जग हटबारा स्वाद ठग हिंदी मीनिंग Jag Hatwara Swad Thag Meaning Kabir Ke Dohe

जग हटबारा स्वाद ठग हिंदी मीनिंग Jag Hatwara Swad Thag Meaning Kabir Ke Dohe

जग हटबारा स्वाद ठग, माया वेश्या लाय ।
राम नाम गाढ़ा गहो, जनि जन्म गंवा ।।
or
जग हठवाड़ा स्वाद ठग, माया बेसाँ लाइ।
रामचरण नीकाँ गही, जिनि जाइ जनम ठगाइ॥
Jag Hathvada Swad Thag, Maya Besa Laai,
Ramcharan Neeka Gahi, Jini Jaai Janam Thagaai.
 
कबीर दास ने यह उदाहरण दिया है कि यह दुनिया एक तरह से हठवाडा (अज्ञान, अधार्मिकता और मोह) है, और माया (अविद्या और मोह) एक ठग वेश्या के समान है जो लोगों को लुभाती है। उन्होंने इसे भ्रम और विक्षेप (असत्य और अप्राप्त) से जुड़ा दिखाया है। इस वाणी से वे यह संदेश देते हैं कि जो लोग श्री राम (अथवा ईश्वर) की भक्ति में समर्पित हैं, वे इस माया वेश्या (भ्रमजाल) में फंसे नहीं जाते हैं। भगवान के चरणों में स्थान बनाने से उनके जीवन में अनंत कल्याण होता है।
 
जग हटबारा स्वाद ठग हिंदी मीनिंग Jag Hatwara Swad Thag Meaning Kabir Ke Dohe

 
यह साखी एक सरल भाषा में प्रस्तुत होती है, लेकिन इसमें सांगरूपक अलंकार (उपमा) का उपयोग किया गया है। इससे कबीर जी ने जीवन की वास्तविकता को एक अनुभवनीय तथा सामाजिक तथ्यों के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है।
 

कबीर साहेब की भाषा शैली

कबीर दास जी की भाषा और शब्द-भाण्डार उनके काव्य के विशेषता और क्षमता को प्रकट करते हैं। उनके शब्द-ज्ञान की असीमता और समृद्धि के कारण उन्होंने अनेक भाषाओं के शब्दों को अपने काव्य में सम्मिलित किया।

कबीर दास जी के दोहे और पद काव्य में प्रचलित ब्रजी, अवधी, खड़ी बोली, बुदेली, राजस्थानी, भोजपुरी आदि भारतीय भाषाएं अनायास और स्वाभाविक रूप से प्रयुक्त दिखाई पड़ती हैं। उन्होंने विभिन्न वर्गों, व्यवसायों और जातियों के लोगों के जीवन से प्रयुक्त शब्दों का चयन किया। इससे उनके काव्य में विविधता और सामाजिक संबंध ज्यादा स्पष्ट होते हैं।

कबीर दास जी ने लोहार, कुम्हार, वढई, जुलाहा, कलवार, कृपक आदि के जीवन और व्यवसाय से जिन शब्दों को लिया, वे शब्द अब अप्रचलित हो गए हैं, लेकिन उनमें समृद्धि, व्यंजकता, और भावपूर्णता की अधिकता है। इन शब्दों के पर्याय खड़ी वोली में खोजना कठिन होता है, और उन्हें समझने के लिए भारतीय जीवन और संस्कृति का अध्ययन करना आवश्यक होता है।

कबीर दास जी की भाषा और शब्द-भाण्डार उनके काव्य को अद्भुत और सर्वत्र अप्रत्याशा बनाते हैं। उनके शब्दों में भक्ति, ज्ञान, नैतिकता, और समाज सेवा के सिद्धांत समाहित होते हैं, जो उन्हें एक अद्भुत भक्तिकालीन कवि बनाते हैं। उनके काव्य में उनके समय के जीवन और समाज की वास्तविकता का अनुभव होता है, जो आज भी महत्वपूर्ण और प्रेरक है।

Jag Hathvada Swad Thag, Maya Besa Laai,
Ramcharan Neeka Gahi, Jini Jaai Janam Thagaai.

Meaning in English

Kabir Das has given the example that this world is like a marketplace of deception (ignorance, unrighteousness, and attachment), and Maya (ignorance and illusion) is like a deceptive courtesan who tempts people. He has depicted it as a web of illusion and distraction (untruth and unattainable desires). Through this message, he conveys that those who are devoted to Lord Rama (or the Supreme Being) are not ensnared in this web of Maya (illusion). Finding a place at the feet of God leads to endless well-being in their lives.

बंदे खोज दिल हर ऐज नाँ फिर परेसानी माँहि।
यह जु दुनिया सिहरु मेला कोई दस्तगोरी नाहि॥
बैद कतेव इफतरा भाई दिल का फिकरु न जाइ।
हुक दम कराशी जउ करहु हाजिर हजूर खुदाइ॥
दरोगु पढ़ि पढि खुसी होइ बेखबरु बादु बकाहि।
हक साँवि खालिक खलक म्यानै स्याम मूरति नाहि॥
असमान भ्याने लहंग दरिया गुतल करद वूद।
करि फिकिर दाइम लाइ चम्तमैं जहाँ तहाँ मौजूद ॥
अल्लाह पराकपाक है सक करउ जे दूसर कोइ |
केवीर करम करीस का यहु कर जाने सोइ॥ 

कबीरदास जी के अनुसार मनुष्य की महानता उसके उच्च कर्मों और अच्छे कर्मों के कारण होती है। मनुष्य के कर्म ही उसकी पहचान बनाते हैं। वास्तविकता में, कबीर की सामाजिक चिंता उस सच्चे आध्यात्मिक व्यक्तित्व की होती थी, जो मानवतावाद, सर्वात्मवाद और अद्वैतवाद की दृष्टि से समाज को समझता था। यह स्पष्ट तथ्य है कि कबीर की मूल चिंता आध्यात्मिक थी, लेकिन अध्यात्म के क्षेत्र में उनका जागरूक और जागरूक व्यक्तित्व प्रकट होता था।

आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी है कबीरदास जी के बारे में। कबीरदास भारतीय संत एवं रहस्यवादी कवि थे जिनका काव्य और धार्मिक उपदेश आज भी लोगों को प्रेरित करता है। उन्होंने अपने रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य को गहरे स्तर तक प्रभावित किया और भक्ति आंदोलन को मजबूत किया। उनका लेखन सिखों के आदि ग्रंथ में भी प्राप्त होता है।

कबीरदास जी हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों के मानने वाले थे और धर्म में एक सर्वोच्च ईश्वर के विश्वास को प्रचारित करते थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड और अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराईयों की कड़ी आलोचना भी की।

कबीरदास जी के जीवनकाल में हिंदू और मुस्लिम समुदाय दोनों ने उन्हें सहायता की और उनकी शिक्षाओं का अनुसरण किया। उनके उपदेशों का प्रभाव समय के साथ बढ़ता गया और उनके नाम पर "कबीर पंथ" नामक सम्प्रदाय भी पैदा हुआ।
 
कबीरदास जी समाज सुधारक और हिंदी साहित्य के महान समाजकवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के मार्गदर्शन और कल्याण के लिए अनोखे सत्य का प्रचार किया। उनके कविताओं में छल कपट, अंहकार, जाति भेदभाव, धार्मिक पाखंड, आदि के खिलाफ वह सच्चाई और मानवता के प्रशंसक थे।
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