माया तो ठगनी भई ठगत फिरै सब हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

माया तो ठगनी भई ठगत फिरै सब हिंदी मीनिंग Maya To Thagani Bhai Meaning : Kabir Ke Dohe Bhavarth

माया तो ठगनी भई, ठगत फिरै सब देस,
जा ठग ने ठगनी ठगी, ता ठग को आदेश.
Or
माया तो ठगनी भयी, ठगत फिरत संसार।
जिस ठग ने माया ठगी, वाको नमस्कार।।
 
Maya To Thagani Bhai, Thagat Phire Sab Desh,
Ja Thag Ne Thagani Thagi, Taa Thag Ko Aadesh.

माया : लोभ, लालच।
ठगनी भई : ठग बन गई है।
ठगत : ठगती।
फिरै : फिर रही है।
सब देस : सभी को, देस विदेश को।
जा ठग ने : जिस ठग ने (ज्ञानी) ने।
ठगनी ठगी : माया को ठग लिया है।
ता ठग : उस ठग।
को आदेश : उस गुरु को नमन है (संत को )
 
माया तो ठगनी भई ठगत फिरै सब हिंदी मीनिंग Maya To Thagani Bhai Meaning

 
हिंदी अर्थ : माया महाठगिनी बनकर देस परदेश के लोगों को अपने जाल में फंसा कर ठग लेती है। भाव है की माया के पाश/जाल (प्रभाव) से कोई भी बच नहीं पाता है। जो संत इस माया को ही ठग ले वो ही सच्चा और पंहुचा हुआ ठग (ज्ञानी) होता है। ऐसे गुरु को मेरा वंदन है/नमन है. 
 
माया के प्रभाव से कोई बिरला ही बच पाता है। माया का प्रभाव चारों तरफ व्याप्त है, इसके प्रभाव से कोई मुक्त नहीं है, यह सभी को ठगती है। यदि कोई इस माया को ही ठग ले उसको मेरा शत शत प्रणाम है। 

कबीर साहेब ने इस दोहे में माया को एक ठगनी के रूप में वर्णित किया है जो अपने भ्रमरूपी चालों से सभी लोगों को ठगती है। यह माया सभी देशों में व्याप्त होती है और लोगों को अपने मोह में ले जाती है, जिससे वे भवसागर में फंस जाते हैं। हालांकि, कबीर साहेब कहते हैं कि जिस सन्त ने इस माया को भी ठग लिया हो, जिसने इसके मोह में आकर भवसागर से पार पाया हो, उस महान सन्त को मेरा शत शत प्रणाम है। इससे भावार्थ यह है कि केवल एक महान सन्त या महापुरुष ही इस माया के भ्रम से बाहर निकल पाता है और सच्चे आनंद और शांति को प्राप्त करता है।
 

Maya To Thagani Bhai Meaning in English

Kabir Saheb says that Maya (illusion or worldly desires) is like a cunning thief who deceives and traps people from all walks of life. Everyone falls into its clutches and becomes its victim. However, the one who can overcome this deceitful Maya is a great saint, and I bow to such a noble soul. This means that only a truly enlightened saint or a great soul can escape from the clutches of Maya and attain true liberation and inner peace.

This couplet of Kabir Saheb conveys a profound message about the deceptive nature of worldly desires and the importance of seeking spiritual wisdom to transcend its influence. It encourages us to be vigilant against the illusions of Maya and strive for spiritual enlightenment to find genuine joy and contentment.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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