निर्गुण पंथ निराला साधो निर्गुण पंथ निराला रे

निर्गुण पंथ निराला साधो निर्गुण पंथ निराला रे

 
निर्गुण पंथ निराला साधो निर्गुण पंथ निराला रे

निर्गुण पंथ निराला साधो, निर्गुण पंथ निराला रे।।
नहीं तिलक, नहीं छाप धारणा, नहीं कंठी, नहीं माला रे,
निशदिन ध्यान लगे हिरदे में, प्रगटे जोत उजाला रे।।

नहीं तीर्थ, नहीं व्रत घनेरे, नहीं तप कठिन कराला रे,
सहजे सुमिरन होवत घट में, सोऽहम जाप सुखाला रे।।

नहीं मूरत, नहीं है कछु सूरत, रूप न रंगत वाला रे,
सब जग व्यापक, घटघट पूरन, चेतन पुरुष बिशाला रे।।

नहीं उत्तम, नहीं नीच न मध्यम, सब समान जगपाला रे,
ब्रह्मानंद रूप पहचानो, तजो सकल भ्रमजाला रे।।


निर्गुण पंथ निराला साधो बाणी ब्रम्हानंद Nirgun Panth Nirala Sadho Bani Brmhanand

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निर्गुण मार्ग साधना की अनुपम पद्धति है, जहां बाहरी चिन्ह जैसे तिलक, छाप, कंठी या माला का कोई स्थान नहीं, अपितु हृदय में निरंतर ध्यान की ज्योति प्रज्वलित होकर आंतरिक प्रकाश फैलाती है। तीर्थयात्रा, घने व्रत या कठोर तपस्या के बंधनों से मुक्त होकर सहज सुमिरन घट में ही संभव होता है, जहां सोऽहम का जाप सुखद अनुभूति प्रदान करता है। यह पथ आंतरिक शुद्धता और सदाचार पर आधारित है, जो गुरु की कृपा से आत्मा को ब्रह्म से एकाकार करने में सहायक बनता है, तथा सामाजिक आडंबरों और रूढ़ियों का खंडन करता है।
 
यह भक्ति पद उस निजभक्ति के अद्वितीय स्वरूप का वर्णन करता है जिसे निर्गुण पंथ कहा गया है — ऐसा मार्ग जहाँ ईश्वर किसी रूप, रंग या मूर्ति में सीमित नहीं, बल्कि चेतना के रूप में हर कण में विद्यमान है। इस पंथ में बाहरी आडंबर, तिलक, माला, व्रत और तीर्थ सब गौण हैं, क्योंकि यहाँ साधना भीतर घट में होती है, जहाँ सच्चा ध्यान और अनुभव प्रकट होता है। साधक को अपने हृदय में वह ज्योति मिलती है जो किसी दीपक से नहीं, बल्कि आत्मचेतना से जलती है। 
 
Saroj Jangir Author Admin - Saroj Jangir

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