निर्गुण पंथ निराला साधो निर्गुण पंथ निराला रे
निर्गुण पंथ निराला साधो निर्गुण पंथ निराला रे
निर्गुण पंथ निराला साधो, निर्गुण पंथ निराला रे।।
नहीं तिलक, नहीं छाप धारणा, नहीं कंठी, नहीं माला रे,
निशदिन ध्यान लगे हिरदे में, प्रगटे जोत उजाला रे।।
नहीं तीर्थ, नहीं व्रत घनेरे, नहीं तप कठिन कराला रे,
सहजे सुमिरन होवत घट में, सोऽहम जाप सुखाला रे।।
नहीं मूरत, नहीं है कछु सूरत, रूप न रंगत वाला रे,
सब जग व्यापक, घटघट पूरन, चेतन पुरुष बिशाला रे।।
नहीं उत्तम, नहीं नीच न मध्यम, सब समान जगपाला रे,
ब्रह्मानंद रूप पहचानो, तजो सकल भ्रमजाला रे।।
नहीं तिलक, नहीं छाप धारणा, नहीं कंठी, नहीं माला रे,
निशदिन ध्यान लगे हिरदे में, प्रगटे जोत उजाला रे।।
नहीं तीर्थ, नहीं व्रत घनेरे, नहीं तप कठिन कराला रे,
सहजे सुमिरन होवत घट में, सोऽहम जाप सुखाला रे।।
नहीं मूरत, नहीं है कछु सूरत, रूप न रंगत वाला रे,
सब जग व्यापक, घटघट पूरन, चेतन पुरुष बिशाला रे।।
नहीं उत्तम, नहीं नीच न मध्यम, सब समान जगपाला रे,
ब्रह्मानंद रूप पहचानो, तजो सकल भ्रमजाला रे।।
निर्गुण पंथ निराला साधो बाणी ब्रम्हानंद Nirgun Panth Nirala Sadho Bani Brmhanand
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Admin - Saroj Jangir
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