कबीर संगत साधु की जौ की भूसी खाय हिंदी मीनिंग Kabir Sangat Sadhu Ki Meaning

कबीर संगत साधु की जौ की भूसी खाय हिंदी मीनिंग Kabir Sangat Sadhu Ki Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/ Bhavarth

कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय |
खीर खांड़ भोजन मिलै, साकत संग न जाय ||
 
कबीर संगत साधु की जौ की भूसी खाय हिंदी मीनिंग Kabir Sangat Sadhu Ki Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/ Bhavarth

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi

इस दोहे में कबीर साहेब संतजन/साधू के सानिध्य को श्रेष्ठ स्थान देते हुए वाणी देते हैं की साधू की संगति उत्तम होती है भले ही उनके साथ में रहकर जौ की भूसी खाने को मिले। यदि खीर खांड/मीठे का भोजन साकत के घर पर मिले तो उसका त्याग कर देना चाहिए। अधम और पापी व्यक्ति की संगती नहीं करनी चाहिए और हैं सदा ही संतजन के पास रहना चाहिए भले ही कितने भी कष्टों को सहन करना पड़े।  इस दोहे में संत कबीर दास जी संगत के महत्व पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि भले ही आपको साधुओं की संगत में जौ की भूसी खाना पड़े, लेकिन यह खीर और मिष्ठान आदि का भोजन पाने से कहीं बेहतर है। क्योंकि साधुओं की संगत से आपको ज्ञान और सदाचार की प्राप्ति होती है, जो इस संसार में सफलता और मोक्ष दोनों के लिए आवश्यक है।

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