एक ओमकार सतनाम करता पुरखु का हिंदी में अर्थ है की इस सम्पूर्ण जगत का स्वामी एक ही है और वह ही ब्रह्माण्ड का निर्माता है। उसका नाम सत्य है। वह भय से रहित और किसी के प्रति बैर भाव नहीं रखता है। वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त है और स्वंय में ही परिपूर्ण है। यह गुरु साहिब का मूल मन्त्र है।
एक ओमकार- एक परम पूर्ण सत्य ब्रह्म, वाहेगुरु जी। सतनाम- उसी का नाम सत्य है। करता- करने वाला वही पूर्ण सत्य है जो समस्त जीवों की रक्षा करता है। पुरखु- वह सब कुछ करने में पूर्ण है, सक्षम है (ईश्वर) निरभउ- वह पूर्ण रूप से भय रहित है, निर्भय है। जैसे देव, दैत्य और जीव जन्म लेते हैं और मर जाते हैं, वह इनसे भी परे है, उसे काल का कोई भय नहीं है। निरवैरु- वह बैर भाव से दूर है। वह किसी के प्रति बैर भाव नहीं रखता है।
अकाल- वह काल से मुक्त है, वह ना तो जन्म लेता है और नाहीं मरता है। वह अविनाशी है। मूरति-अविनाशी के रूप में वह सदा ही स्थापित रहता है। अजूनी-वह अजन्मा है। वह पूर्ण है और जन्म और मृत्यु के फेर से, आवागमन से मुक्त है। सैभं- वह स्वंय के ही प्रकाश से प्रकाशित है, वह स्वंय में ही रौशनी है। गुरप्रसादि- गुरु के प्रसाद (कृपा) के फल स्वरुप सब संभव है क्योंकि गुरु ही जीवात्मा को अज्ञान से अँधेरे से ज्ञान के प्रकाश की तरफ मोड़ता है।
आपने सही रूप से बताया है कि "एक ओंकार सतनाम करता पुरखु" का हिंदी में अर्थ है कि इस सम्पूर्ण जगत का स्वामी एक ही है और वह ही ब्रह्माण्ड का निर्माता है। उसका नाम सत्य है। इस मंत्र में दोहराया गया है कि वह भय से रहित है और किसी के प्रति बैर भाव नहीं रखता है, वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त है और स्वंय में ही परिपूर्ण है।
यह मंत्र "गुरु साहिब का मूल मंत्र" है, जिसे सिख धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है। इस मंत्र का अर्थ समस्त जीवात्माओं को ब्रह्मा या ईश्वर के एकत्व और सच्चाई को समझाने का प्रयास करता है। इसके माध्यम से, साधक ईश्वर के साथ अपने संबंध को एकत्व और भक्ति के साथ अनुभव कर सकता है, जिससे उसका मार्ग संचित और स्पष्ट होता है।
गुरु साहिब का मूल मंत्र एक प्रकार से एक ब्रह्मग्यानी योगी द्वारा एक ईश्वरीय सत्य के अनुभव को संक्षेप में प्रकट करता है, जिससे सभी मनुष्य आत्मिक उन्नति की ओर प्रगति कर सकते हैं।
मूल मंत्र की पहली पंक्ति "इक ओंकार" है, जिसका अर्थ है "केवल एक ही ईश्वर है"। यह मंत्र गुरु नानक देव जी द्वारा प्रस्तुत किया गया है और इससे सिख धर्म की मूल भावना को संक्षेप में प्रकट किया गया है।
"इक ओंकार" का प्रतीक सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतिक चिह्न है। यह संकेत करता है कि सभी मानव एक ही ईश्वर के अंश हैं और सभी मनुष्यों में एकता और समानता होनी चाहिए। इस मंत्र के माध्यम से सिख समुदाय को भगवान के एकत्व के विश्वास का बोध होता है और वे अपने धर्म के मार्ग में सदैव संयमित और अनुशासित रहने को प्रेरित किए जाते हैं।
गुरुद्वारे और सिख घरों में "इक ओंकार" का प्रतीक अक्सर देखा जाता है। यह प्रतीक सिख समुदाय में एकता, शांति, और सामरस्य की भावना को दर्शाता है और उन्हें अपने समर्पित और आध्यात्मिक जीवन के प्रति प्रेरित करता है। "इक ओंकार" का अभिप्रेत विश्वास सिख धर्म के मूल अद्यात्मिक सिद्धांतों में से एक है और यह सिख समुदाय के अनुयायियों को सदैव सच्चे और प्रेमपूर्वक रहने के लिए प्रोत्साहित करता है।
Ek Omkar Satnam Karta Purakh in Hindi/Punjabi (Gurumukhi) Mool Mantra
जपु आदि सचु जुगादि सच, है भी सचु नानक होसी भी सच। Jap Aadi Sach, Jugaadi Sach,
जपु - जाप करो। ईश्वर के नाम के जाप से ही विकार दूर होने लगते हैं। आदि सचु - अकाल पुरुष इस जगत/श्रष्टि की रचना और निर्माण से पूर्व ही सत्य है। जुगादि सच- वह युगों युगों, युगों के प्रारम्भ से ही सत्य है। है भी सचु - वर्तमान में भी वह सच है, सत्य है। नानक होसी भी सच-भविष्य में भी वह सत्य होगा। इस प्रकार भूत वर्तमान और भविष्य में वह निरंकार, अकाल पुरुष ही स्थापित है।
सोचै सोचि न होवई, जे सोची लख वार, Soche Sochi Na Hovai, Je Sochi Lakh Baar. (ਸੋਚੈ ਸੋਚਿ ਨ ਹੋਵਈ ਜੇ ਸੋਚੀ ਲਖ ਵਾਰ )
सोचै - स्नान करने से कोई शुद्ध नहीं बन जाता है। सोचि न होवई- स्नान आदि बाह्य शुद्धता से कोई शुद्ध नहीं बन सकता है। शुद्ध बनने के लिए मन की निर्मलता का होना आवश्यक है। जे सोची लख वार- चाहे कोई लाख बार स्नान कर ले।
चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार।
Chupe Chup Na Hovai, Je Laai Raha Liv Taar. (ਚੁਪੈ ਚੁਪ ਨ ਹੋਵਈ ਜੇ ਲਾਇ ਰਹਾ ਲਿਵ ਤਾਰ)
चुपै-बाह्य रूप से/भौतिक रूप से चुप हो जाने से चुप्पी नहीं हो पाती है। भाव है की आत्मिक आनंद के लिए मौखिक कोलाहल से दूर रहना और चुप रहना काफ़ी नहीं होता है। चुप न होवई - चुप नहीं हुआ जा सकता है। आत्मिक शीतलता और ठहराव प्राप्त नहीं किया जा सकता है। जे लाइ रहा- जो लगाए रखा। लिव तार - जब तक वह सांसारिकता से जुड़ा रहता है और हृदय से विकारों को दूर नहीं करता है। भाव है की चुप हो जाने से आंतरिक शान्ति (चुप्पी) को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। आंतरिक शान्ति तभी प्राप्त हो सकती है जब जीव अपने हृदय से विषय विकारों को दूर नहीं करता है।
भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार। Bhukhiya Bukh Na Utari, Je Bana Puriya Bhaar. (ਭੁਖਿਆ ਭੁਖ ਨ ਉਤਰੀ ਜੇ ਬੰਨਾ ਪੁਰੀਆ ਭਾਰ)
भुखिआ-भूखे की भूख।
भुख न उतरी-भूख दूर नहीं होती है। जे बंना पुरीआ भार- यदि पुरियों (खाद्य प्रदार्थ) का भार, काफी मात्रा में पुरियों को का भार बना कर, समस्त पुरियों को खा लिया तब भी। भाव है की जो भूखा है उसकी भूख खाने से कभी दूर नहीं होती है। यदि वह इस जगत से समस्त खाद्य प्रदार्थों का बोझ/ भार (खूब सारे) भी ग्रहण कर ले तो भी उसकी भूख दूर नहीं होती है। मन की तृष्ण रूपी भूख को संतृप्त करके दूर नहीं किया जा सकता है।
सहस सिआणपा लख होहि, त इक न चलै नालि। Sahas Siaanapa Lakh Hohi, Te Ik Na Chale Naali. ਸਹਸ ਸਿਆਣਪਾ ਲਖ ਹੋਹਿ ਤ ਇਕ ਨ ਚਲੈ ਨਾਲਿ)
सहस सिआणपा लख होहि -किसी के पास हजारों, लाखों चतुराई हो तो भी वह किसी काम की नहीं है। त इक न चलै नालि- एक भी साथ नहीं चलती है। भाव है की कोई अपने मन में हजारों और लाखों चतुराई कर ले लेकिन उसकी चतुराई से ईश्वर की प्राप्ति सम्भव नहीं है। चतुराई एक तरह से सांसारिक युक्ति है जिसका गहन भक्ति से कोई लेना देना नहीं होता है।
किव सचिआरा होईऐ- कैसे प्रभु के समक्ष सच्चा बना जा सकता है। किव कूड़ै तुटै पालि- कैसे मिथ्या / भ्रम की दीवार को कैसे तोडा जा सकता है। साधक कैसे पूर्णता के प्रकाश को धारण कर सकता है, कैसे वह अपने मालिक के समक्ष सच्चा बन सकता है।
हुकमि रजाई चलणा - ईश्वर की रजा और हुक्म पर चलने से ही। नानक लिखिआ नालि- सतगुरु नानक देव जी ने लिखा है, फ़रमाया है। भाव है की ईश्वर की रज़ा के अनुसार चलने वाला ही जीव सत्य को प्राप्त कर सकता है, यही नानक देव जी की वाणी (कथन) है।
Ek Omkar - Miss Pooja - Shabad Gurbani
गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की नींव रखी थी और उनका जन्म 1469 ईसवी में लाहौर के तलवंडी (अब ननकाना साहिब) में हुआ था। उनका जीवन परमात्मा के प्रति अटूट भक्ति और सेवा में बिता। उन्होंने अपने शिष्यों को भगवान् के सत्य मार्ग की शिक्षा दी और अखंडता और सभी मनुष्यों के भाईचारे का संदेश दिया।
गुरु नानक देव जी के विचारों में समाज के सभी लोगों को समानता, सामंजस्य, और समरसता का संदेश था। उनका उपदेश था कि इस सृष्टि के सभी मनुष्य एक ही परमात्मा के बच्चे हैं और उन्हें भेदभाव नहीं करना चाहिए। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच धार्मिक भेदभाव के खिलाफ उठाव किया और सभी मनुष्यों के लिए धर्मीकरण की आवश्यकता को बताया।
गुरु नानक देव जी के उपदेश ने समाज में एकता और भाईचारे के संदेश को बढ़ावा दिया और सिख धर्म की संस्कृति और तत्त्वों को विकसित किया। उनके शिक्षाओं को उनके बाद के सभी गुरुओं ने अपनाया और सिख धर्म को एक समृद्ध और सामाजिक धरोहर बनाया। उनकी उपास्यता और उनके उपदेश आज भी लाखों लोगों के जीवन में प्रेरणा और दिशा प्रदान कर रहे हैं।