ऐसो कौ उदार जग माहीं भजन

ऐसो कौ उदार जग माहीं राम भजन

 
ऐसो कौ उदार जग माहीं राम भजन

ऐसो कौ उदार जग माहीं,
बिनु सेवा जो द्रवे दीन पर,
राम सरस कोउ नाहि।

जो गति जोग बिराग जतन,
करि नहिं पावत मुनि ज्ञानी,
सो गति देत गीध सबरी,
कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी।

जो संपति दस सीस अरप,
करि रावण सिव पहँ लीन्हीं,
सो संपदा विभीषण कहँ,
अति सकुच सहित हरि दीन्हीं।

तुलसीदास सब भांति सकल,
सुख जो चाहसि मन मेरो,
तो भजु राम काम सब,
पूरन करहि कृपानिधि तेरो।


Pushottam Das Jalota-Aiso Ko Udaar Jag Mahi

Singer : Pushtottm das jalota
 
यह भाव मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की करुणा और उदारता के उस अमृत स्रोत को प्रकट करता है, जो बिना किसी भेदभाव के, हर जीव के भीतर निवास करने वाली भक्ति की लौ को पहचान लेता है। साधना, योग या ज्ञान से जो स्थिति प्राप्त करना कठिन है, वह श्रीराम के अनुग्रह से सहज ही मिल जाती है। उनका हृदय दीनजन के लिए सदैव पिघलता है—कभी शबरी के जूठे बेर में प्रेम का स्वाद चखते हैं, तो कभी जटायु के अंतिम क्षणों में मोक्ष का वरदान दे देते हैं। यह द्रवित करुणा इस बात का प्रमाण है कि ईश्वर का आशीर्वाद न कर्म से मापा जा सकता है, न ज्ञानेन्द्रियों से; वह केवल हृदय की सच्चाई और समर्पण से प्रस्फुटित होता है। 
 
पुरुष' जिसका अर्थ है मनुष्य या जीव, और 'उत्तम' जिसका अर्थ है श्रेष्ठ या सर्वश्रेष्ठ, इस प्रकार पुरुषोत्तम का अर्थ हुआ "समस्त पुरुषों में श्रेष्ठ"। भगवान राम को पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में राजा, पुत्र, पति, भाई और मित्र के रूप में हर भूमिका का निर्वहन मानवीय और नैतिक मर्यादा के उच्चतम आदर्शों का पालन करते हुए किया; उन्होंने कभी भी धर्म या समाज की स्थापित सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया, भले ही उन्हें व्यक्तिगत रूप से कितने भी कष्ट सहने पड़े हों। वे सत्य, दया, करुणा, और सदाचार जैसे उत्तम गुणों के भंडार हैं, और उनका पूरा जीवन मानवता के लिए एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत करता है जिसका अनुकरण करके कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को संतुलित और धार्मिक बना सकता है, इसलिए वे केवल पुरुष नहीं, बल्कि पुरुषों में उत्तम हैं। 
 
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