दोय बखत नहिं करि सके दिन में करू इकबार

दोय बखत नहिं करि सके, दिन में करू इकबार |
कबीर साधु दरश ते, उतरैं भव जल पार ||

Doy Bakhat Nahi Kari Sake, Din Me Karu Ikbar,
Kabir Sadhu Darash Te Utare, Bhav Jal Paar.

दोय बखत नहिं करि सके दिन में करू इकबार Doy Bakhat Nahi Kari Sake Meaning

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi

कबीर साहेब ने संतों के सानिध्य में रहकर उनके दर्शन करने को अनेकों स्थान पर शुभ और मंगलकारी बताया है। वे कहते हैं की यदि दो वक्त संतों के दर्शन नहीं कर पाएं तो दिन में एक बार अवश्य ही संतों के दर्शन करने चाहिए। साधू / संत के दर्शन से साधक भव सागर से पार उतरता है। इस दोहे में कबीर दास जी संतों के दर्शन के महत्व को बता रहे हैं। वे कहते हैं कि यदि हम दिन में दो बार संतों के दर्शन करने में सक्षम नहीं हैं, तो हमें एक बार भी जरूर करना चाहिए। संतों के दर्शन से जीव संसार-सागर से पार उतर जाता है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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