चतुराई पोपट पढ़ी पडि़ सो पिंजर मांहि मीनिंग
चतुराई पोपट पढ़ी, पडि़ सो पिंजर मांहि
फिर परमोधे और को, आपन समुझै नांहि
Chaturai Popat Padhi Padi So Pinjar Mahi,
Phir Parmodhe Aur Ko, Aapn Samujhe Nahi.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ)
कबीर साहेब इस इस दोहे में किताबी ज्ञान अर्जन को चतुराई ग्रहण करने से समानता बताकर कहा है की जैसे तोता रटंत विद्या से दो चार राम सीखकर दूसरों को जब बोलकर सुनाता है तो वे खुश हो जाते हैं, लेकिन क्या तोता स्वंय उस ज्ञान का लाभ उठा पाने में समर्थ होता है ? ऐसे ही लोग भक्ति के नाम पर शाश्त्रों को रट लेते हैं और उसे बोलकर दूसरों को सुनाकर उनको खुश कर देते हैं लेकिन वे आत्मिक रूप से खोखले होते हैं क्योंकि उन्होंने उस ज्ञान को ना तो समझा है और नाहीं अपने जीवन में उसको उतारा है. संत कबीरदास जी के इस दोहे का आशय यह है कि ज्ञान और चतुराई का कोई महत्व नहीं होता, यदि हम उसका उपयोग दूसरों की भलाई के लिए नहीं करते हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि तोता तो दुनिया भर की चतुराई सीख लेता है। वह तरह-तरह के शब्द बोलना, गाना और नृत्य करना सीख लेता है। लेकिन वह इस चतुराई का उपयोग अपनी मुक्ति के लिए नहीं करता है। वह पिंजरे में ही पड़ा रहता है और दूसरों को उपदेश देता रहता है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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