व्यर्थ चिंता है जीवन की

व्यर्थ चिंता है जीवन की

व्यर्थ चिंता है जीवन की,
व्यर्थ है मृत्यु का भय,
आत्मा को ना मार पाते,
शस्त्र अग्नि या समय।

पंच भूतों की बनी,
ये देह केवल वस्त्र है,
आत्मा का जो वास्तविक है,
घर कहि अन्यत्र है,
है परिवर्तन ही सत्य,
झूठ सबका साथ है,
कुछ ना खोना कुछ ना पाना,
रिक्त रहते हाथ है।

ईश्वर स्वयं है सृष्टि सारी,
कहा उसको खोजना,
जो भी होता शुभ ही होता,
सब उसी की योजना,
कामना ये फल की छूटे,
वो ही सच्चा कर्म है।

ईश्वर चरण में हो समर्पण,
वो ही केवल धर्म है,
व्यर्थ चिंता है जीवन की,
व्यर्थ है मृत्यु का भय,
आत्मा को ना मार पाते,
शस्त्र अग्नि या समय।
 


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