कबीर खेत किसान का मिरगन खाया झारि मीनिंग Kabir Khet Kisan Ka Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit/Bhavarth
कबीर खेत किसान का, मिरगन खाया झारि |
खेत बिचारा क्या करे, धनी करे नहिं बारि ||
Kabir Khet Kisan Ka, Mirag Khaya Jhari,
Khet Bichara Kya Kare, Dhani Kare Nahi Bari.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर साहेब ने मानव शरीर को/देह को एक खेत के समान बताया है। जब खेत की रखवाली नहीं होती है तो हरिणों ने खेत को चर लिया है। इसमें खेत क्या कर सकता है, खेत के मालिक ने ही खेत की रक्षा / देखभाल नहीं की है। आशय है की विषय वासनाएं मृग/हरिण मानव जीवन को बर्बाद कर देती है ऐसे में जीवात्मा को सचेत होकर इसकी रक्षा करनी चाहिए। कबीरदास जी के इस दोहे का अर्थ है कि जीव-किसान के सत्संग और भक्ति रूपी खेत को इन्द्रिय, मन और काम रूपी पशुओं ने एकदम खा लिया है। खेत बेचारे का क्या दोष है, जब स्वामी-जीव रक्षा नहीं करता।
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |