अबरन कौं का बरनिये मोपै लख्या मीनिंग
अबरन कौं का बरनिये मोपै लख्या न जाइ हिंदी मीनिंग
अबरन कौं का बरनिये, मोपै लख्या न जाइ।Abaran Ko Ka Barniye, Mope Lakhya Na Jaai,
Apna Bana Vahiya, Kahi Kahi Thake Mai.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर इस दोहे में सन्देश देते हैं की ईश्वर को शब्दों से परे हैं, उसका क्या वर्णन किया जाय तो वर्णन से भी पार है। मैं उसे कैसे देखूँ जो देखने के लिए मेरी आँखें ही सक्षम नहीं हैं । सबने अपना-अपना ही बाना पहनाया उसे, और कह-कहकर थक गया उनका अन्तर, यही ईश्वर की माया है।
कबीरदास जी कहते हैं कि उस वर्णन रहित (अबरन), निराकार परम सत्ता का वर्णन कैसे किया जाए, क्योंकि वह मेरी समझ और दृष्टि (मोपै लख्या न जाइ) की सीमा से परे है। उसे शब्दों में बाँधना असंभव है, क्योंकि वह किसी भी रूप-रंग या विशेषताओं से मुक्त है। इस कारण, लोगों ने उस अवर्णनीय सत्ता को अपनी-अपनी समझ और विचारों के अनुरूप (अपना बाना) पहना दिया है—यानी उसे विभिन्न धर्मों, नामों और रूपों में बाँट दिया है, जैसे राम, रहीम, अल्लाह, या ईसा। इन विभिन्न रूपों का वर्णन करते-करते और उसे परिभाषित करते-करते सबका अन्तर (माइ/मन) थक गया है, फिर भी कोई उसके वास्तविक, अनिर्वचनीय स्वरूप को पूरी तरह से नहीं जान पाया है। यह दोहा बताता है कि सच्चा ज्ञान शब्दों से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत अनुभव और साधना से ही प्राप्त हो सकता है, क्योंकि ईश्वर की माया ही ऐसी है कि वह सबको अपने-अपने तरीके से भ्रमित करती है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |
