लेके संजीवनी संकट को मिटाने आजा
लेके संजीवनी संकट को,
मिटाने आजा,
वीर बजरंगी लखन भैया को,
बचाने आजा,
मेरे बजरंगी लखन भैया को,
बचाने आजा।
देर हो जायेगी तो,
प्राण निकल जायेंगें,
मां सुमित्रा को भला कौन,
मुंह दिखायेंगें,
सब कहेंगें की यहां,
राम ने नादानी की,
अपनी पत्नी के लिए,
भाई की कुर्बानी दी,
अपने इस राम को,
अपयश से बचाने आजा,
वीर बजरंगी लखन भैया को,
बचाने आजा,
मेरे बजरंगी लखन भैया को,
बचाने आजा।
दुख में नल नील,
जामवंत और सुग्रीव यहां,
मेरे हनुमंत तुमने,
कर दी इतनी देर कहां,
पुरे ब्रह्मांड में ना ऐसा,
कोई शोक हुआ,
की जिसकी आह से,
आहत ये तीनों लोक हुआ,
गीत अब अनुज का,
देवेंद्र सुनाने आजा,
वीर बजरंगी लखन भैया को,
बचाने आजा,
मेरे बजरंगी लखन भैया को,
बचाने आजा।
लेके संजीवनी संकट को,
मिटाने आजा,
वीर बजरंगी लखन भैया को,
बचाने आजा,
मेरे बजरंगी लखन भैया को,
बचाने आजा।
भावुककर देने वाला दर्द भरा भजन || लेके संजीवनी संकट को मिटाने आजे || देवेंद्र पाठक जी || भक्ति सांग
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