निरमल गुरु के नाम सों निरमल साधू भाय मीनिंग अर्थ Nirmal Guru Ke Naam So Meaning/Translation
निर्मल गुरु के नाम सों, निर्मल साधू भाय,
कोइला होय न उजला, सौ मन साबुन लाय।
कोइला होय न उजला, सौ मन साबुन लाय।
or
निरमल गुरु के नाम सों, निरमल साधू भाय ।
कोइला होय न ऊजला सौ मन साबुन लाय ॥
दोहे का हिंदी अर्थ/भावार्थ/मीनिंग इन हिंदी Hindi Meaning of Nirmal Guru Ke Naam So
गुरु की महिमा अनंत है और गुरु की महिमा का यश गाते हुए कबीर साहेब कहते हैं की सतगुरु के ज्ञान से
सतजन भी निर्मल हो जाते हैं। लेकिन जिनके मन में, अन्तः करण में माया जनित मैल है या जो कोयले की तरह से पूर्ण रूप से काले हो चुके हैं, उन पर कितनी भी साबुन (एक मन -चालीस कीलो ) लगा कर उनको साफ़ किया जाय वे साफ़ नहीं हो सकते हैं, उनके मन का मैल दूर नहीं हो सकता है। अतः स्पष्ट है की गुरु की वाणी को, गुरु के सन्देश को ग्रहण करने से पूर्व व्यक्ति को अपने अंतः करण / चित्त को निर्मल करना होगा।
सतजन भी निर्मल हो जाते हैं। लेकिन जिनके मन में, अन्तः करण में माया जनित मैल है या जो कोयले की तरह से पूर्ण रूप से काले हो चुके हैं, उन पर कितनी भी साबुन (एक मन -चालीस कीलो ) लगा कर उनको साफ़ किया जाय वे साफ़ नहीं हो सकते हैं, उनके मन का मैल दूर नहीं हो सकता है। अतः स्पष्ट है की गुरु की वाणी को, गुरु के सन्देश को ग्रहण करने से पूर्व व्यक्ति को अपने अंतः करण / चित्त को निर्मल करना होगा।
कबीरदास जी कहते हैं कि सतगुरु के सत्य-ज्ञान से निर्मल मनवाले लोग सत्य-ज्ञानी बन जाते हैं लेकिन कोयले की तरह काले मनवाले लोग मन भर साबुन मलने पर भी उजले/निर्मल नहीं हो सकते-अथार्त उन पर विवेक और बुद्धि की बैटन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
कबीर साहेब सतगुरु की महिमा का अद्भुत वर्णन करते है। इस दोहे में कबीर साहेब गुरु के महत्व को प्रदर्शित करते हुए कहते हैं कि सतगुरु की शक्ति और प्रभाव अनंत है। गुरु की शक्ति इस सृष्टि के विकास और परिवर्तन को नहीं बस अपने शिष्यों के मन को और आत्मा को भी नई दिशा देने में समर्थ है।
गुरु के शिक्षा का महत्व कबीर द्वारा बहुत सुंदर रूप से बताया गया है। गुरु शिक्षा के द्वारा हमारे अंतरंग में समस्याएं और अज्ञानता का समाधान करते हैं। वे हमें सच्चे ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं और आत्म-विकास के लिए हमें प्रेरित करते हैं। गुरु के शिक्षा से हमें सच्चे और प्रमाणिक जीवन का आनंद प्राप्त होता है और हम अपने आप को एक श्रेष्ठ और उच्च स्तर तक पहुंचाने में समर्थ होते हैं।
इस दोहे में कबीर द्वारा गुरु की महिमा का गुणगान हुआ है। वे कहते हैं कि सतगुरु के सत्य-ज्ञान से निर्मल मनवाले लोग सत्य-ज्ञानी बन जाते हैं । वे अपने जीवन के माध्यम से दूसरों को भी सत्य-ज्ञान का अनुभव कराने की कोशिश करते हैं। लेकिन जो लोग दुर्भावना के मेल से लिप्त हैं वे मन भर साबुन मलने पर भी उजले/निर्मल नहीं हो सकते, अर्थात जिनका मन अशुद्ध रहता है और गुरु की शिक्षाओं का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, उन्हें सत्य-ज्ञान का अनुभव नहीं होता। इसलिए उन्हें पहले अपने मन को निर्मल और शुद्ध करने की आवश्यकता होती है और फिर गुरु की वाणी को ग्रहण करने से उन्हें सत्य-ज्ञान का अनुभव होगा।
इस दोहे में कबीर द्वारा गुरु की महिमा का गुणगान हुआ है। वे कहते हैं कि सतगुरु के सत्य-ज्ञान से निर्मल मनवाले लोग सत्य-ज्ञानी बन जाते हैं । वे अपने जीवन के माध्यम से दूसरों को भी सत्य-ज्ञान का अनुभव कराने की कोशिश करते हैं। लेकिन जो लोग दुर्भावना के मेल से लिप्त हैं वे मन भर साबुन मलने पर भी उजले/निर्मल नहीं हो सकते, अर्थात जिनका मन अशुद्ध रहता है और गुरु की शिक्षाओं का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, उन्हें सत्य-ज्ञान का अनुभव नहीं होता। इसलिए उन्हें पहले अपने मन को निर्मल और शुद्ध करने की आवश्यकता होती है और फिर गुरु की वाणी को ग्रहण करने से उन्हें सत्य-ज्ञान का अनुभव होगा।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।।
अर्थ: कबीर साहेब कहते हैं कि गुरु और भगवान दोनों ही मेरे सामने खड़े हैं, लेकिन मैं किसकी पूजा करूं? इस पर उन्होंने कहा है कि मैं गुरु की पूजा करता हूँ, क्योंकि गुरु ने ही मुझे भगवान से मिलाया है।
गुरु बिन कोई नहीं भाव, गुरु बिन कोई नहीं।
गुरु बिन देखे नाहीं जग, गुरु बिन भाव नहीं।।
अर्थ: कबीर साहेब कहते हैं कि बिना गुरु के भावना कोई नहीं, बिना गुरु के किसी को अनुभव करने की क्षमता नहीं है। संसार को बिना गुरु के देखा नहीं जा सकता, और भावना को बिना गुरु के प्राप्त नहीं किया जा सकता।
गुरु है राम रूप मोहि, देखत न लगे दार।
कहा कबीर समुझाइ है, बूढ़े बालक बार।।
अर्थ: कबीर साहेब कहते हैं कि गुरु मेरे लिए भगवान राम के समान हैं, लेकिन मैं उन्हें देखने में बूढ़े और बालक में कोई अंतर नहीं देखता। इसलिए वे कहते हैं कि गुरु बूढ़े और बालक दोनों को समझाने में समर्थ हैं।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।।
अर्थ: कबीर साहेब कहते हैं कि गुरु और भगवान दोनों ही मेरे सामने खड़े हैं, लेकिन मैं किसकी पूजा करूं? इस पर उन्होंने कहा है कि मैं गुरु की पूजा करता हूँ, क्योंकि गुरु ने ही मुझे भगवान से मिलाया है।
गुरु बिन कोई नहीं भाव, गुरु बिन कोई नहीं।
गुरु बिन देखे नाहीं जग, गुरु बिन भाव नहीं।।
अर्थ: कबीर साहेब कहते हैं कि बिना गुरु के भावना कोई नहीं, बिना गुरु के किसी को अनुभव करने की क्षमता नहीं है। संसार को बिना गुरु के देखा नहीं जा सकता, और भावना को बिना गुरु के प्राप्त नहीं किया जा सकता।
गुरु है राम रूप मोहि, देखत न लगे दार।
कहा कबीर समुझाइ है, बूढ़े बालक बार।।
अर्थ: कबीर साहेब कहते हैं कि गुरु मेरे लिए भगवान राम के समान हैं, लेकिन मैं उन्हें देखने में बूढ़े और बालक में कोई अंतर नहीं देखता। इसलिए वे कहते हैं कि गुरु बूढ़े और बालक दोनों को समझाने में समर्थ हैं।
कबीरदास जी के अनुसार गुरु की महिमा और महत्व अवर्णनीय है। गुरु शिष्य को आत्मज्ञान की प्राप्ति के मार्ग पर प्रेरित करते हैं और उसे सत्य का ज्ञान देते हैं। उनके उपदेशों से शिष्य अध्यात्मिक और भावनात्मक उन्नति का मार्ग प्राप्त करता है। गुरु के आदर्शवादी जीवन से शिष्य भव सागर से पार लग सकता है और शांति, समृद्धि, और सच्चे सुख की प्राप्ति कर सकता है। गुरु का संदेश है कि हमें आत्मविश्वास रखना और सच्चे मार्ग पर चलते रहना ताकि हम अपने जीवन को एक सर्वोत्कृष्ट और उदात्त स्तर तक पहुंचा सकें। गुरु की कृपा से हम आत्मा की प्राप्ति के राह में आगे बढ़ सकते हैं और जीवन के सभी क्षेत्रों में शान्ति और समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं।
हिंदी शब्दार्थ Word Meaning in Hindi (Kabir Ke Dohe)
- निर्मल गुरु: गुरु जो सत्य है, निर्मल है। - Pure Guru: A guru who is truthful and pure.
- नाम: शिक्षा/गुरु शिक्षा। - Name: Education/Instruction from a guru.
- सों: से। - From.
- निर्मल: पावन, पवित्र। - Nirmal: Pure, holy, immaculate.
- साधू: संतजन। - Sadhu: A saintly person.
- भाय: हो जाता है। - Bhay: Becomes.
- कोइला: कोयला। - Koila: Coal.
- होय न: नहीं होता है। - Hoy na: Does not become.
- उजला: मैल मुक्त, निर्मल। - Ujla: Clean, spotless, pure.
- सौ मन: एक मन का अर्थ चालीस किलो। - Sau man: A hundred kilograms.
- साबुन: साबुन - Sabun: Soap.
- लाय: लगाने से। - Lay: Apply or rub on.
निर्मल गुरु के नाम सों, निर्मल साधू भाय,
कोइला होय न उजला, सौ मन साबुन लाय।
कोइला होय न उजला, सौ मन साबुन लाय।
Nirmal Guru Ke Naam So, Nirmal Sadhu Bhay,
Koyla Hoy Na Ujala So Man Sabun Laay.
English Meaning of Nirmal Guru Ke Naam So (Kabir Couplet)
The glory of the Guru is infinite, and while singing praises of the Guru's greatness, Kabir Sahib says that through the knowledge of the true Guru, even the impure become pure. However, those whose minds and hearts are tainted with the impurities of Maya or have become completely dark like coal, no matter how much soap (a hundred kilograms) is applied to them, they cannot be cleansed; the impurity of their minds cannot be removed. Therefore, it is clear that before accepting the Guru's teachings and messages, one must purify their inner self or consciousness.
Kabir Das Ji says that those with a pure mind are transformed into knowers of truth through the true knowledge of the Guru. However, those with darkened minds like coal cannot be purified even after applying soap to their hearts, which means that their intellect and wisdom remain unaffected.
Kabir Das Ji says that those with a pure mind are transformed into knowers of truth through the true knowledge of the Guru. However, those with darkened minds like coal cannot be purified even after applying soap to their hearts, which means that their intellect and wisdom remain unaffected.
कबीरदास जी के इस दोहे में वे कह रहे हैं कि सत्गुरु के सत्य-ज्ञान से निर्मल मनवाले लोग सत्य-ज्ञानी बन जाते हैं और उन्हें सत्य का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इसका मतलब है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से गुरु के उपदेशों को ग्रहण करता है और उन पर आचरण करता है, वह भी सत्य-ज्ञानी बन जाता है और सच्चे ज्ञान का अनुभव करता है। ऐसे लोग सत्य के मार्ग पर चलते हैं और आत्म-उन्नति का साधना करते हैं।
विपरीत है, जिन्हें कोयले की तरह काले मन धारण कर लिया गया होता है, उनके मन में अध्यात्मिक और आत्मिक उन्नति के लिए अनाचारिक भावनाएं रहती हैं। वे अपने अंतर्मन का मैल नहीं धो पाते हैं, जिससे उन्हें उजला या निर्मल बनने का फायदा नहीं होता। उन्हें गुरु के सन्देश और बुद्धि की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, और वे उसी काले और अज्ञानी मन में भटकते रहते हैं। इसलिए, कबीरदास जी का संदेश है कि हमें सत्य-ज्ञान के उपदेशों को सच्चे मन से ग्रहण करना चाहिए और अपने अंतर्मन को निर्मल बनाने के लिए आत्म-विकास के मार्ग पर चलना चाहिए।
विपरीत है, जिन्हें कोयले की तरह काले मन धारण कर लिया गया होता है, उनके मन में अध्यात्मिक और आत्मिक उन्नति के लिए अनाचारिक भावनाएं रहती हैं। वे अपने अंतर्मन का मैल नहीं धो पाते हैं, जिससे उन्हें उजला या निर्मल बनने का फायदा नहीं होता। उन्हें गुरु के सन्देश और बुद्धि की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, और वे उसी काले और अज्ञानी मन में भटकते रहते हैं। इसलिए, कबीरदास जी का संदेश है कि हमें सत्य-ज्ञान के उपदेशों को सच्चे मन से ग्रहण करना चाहिए और अपने अंतर्मन को निर्मल बनाने के लिए आत्म-विकास के मार्ग पर चलना चाहिए।