एक जनक दुलारी सीता उसने भी धोखा खाया

एक जनक दुलारी सीता उसने भी धोखा खाया

 
एक जनक दुलारी सीता उसने भी धोखा खाया

झूठी है जग की माया,
तोते से बोली मैना,
गैरों से मतलब क्या है,
अपनों से बच कर रहना।

एक राम अवध के राजा,
उसने भी धोखा खाया,
वो मैया भी अपनी थी,
जिसने वनवास दिलाया।

एक प्रेम दीवानी मीरा,
उसने भी धोखा खाया,
वह राणा भी अपना था,
प्याले में जहर मिलाया।

एक द्रोपति नारी अबला,
उसने भी धोखा खाया,
वह देवर भी अपना था,
भरी सभा में उतारा।

एक जनक दुलारी सीता,
उसने भी धोखा खाया,
वह पति भी तो अपना था,
जिसने वन वन भटकाया।

एक ऋषि पत्नी थी अहिल्या,
उसने भी धोखा खाया,
वह पति भी तो अपना था,
जिसने पत्थर का बनाया।

एक था अभिमानी रावण,
उसने भी धोखा खाया,
यह भैया भी अपना था,
जिसने सारा भेद बताया।

एक जनक दुलारी सीता उसने भी धोखा खाया ओ पति भी अपना था जिसने😭 

इस संसार की माया क्षणभंगुर और भ्रामक है, जो मनुष्य को सत्य से भटकाती है। सच्चाई यह है कि सांसारिक रिश्तों में भी विश्वासघात और छल छिपा हो सकता है, और यहाँ तक कि सबसे निकट के लोग भी अनजाने में दुख का कारण बन सकते हैं। यह सत्य जीवन के उन कठिन पलों को दर्शाता है, जहाँ प्रेम, विश्वास और समर्पण की आड़ में भी पीड़ा और धोखा मिलता है। फिर भी, इन कथाओं में यह संदेश निहित है कि सच्चा बल और आश्रय केवल उस परम सत्य में है, जो माया के बंधनों से परे है। मनुष्य को चाहिए कि वह सांसारिक मोह से ऊपर उठकर उस अनंत शक्ति की शरण में जाए, जो हर स्थिति में साथ देती है और आत्मा को सही मार्ग दिखाती है।

यह भजन भी देखिये

Next Post Previous Post