाम बतायो, कैलाश पुरी सै चालकै, शिव नन्द महर घर आयो।
तेरै गळै बीच मं शेष, अजब तेरो भेष, "मनै डर लागै"-२ महाराज मनै डर लागै, हेजी-२ ओ मनै डर लागै। बाळक(लालो) देखै तेरो,-२ रूप रोयकर भागै।।
---- मध्य ---- कै' रिया बचन कैलासी, माई कर दे मै'र जरासी। थारै घर प्रगट्यो अबिनासी, आंख्यां दरसण री प्यासी।।
---- संगीत ---- मेरो ईष्ट देव माई, झूलै थारै पालणै। जगत को करता धरता, खेलै थारै आंगणै। दरसण करबा आयो कोनीं आयो भीख मांगणै।। तातो पाणी कर द्यूं जोगी, बैठकर कै न्हायले। भूख जे लगी तो जोगी, दही रोटी खायले। पुत्तर नै दिखावूं कोनीं, चायै भिक्षा नांयले।।
क्यूं बात करै है जाळकी, चल्यो जायै जठै सै आयो। कैलाश पुरी सै चालकै शिव नन्द महर घर आयो।।(३)।।
---- चौक ---- शंकर होय निरास, फेर कैलास, "चालण नै लाग्यो"-२ महाराज चालण नै लाग्यो, हेजी-२ ओ चालण नै लाग्यो। पलणै मं सूत्यो,-२ कंवर कन्हैयो जाग्यो।।
चिमक मारी किलकार, पैर फटकार, "रोवण नै लाग्यो"-२ महाराज रोवण नै लाग्यो, हेजी-२ ओ रोवण नै लाग्यो। माता कै'ती,-२ जोगिड़ो निजर लगाग्यो।।
---- मध्य ---- झट गोद लियो महतारी, हुलरा-हुलरा कै हारी। आई दस पांच बिरज की नारी, थारो क्यूं रोवै बनवारी।।
---- संगीत ---- कोई बोली पेट दुखै, कान मं है चटको। कोई बोली कीड़ो कांटो, भर लियो बटको। माता बोली भैणा म्हारै, जी मं ओर खटको।। अेक जोगी आयो भैणा, करग्यो जादू टूणो अे। जोगिड़ो जाणै कै पीछै, रोवै दूणो दूणो अे। पकड़ कै जोगी नै ल्यावूं, ढून्ढूं कूणो कूणो अे।।
काम्बळ छी ना'र खाळ की, शिव शंकर नाम बतायो। कैलाश पुरी सै चालकै शिव नन्द महर घर आयो।।(४)।।
लेखक — स्व॰ श्रीमोहन लाल जी चोटिया •जन्म - सम्वत १९८१ ~ सन् १९२४ •स्वर्ग वास - सम्वत २०६० ~ ३ जनवरी सन् २००४ •गांव - रिणूं, तहसील - लिछ्मणगढ, जिला - सीकर (राजस्थान)