काबा फिर कासी भया राम भया रहीम मीनिंग कबीर के दोहे

काबा फिर कासी भया राम भया रहीम मीनिंग Kaaba Phir Kasi Bhaya Ram Bhaya Raheem Meaning

काबा फिर कासी भया, राँम भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीभ॥ 

Kaaba Phir Kaasee Bhaya, Raanm Bhaya Raheem.
Mot Choon Maida Bhaya, Baithi Kabeera Jeebh. 
 
काबा, कशी, राम और रहीम का भेद समाप्त हो जाता है जब भक्तिमार्गी संतजन मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हैं। पाप और पुन्य सूक्ष्म रूप में परिवर्तित हो गए हैं और साहेब इसका अनुसरण करने लगे हैं। 

कबीर मधि अंग जेको रहै, तौ तिरत न लागै बार।
दुइ दुइ अंग सूँ लाग करि, डूबत है संसार॥

Kabīra Madhi Aṅga Jēkō Rahai, Tau Tirata Na Lāgai Bāra.
Du'i Du'i Aṅga Sūm̐ Lāga Kari, Ḍūbata Hai Sansāra. 
 
जो भी इस इस जीवन में मध्यम मार्ग का अनुसरण करता है उसे भव से पार होने में थोडा भी समय नहीं लगता है। जो भी दो अत्यंत विरोधी मार्गों का अनुसरण करता है वह इस भव सागर से डूब जाता है। भाव है की अत्यंत कठिन और अत्यंत सरल के स्थान पर बीच का मार्ग अपनाना श्रेष्ठ होता है। सहज भक्ति ही मुक्ति का द्वार है।

कबीर दुविधा दूरि करि, एक अंग ह्नै लागि।
यहु सीतल वहु तपति है दोऊ कहिये आगि॥
Kabeer Duvidha Doori Kari, Ek Ang Hnai Laagi.
Yahu Seetal Vahu Tapati Hai Dou Kahiye Aagi. 
 
दुविधा दूर करके संशय को मिटा करके मध्यम मार्ग का अनुसरण करने वाला ही भव से पार होता है। अत्यंत शीतल और अत्यंत अग्नि दोनों ही अग्नि जैसे हैं। भाव है की मध्यम मार्ग ही श्रेयकर होता है।

राम भजन भजियो नही
नही कियो हरी सूं हेत
अब पछताया क्या करे
जब चिड़िया चुग गयी खेत

करना रे होय सो कर ले रे साधो
मानख जनम दुहेलो है
लख चौरासी में भटकत भटकत
थारे अब के मिल्यो महेलो हैं
जप तप नेम व्रत और पूजा
षट दर्शन को गेलो है
पार ब्रह्म को जानत नांहीं
भूल्या भूल्या भरम बहेलो है

कोई कहे हरि बसे वैकुंठा
कोई गौ लोको है
कोई कहे शिव नगरी में साहिब
जुग जुग हाट बहेलो है

अणसमझ्या हरि दूर बतावे
समझ्या साथ कहेलो है
सदगुरु सैण अमोलक दीन्ही
हर दम हर को गेलो है
जिया राम गुरु पूरा म्हाने मिल गया
कोई अजपा जाप जपेलो है
कहे बनानाथ सुनो भाई साधो
म्हारा सदगुरु जी को हेलो है

अनल अकाँसाँ घर किया, मधि निरंतर बास।
बसुधा ब्यौम बिरकत रहै, बिनठा हर बिसवास॥
Anal Akaansaan Ghar Kiya, Madhi Nirantar Baas.
Basudha Byaum Birakat Rahai, Binatha Har Bisavaas.

आत्मा ईश्वर के ज्ञान के तेज में प्रकाशित होकर ब्रह्म रथ में निवास करने लगी है। अब वह आकाश और पृथ्वी दोनों से मुक्त होकर स्वतंत्र हो गई है। भाव है की जीवात्मा अमर हो गई है, मुक्त हो गई है।

बासुरि गमि न रैंणि गमि, नाँ सुपनै तरगंम।
कबीर तहाँ बिलंबिया, जहाँ छाहड़ी न घंम॥
Baasuri Gami Na Rainni Gami, Naan Supanai Taragamm.
Kabeer Tahaan Bilambiya, Jahaan Chhaahadee Na Ghamm.

जहाँ पर दिन रात और सपने में भी लोग प्रवेश नहीं कर सकते हैं वहा पर साहेब ने प्रवेश किया है । भाव है की साहेब ने भक्ति की चरम स्थिति को प्राप्त कर लिया है।

जिहि पैडै पंडित गए, दुनिया परी बहीर।
औघट घाटी गुर कही, तिहिं चढ़ि रह्या कबीर॥
Jihi Paidai Pandit Gae, Duniya Paree Baheer.
Aughat Ghaatee Gur Kahee, Tihin Chadhi Rahya Kabeer. 
 
पंडितों ने जिस मार्ग को अपनाया, जिस मार्ग पर पंडित चले उस पर तो सारा संसार ही चल पड़ा है लेकिन साहेब को जो मार्ग गुरु ने बताया वह उस मार्ग पर चलकर बहुत ही दुर्गम स्थान पर पंहुच गए हैं। भाव है की देखा देखी के स्थान पर गुरु के बताए मार्ग का अनुसरण ही श्रेष्ठ होता है।

श्रग नृकथै हूँ रह्या, सतगुर के प्रसादि।
चरन कँवल की मौज मैं, रहिसूँ अंतिरु आदि॥
shrag nrkathai hoon rahya, satagur ke prasaadi.
charan kanval kee mauj main, rahisoon antiru aadi. 
 
सतगुरु की प्रसादी/सतगुरु की कृपा से साहेब स्वर्गलोक के लालच से दूर रहे, और हरी के चरण कमल में आनंद रूप से रह रहे हैं। भाव है की गुरु के बताए गए मार्ग का अनुसरण करना ही हितकर होता है।

हिंदू मूये राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, दुइ मैं कदे न जाइ॥
Hindoo Mooye Raam Kahi, Musalamaan Khudai.
Kahai Kabeer So Jeevata, Dui Main Kade Na Jai. 
 
हिन्दू राम राम कहते हुए और मुस्लिम खुदा का नाम जपते जपते मर गए हैं लेकिन किसी को भी भेद की प्राप्ति नहीं हुई है। केवल ब्रह्म के उपासक ही जीवित रहे हैं। भाव है की निराकार ब्रह्म ही मुक्ति का द्वार है।

दुखिया मूवा दुख कों, सुखिया सुख कौं झूरि।
सदा आनंदी राम के, जिनि सुख दुख मेल्हे दूरि॥
Dukhiya Moova Dukh Kon, Sukhiya Sukh Kaun Jhoori.
Sada Aanandee Raam Ke, Jini Sukh Dukh Melhe Doori. 
 
 दुःख से लोग पीड़ित हैं सुखी और अधिक सुख की खोज में व्यस्त है, राम भक्त दुःख और सुख दोनों से ही परे हैं और मस्त रहते हैं । भाव है की राम के भक्त दुख और सुख दोनों से ही परे हैं और खुश रहते हैं। वस्तुतः वे भौतिक सुख सुविधाओं से परे रहकर परम आनंद को प्राप्त होते हैं ।

कबीर हरदी पीयरी, चूना ऊजल भाइ।
रामसनेही यूँ मिले, दुन्यूँ बरन गँवाइ॥
kabeer haradee peeyaree, choona oojal bhai.
raamasanehee yoon mile, dunyoon baran ganvai.


जो रामस्नेही होते हैं, भक्तजन होते हैं वे मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हैं । हल्दी पीली होती है और चुना सफ़ेद होता है लेकिन संतजन इन दोनों को ही छोड़ कर भक्ति के प्रेम रंग का चुनाव करते हैं । भाव है की भक्ति मार्गी मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हैं।

धरती अरु आसमान बिचि, दोइ तूँबड़ा अबध।
षट दरसन संसै पड़ा, अरु चौरासी सिध॥
Dharatī Aru Āsamāna Bici, Dō'i Tūm̐baṛā Abadha.
Ṣaṭa Darasana Sansai Paṛā, Aru Caurāsī Sidha.


पृथ्वी और आकाश दो तुम्बों से समान है, जिन्हें बाँधना संभव नहीं है। शट दर्शन और चौरासी सिद्ध संशय में पड़े रह गए हैं। भाव है की भक्ति हेतु मध्यम और सहज मार्ग ही उचित रहता है।

षीर रूप हरि नाँव है नीर आन ब्यौहार।
हंस रूप कोई साध है, तात को जांनणहार॥
Sheer Roop Hari Naanv Hai Neer Aan Byauhaar.
Hans Roop Koee Saadh Hai, Taat Ko Jaannanahaar.


हंस रूपी साधू और संत सार तत्व के ज्ञाता होते हैं। ईश्वर का नाम और माया इस संसार में दूध और जल की भाँती आपस में मिले हुए हैं। हंस के समान साधू और संतजन व्यक्ति इसके भेद को पहचान लेते हैं। संत जन दूध और पानी के भेद को समझ कर ईश्वर तत्व को ग्रहण कर लेते हैं और माया तो छोड़ देते हैं।

कबीर साषत कौ नहीं, सबै बैशनों जाँणि।
जा मुख राम न ऊचरै, ताही तन की हाँणि॥
Kabeer Saashat Kau Nahin, Sabai Baishanon Jaanni.
Ja Mukh Raam Na Oocharai, Taahee Tan Kee Haanni.


 समस्त प्राणी वैष्णव ही हैं कोई भी शाक्य नहीं है, लेकिन मुख से श्री राम के नाम का उच्चारण नहीं करते हैं इसलिए उनका नाश हो जाता है।

कबीर औगुँण ना गहैं गुँण ही कौ ले बीनि।
घट घट महु के मधुप ज्यूँ, पर आत्म ले चीन्हि॥
Kabeer Augunn Na Gahain Gunn Hee Kau Le Beeni.
Ghat Ghat Mahu Ke Madhup Jyoon, Par Aatm Le Cheenhi.

 
दूसरों के अवगुणों की और ध्यान नहीं देना चाहिए और उसके गुणों को चून चुन कर ग्रहण करने चाहिए। जैसे एक मधुमक्खी विभिन्न पुष्पों से रस को एकत्रित करके मधु का निर्माण करती है ऐसे ही हमें सभी की गुणों को अपना लेना चाहिए। भाव है की हमें अपना ध्यान दूसरों के अवगुणों के स्थान पर गुणों पर लगाना चाहिए और उनको अपने जीवन में उतार लेना चाहिए, अवगुणों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।


बसुधा बन बहु भाँति है, फूल्यो फल्यौ अगाध।
मिष्ट सुबास कबीर गहि, विषमं कहै किहि साथ॥
Basudha Ban Bahu Bhaanti Hai, Phoolyo Phalyau Agaadh.
Misht Subaas Kabeer Gahi, Vishaman Kahai Kihi Saath.


वन बिभिन्न वसुधा रूपी बन कर तमाम तरह के फल और फूलों से लदा हुआ है, हमें मीठे फलों को ग्रहण करना चाहिए, कड़वे फलों को एकत्रित करने से क्या लाभ होने वाला है ? कुछ भी नहीं । भाव है की यह संसार गुण और अवगुणों से भरा हुआ है, व्याप्त है जिसमे से हमें सद्गुणों को ग्रहण कर लेना चाहिए और अवगुणों का त्याग कर देना चाहिए।

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1 टिप्पणी

  1. Anand hi anand