कबीर की जीवनी हिंदी में Kabir Jeevani Kabir Biography Hindi

कबीर की जीवनी Kabir Jeevani Kabir Biography साधारण पुरुष महात्मा संत और समाज सुधारक
कबीर एक महान संत, कवि और रहस्यवादी थे, जिन्होंने 15वीं शताब्दी में भारत में रहकर भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया। उनके विचारों और कार्यों ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने में योगदान दिया।

कबीर की जीवनी हिंदी में Kabir Jeevani Kabir Biography Hindi

जन्म और प्रारंभिक जीवन

कबीर का जन्म 1440 में काशी के पास मगहर में हुआ था। उनके जन्म के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार, एक मुसलमान पादरी की पत्नी ने उन्हें जन्म दिया था। जब पादरी ने बच्चे को देखा, तो वह उसे अस्वीकार कर दिया और उसे एक जुलाहे के घर छोड़ गया। जुलाहे के परिवार ने उसे गोद ले लिया और उसका नाम कबीर रखा।

कबीर के जन्म के बारे में एक और कहानी यह है कि वह एक रहस्यमय व्यक्ति थे जो एक गुफा में रहते थे। एक दिन, एक जुलाहा उनकी गुफा में गया और उन्हें एक बच्चे के रूप में पाया। जुलाहे ने बच्चे को गोद ले लिया और उसका नाम कबीर रखा।

कबीर के जन्म का सही समय और स्थान अज्ञात है। हालांकि, यह माना जाता है कि उन्होंने 15वीं शताब्दी में भारत में रहकर भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया।

कबीर ने अपने प्रारंभिक जीवन में एक जुलाहे के रूप में काम किया। उन्होंने अपनी शिक्षा अपने गुरु से प्राप्त की, जो एक रहस्यवादी संत थे। कबीर ने किसी भी औपचारिक धार्मिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। उन्होंने अपने विचारों और अनुभवों के आधार पर अपनी स्वयं की धार्मिक समझ विकसित की।

कबीर एक प्रतिभाशाली कवि और रहस्यवादी थे। उन्होंने कई दोहे, साखी और रमैनी लिखीं। उनकी रचनाएँ सरल और सीधी भाषा में लिखी गई हैं, लेकिन उनमें गहरा अर्थ छिपा है। उनकी रचनाओं में, उन्होंने प्रेम, करुणा, ईश्वर और आत्मा के रहस्य पर विचार किया है।

कबीर ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने में योगदान दिया। उन्होंने जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने लोगों को प्रेम, करुणा और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनके विचार और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं।

धार्मिक शिक्षा

कबीर ने किसी भी औपचारिक धार्मिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। उन्होंने अपने विचारों और अनुभवों के आधार पर अपनी स्वयं की धार्मिक समझ विकसित की। वह अक्सर हिंदू और मुस्लिम संतों और साधुओं के साथ बहस करते थे।

कबीर के गुरु का नाम रामानंद था, जो एक हिंदू संत थे। रामानंद ने कबीर को भक्ति और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। हालांकि, कबीर ने रामानंद से कोई औपचारिक शिक्षा नहीं प्राप्त की थी। उन्होंने अपने गुरु के विचारों और शिक्षाओं को अपने स्वयं के अनुभवों से जोड़कर अपनी स्वयं की धार्मिक समझ विकसित की।

कबीर के धार्मिक विचारों को निम्नलिखित बिंदुओं में संक्षेपित किया जा सकता है:

ईश्वर एक है और सभी में समान रूप से विद्यमान है।
भक्ति ही ईश्वर तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग है।
जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव गलत है।
कर्म ही जीवन का सार है।
मानव जीवन का उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है।
कबीर के धार्मिक विचारों ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने में योगदान दिया। उन्होंने जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने के लिए आवाज उठाई। उन्होंने लोगों को प्रेम, करुणा और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनके विचार और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं।

भक्ति आंदोलन

कबीर ने भक्ति आंदोलन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सभी धर्मों के लोगों को एक होने और प्रेम और करुणा के मार्ग पर चलने का आह्वान किया। उन्होंने जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। कबीर ने भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति के संदेश को लोगों तक पहुंचाया।

कबीर ने भक्ति आंदोलन के प्रमुख विचारों को आगे बढ़ाया, जैसे कि:

ईश्वर एक है और सभी में समान रूप से विद्यमान है।
भक्ति ही ईश्वर तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग है।
जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव गलत है।
कबीर ने जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि ईश्वर सभी में समान रूप से विद्यमान है और भक्ति ही ईश्वर तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग है। उन्होंने लोगों को प्रेम, करुणा और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

कबीर के विचार और कार्य भक्ति आंदोलन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। उन्होंने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने में योगदान दिया। उनके विचार और मूल्य आज भी प्रासंगिक हैं।

कबीर ने भक्ति आंदोलन को निम्नलिखित तरीकों से योगदान दिया:
उन्होंने ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति के संदेश को लोगों तक पहुंचाया।
उन्होंने जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई।
उन्होंने लोगों को प्रेम, करुणा और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
कबीर भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख संत थे। उनके विचार और कार्य भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किए।

साहित्यिक कार्य


कबीर ने कई दोहे, साखी और रमैनी लिखीं। उनकी रचनाएँ सरल और सीधी भाषा में लिखी गई हैं, लेकिन उनमें गहरा अर्थ छिपा है। उनकी रचनाओं में, उन्होंने प्रेम, करुणा, ईश्वर और आत्मा के रहस्य पर विचार किया है। कबीर एक प्रतिभाशाली कवि और रहस्यवादी थे। उन्होंने कई दोहे, साखी और रमैनी लिखीं। उनकी रचनाएँ सरल और सीधी भाषा में लिखी गई हैं, लेकिन उनमें गहरा अर्थ छिपा है। उनकी रचनाओं में, उन्होंने प्रेम, करुणा, ईश्वर और आत्मा के रहस्य पर विचार किया है।

कबीर की प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ निम्नलिखित हैं:

दोहे: कबीर की सबसे प्रसिद्ध रचनाएँ दोहे हैं। उनके दोहे सरल और सीधी भाषा में लिखे गए हैं, लेकिन उनमें गहरा अर्थ छिपा है। कबीर के दोहे अक्सर धार्मिक और सामाजिक विषयों पर विचार करते हैं।
साखी: साखी कबीर की एक अन्य प्रसिद्ध रचना है। साखी एक प्रकार का गीत है जो एक व्यक्तिगत अनुभव या विचार को व्यक्त करता है। कबीर की साखियों में अक्सर प्रेम, करुणा और आत्म-ज्ञान के विषयों पर विचार किया जाता है।
रमणी: रमैनी कबीर की एक और प्रसिद्ध रचना है। रमैनी एक प्रकार का रहस्यमय गीत है जो अक्सर ईश्वर और आत्मा के रहस्य पर विचार करता है।
कबीर की रचनाओं ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। उनकी रचनाएँ आज भी लोकप्रिय हैं और उन्हें पढ़ा और सुना जाता है।

कबीर की रचनाओं की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

सरलता और सीधी भाषा: कबीर की रचनाएँ सरल और सीधी भाषा में लिखी गई हैं। वह आम आदमी की भाषा का उपयोग करते हैं ताकि उनकी रचनाएँ सभी के लिए समझी जा सकें।
गहरा अर्थ: कबीर की रचनाओं में अक्सर गहरा अर्थ छिपा होता है। वह अक्सर धार्मिक और सामाजिक विषयों पर विचार करते हैं और अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को प्रेरित और शिक्षित करते हैं।
प्रेरणादायक: कबीर की रचनाएँ प्रेरणादायक हैं। वह लोगों को प्रेम, करुणा और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
कबीर की रचनाएँ भारतीय साहित्य और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और उन्हें पढ़ा और सुना जाता है।

मृत्यु

कबीर की मृत्यु 1518 में मगहर में हुई थी। उनकी मृत्यु की आयु 120 वर्ष थी। कबीर ने अपने अंतिम समय में मगहर जाने का फैसला किया, जो एक शहर था जिसे हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए मृत्यु के बाद नरक माना जाता था। कबीर ने इस कदम से यह दिखाने की कोशिश की कि वह किसी भी धार्मिक विश्वासों या रीति-रिवाजों से बंधे नहीं थे।

कबीर की मृत्यु के बाद, उनकी समाधि मगहर में बनाई गई थी। उनकी समाधि आज भी एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है।

कबीर की मृत्यु के बारे में कुछ किंवदंतियाँ भी हैं। एक किंवदंती के अनुसार, कबीर ने अपने शरीर को छोड़ दिया और सीधे स्वर्ग में चले गए। एक अन्य किंवदंती के अनुसार, कबीर ने एक बच्चे के रूप में पुनर्जन्म लिया।

कबीर की मृत्यु भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। उनकी मृत्यु ने एक ऐसे संत के जीवन को समाप्त कर दिया जो जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाते थे। कबीर के विचार और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं और वे लोगों को प्रेम, करुणा और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।


कबीर के विचार


कबीर के विचारों को निम्नलिखित बिंदुओं में संक्षेपित किया जा सकता है:

  • ईश्वर एक है और सभी में समान रूप से विद्यमान है।
  • भक्ति ही ईश्वर तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग है।
  • जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव गलत है।
  • कर्म ही जीवन का सार है।
  • मानव जीवन का उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है।

कबीर की उपलब्धियां


कबीर ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने में योगदान दिया। उन्होंने जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने के लिए आवाज उठाई। उन्होंने लोगों को प्रेम, करुणा और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनके विचार और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं।

कबीर के दोहे सरल और सीधे भाषा में लिखे गए हैं, लेकिन उनमें गहरा अर्थ छिपा है। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से लोगों को जीवन के सत्य और आध्यात्मिकता के बारे में बताया है। उनके दोहे आज भी लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शन करते हैं।

कबीर : साधारण पुरुष, महात्मा, संत और समाज सुधारक

मूल नाम : कबीरा, कबीर। जन्म : 1398 लहरतारा ताल, काशी। भाषा : हिंदी अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी। मुख्य कृतियाँ : साखी, सबद और रमैनी बीजक, बावन-अक्षरी, उलटबासी । निधन 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश में।

जाती पाती से लेना देना नहीं, वैचारिक उग्रता, जबान पर हरदम कड़वा सच, हर पाखंड के तार्कित खंडन को तैयार, देवी देवताओं और मूर्ति पूजा में आस्था नहीं, समाज के लोभी पुरोधाओं का विरोधी, दलित वंचित और हाशिये पर आ चुके लोगों का प्रखर स्वर, प्रचलित साधन मार्ग पर उग्र आक्रमणकारी, जो देखा वो बोला, कागज किताब को हाथ नहीं लगाया, बक्शा किसी को नहीं हिन्दू हो या मुस्लिम ......... नाम कबीर। लोगों का मानना था की काशी में मरने पर स्वर्ग मिलता है........ लेकिन लोगों का भ्रम तोड़ने में अंतिम समय चला गया मगहर।

कबीर का कबीर बनना समाज की जरुरत थी। कबीर स्वयं ना तो गुरु बनना चाहते थे और ना ही महापुरुष। उनकी वेदना थी आम लोगो के दुःख दर्द के प्रति। कबीर का पूरा जीवन समाज में फैले झाड़ झंखाड़ को साफ़ करने में बीता।

कबीर की जीवनी Kabir Jeevani Kabir Biography साधारण पुरुष महात्मा संत और समाज सुधारक कबीर ने जो भी कुछ भी कहा, उस समय की परिस्थितियां कैसी रही होंगी। मध्यकालीन भक्ति काल में सामंतवाद, जातिवाद, धार्मिक आडम्बर, पाखण्ड और मिथ्याचार अपने चरम पर था। समाज के चुनिंदा लोग हर एक विलासिता और साधनों का उपभोग कर रहे थे और हाशिये पर थे दलित। दलितों को हर एक धार्मिक पाखंड को ढोना पड़ता था और उन्हें "मानव" होने के मूल अधिकार से भी वंचित किया हुआ था। पंडितवाद और ब्राह्मणवाद अपने चरम पर था। हर एक धार्मिक मान्यता को तोड़ मरोड़ कर आम लोगों पर लादा जा रहा था। एक और मुस्लिम आक्रमणकारिओं की लूट खसोट थी तो दूसरी और अपने ही लोगों का आर्थिक और सामाजिक उत्पीडन। आम जन जीवन अस्तव्यस्त था। मुस्लिम शासक बात बात पर कर लगाने और युद्ध में आम जनता का खून बहाने को आमादा रहते थे। समाज में असुरक्षा थी। विधर्मी मुगलों का प्रकोप आम जनता पर था और दूसरी तरफ हिन्दू समाज के ठेकेदार स्वयं की अय्याशी और भोग विलास के लिए कर्मकांड और पाखण्ड से निरीह जनता का खून पी रहे थे। सामंत और पंडित मुगलों की चाटुकारिता में व्यस्त थे ताकि उनका उल्लू सीधा हो सके। दोनों के पाटों में आम जनता पिसती चली जा रही थी। समाज आडम्बरप्रिय, विलासोन्मुख, अन्धविश्वासी, अनाचारी और स्वेच्छाचारी हो गया था । द्वेष, इर्ष्या, कलह, छल-कपट, दंभ का बोलबाला था। हिन्दुओं में स्वाभिमान नाम की कोई चीज नहीं बची थी। मुसलमानों में धर्मान्धता इतने जोरों पर थी कि उन्हें और कुछ सूझता ही नहीं था । हिन्दु देवी-देवताओं का अपमान, खिल्ली उड़ाना और मूर्तियों को तोड़ना प्रतिदिन के कार्य हो गये थे।

कबीर को विधिवत तालीम नहीं होने के बावजूद भी पंडितों और मुल्ला मौलवियों को चुनौती देते नजर आये। उन्होंने सर्व धर्मो, शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया और उन्होंने साधना करके बड़ा अनुभव प्राप्त किया था । कबीर के लिखे को समझने के लिए किसी धर्मग्रंथ की आवश्यकता नहीं है, बल्कि वो तो एक निर्मल हवा का झोँका है जिसे महसूस किया जा सकता है। ऐसा कहा जाता है की उन्होंने गुरु नानक, गुरु गोरक्षनाथ से धर्म के विषय पर चर्चा की। धर्म के प्रति उनकी राय थी की धर्म ओढ़ने के लिए नहीं बल्कि आचरण में शामिल करने के लिए है। कबीर ने कभी सुनी सुनाई बातों पर अपनी राय नहीं बनायी बल्कि जो देखा उसे ही लिखा और उदाहरणों के माध्यम से समझाया और इसे ही विश्वसनीय माना, उसी का वर्णन किया। कबीर के अनुयायियों नेउनकी बातों को लिपिबद्ध किया, कबीर ने कभी स्वंय लिखा नहीं क्यों की उन्हें इसका ज्ञान नहीं था।

तू कहता कागद की लेखी,
मैं कहता आँखन की देखी।
तेरा मेरा जियरा कैसे एक होय रे

मसि कागद छूऔं नहीं, कलम गहौं नहि हाथ
चारों जुग कै महातम कबिरा मुखहिं जनाई बात
पूजा पाठ, तीरथ और मूर्तिपूजा के स्थान पर कबीर कर्मवादी हैं। जब सद्गुरु मिलता हैं तभी कल्याण का रह प्रशस्त होता हैं। सद्गुरु ही जीवन को निर्मल बनाता हैं और कमियों को दूर करता है।

तीर्थ गए तो एक फल, संत मिले फल चार।
सदगुरू मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।।
कबीर ने आजीवन आडम्बरों पर कुठाराघात किया और लोगों को कर्मप्रधान जीवन की शिक्षा दी। ये कबीर की अविलक्षण प्रतिभा ही थी की उन्होंने गूढ़ से गूढ़ विचार सरल शब्दों में कह डाली। मूलतः कबीर धार्मिक सुधारक भी हैं। मंदिर और मस्जिद उनकी नजर में धार्मिक दुकाने बनकर रह गयी थी। एक ईमानदार आदमी की तरह जब कबीर धर्म के नाम पर लूट खसोट देखते हैं तो वो चुप नहीं रहते हैं, कबीर का पोंगा पंडितों पर कटाक्ष देखिये

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय
सारे वेद, उपनिषद, और ग्रन्थ पढ़ डालो, जब तक मानवता नहीं है, ज्ञान व्यर्थ है। ये कला है "सहज सत्य को सहज शब्दों में कहने की। एक और जहाँ उन्होंने ब्राह्मणवाद का विरोध किया वही दूसरी और उन्होंने मुस्लिम समाज के आडम्बरों को भी ललकारा।

ना जाने तेरा साहिब कैसा है।
मसजिद भीतर मुल्ला पुकारै, क्या साहिब तेरा बहिरा है
चिंउटी के पग नेवर बाजे, सो भी साहिब सुनता है।
पंडित होय के आसन मारै लम्बी माला जपता है।
अन्दर तेरे कपट कतरनी, सो भी साहब लखता है।
मानव जीवन की महत्ता को बताते हुए कबीर का कहना था की इसे व्यर्थ में गवाना नहीं चाहिए। इसे सद्कार्यों और ईश्वर की भक्ति में बिताना चाहिए। उन्होंने देखा की लोग व्यसनों के जाल में फसकर अपना जीवन ख़राब कर रहे हैं। इसकी कीमत को पहचाने के बजाय इसे व्यर्थ गवाने पर कबीर के विचार हैं की -

रात गंवाई सोय कर, दिवस गवायों खाय ।
हीरा जनम अनमोल था, कौड़ी बदले जाय ।।
बाहर नहीं "सत्य " अंदर ही है, सत्य ही ईश्वर है। ईश्वर की प्राप्ति के लिए किसी बड़े अनुष्ठान की नहीं बल्कि "अहंकार" को मिटाने की आवश्यकता है। यहाँ भी कबीर स्वयं सुधार पर जोर देते जान पड़ते हैं। बाहरी आडम्बर के स्थान पर अंदर झाँकने की आवश्यकता है।

मोको कहां ढूढ़ें बंदे, मैं तो तेरे पास में.
न मैं देवल, न मैं मस्जिद, न काबे कैलास में’

जब मैं था तब हरि नहीं, जब हरि है मैं नहीं।
सब अंधियारा मिट गया दीपक देखा माही।।
ये कबीर व्यक्तित्व का ही विलक्षण रूप है की कबीर को जिस रूप में लोग देखते हैं वैसे ही वो दीखते हैं। एक और वो समाज सुधारक हैं तो दूसरी और वो व्यक्ति में सुधार करके उसे कर्मप्रधान बनाते हैं। धर्म में विसंगति को दूर करके संत दिखाई देते हैं। कबीर ने व्यक्तिगत आचरण की शुद्धता पर बल दिया। बाह्य आडम्बर का त्याग करके स्वयं की कमियों दो दूर करना चाहिए। स्वयं में सुधार करके ही हम समाज सुधार की और अग्रसर हो सकते हैं। वस्तुतः कबीर की लेखनी समाज सुधारक ही थी।अहंकार त्याग कर प्रेम अपनाने से ही समस्त जीव अपने हो जाते हैं।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए
अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होए

मांगन मरण समान है, मत कोई मांगो भीख
मांगन ते मरना भला, यह सतगुरू की सीख।।


लोगों की मान्यता थी की काशी नगरी "मोक्ष दायिनी"है जबकि मगहर के बारे में प्रचलित मान्यता थी की वहां मरने पर स्वर्ग नहीं मिलता और अगले जन्म में व्यक्ति गधा बनता है। मगहर जाने का उद्देश्य था की लोगों के अन्धविश्वाश और रूढ़ि को तोड़ना। जीवन के अंतिम समय में भी मगहर आकर उन्होंने आम लोगों का भरम तोडा। यदि स्वर्ग मिलेगा तो वो काशी में ही क्यों "मगहर " में क्यों नहीं 


यह भी सत्य है की कबीर दास के नाम पर देश भर में कई तरह के पंथ चल गए हैं जो अपने-अपने तरीके से कबीर को परिभाषित करते हैं। कुछ लोगों ने कबीर के उन मूल सिद्धांतों को ही तोड़ दिया है जिनके लिए कबीर ने ता उम्र संघर्ष किया।

मोको कहाँ ढूंढें बन्दे, मैं तो तेरे पास में ।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास में ।
ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलाश में ॥
ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपास में ।
ना मैं क्रिया क्रम में रहता, ना ही योग संन्यास में ॥
नहीं प्राण में नहीं पिंड में, ना ब्रह्माण्ड आकाश में ।
ना मैं त्रिकुटी भवर में, सब स्वांसो के स्वास में ॥
खोजी होए तुरत मिल जाऊं एक पल की ही तलाश में ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूँ विशवास में ॥

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