इन वादियों में बैठे हैं केदारनाथ जी

दब गई है अब धरा,
पाप कर्म से,
मिट रहा है तेरा पुण्य,
अब अधर्म से।
मोह माया के बंधन से,
दूर जा रहा हूं,
मेरे महादेव इस बार मैं भी,
केदारनाथ आ रहा हूं।
जय केदारनाथ।
इन वादियों में बैठे हैं,
केदारनाथ जी,
आदिदेव महादेव,
मेरे भोलेनाथ जी।
सब जीव मरते मरते,
सो पिंड पार करते,
पर मोक्ष उनको मिलता,
केदार जो पहुंचते,
हे पर्वतों के वासी,
केदार के निवासी,
यही वो देवभूमि,
यहां निकली गंगा घाटी।
हम यहां हैं और पहाड़ियों में,
मेरे महादेव का ठिकाना है,
बात सिर्फ इतनी सी है,
इस बार हमें केदारनाथ जाना है,
जय श्री केदार।
दिख रहा है रास्ता,
जाना केदारनाथ,
नाथ मैं अनाथ रख दे,
बाबा सिर पर मेरे हाथ,
इन वादियों में बैठे हैं,
केदारनाथ जी,
आदिदेव महादेव,
मेरे भोलेनाथ जी।
जिस और डोलती पवन,
केदार की गली है,
बैठे हैं महादेव,
बैठी साथ में सती है,
यहां पांडवों की मुक्ति,
यहीं ऋषियों की है भक्ति,
केदार में है देखा,
भीमशीला में कितनी शक्ति,
स्वर्ग से आती हवा,
ब्रह्मांड घूमती है,
भोलेनाथ जी को छू के,
बार बार यह कहती है,
इन वादियों में बैठे हैं,
केदारनाथ जी,
आदिदेव महादेव,
मेरे भोलेनाथ जी।
इन वादियों में बैठे हैं,
केदारनाथ जी,
आदिदेव महादेव,
मेरे भोलेनाथ जी।
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केदारनाथ महादेव की पावन भूमि है, जहां हर भक्त को आत्मिक शांति और मोक्ष की अनुभूति होती है। हिमालय की ऊँचाईयों में स्थित यह धाम, भगवान शिव के दिव्य स्वरूप का प्रतीक है। यहाँ की वादियों में गूंजती महादेव की स्तुति और स्वच्छ हवा मन और आत्मा को शुद्ध करती है। यह वही स्थान है, जहाँ पांडवों ने मोक्ष की प्राप्ति की और जहां आज भी भीमशिला में भगवान शिव की अपार शक्ति का प्रमाण मिलता है। भक्तों का केदारनाथ आना, केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि उनके अटूट विश्वास और भोलेनाथ के प्रति समर्पण का परिचय है। इन पर्वतों और गंगा घाटी की गोद में बैठा केदारनाथ धाम, सचमुच दिव्यता और अध्यात्म का एक अद्वितीय स्थान है। जय केदारनाथ!
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