बालम आवो हमारे गेह रे मीनिंग
बालम, आवो हमारे गेह रे।
तुम बिन दुखिया देह रे।
सब कोई कहे तुम्हारी नारी, मोकों लागत लाज रे।
दिल से नहीं दिल लगाया, तब लग कैसा सनेह रे।
अन्न न भावै नींद न आवै, गृह-बन धरै न धीर रे।
कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे।
है कोई ऐसा पर-उपकारी, पिव सों कहै सुनाय रे।
अब तो बेहाल कबीर भयो है, बिन देखे जिव जाय रे॥
इस दोहे में कबीर साहेब बालम/ईश्वर को अपने घर बुलाते हुए कहते हैं, की बालम आओ हमारे घर ! ईश्वर के अभाव में तन मन दुखी रहता है। समाज के सभी लोग मुझे तो आपकी दुल्हन/पत्नी कहते हैं और ऐसा सुनकर मुझे शर्म/लाज आती है। आपने कभी हृदय से मुझे अपनाया ही नहीं, ऐसे में ये कैसा प्रेम है ? मुझ जीवात्मा को खाना पीना अच्छा नहीं लगता है और नाहीं मुझे नींद ही आती है। मेरा हृदय बेचैन रहता है। मुझे अपने घर और वैराग्य/वन में कहीं पर भी अच्छा नहीं लगता है। जैसे प्यासे व्यक्ति को पानी अच्छा लगता है वैसे कामिनी स्त्री को अपने प्रियतम ही अच्छे लगते हैं। कोई मुझ पर उपकार करके मेरा सन्देश मेरे प्रियतम के पास पंहुचा दे की कैसे मैं व्यथा में हूँ। प्रियतम के दर्शन के अभाव में जीवात्मा जी रही है। कबीर इस दोहे में प्रेम की तीव्रता और विरह की पीड़ा का वर्णन करते हैं। कबीर कहते हैं कि प्रेमी के बिना प्रेमिका का मन-तन दुख से भर जाता है। उसे सब कुछ नीरस लगने लगता है। वह खाना-पीना, सोना-जागना, घर में रहना-वन में जाना, सब कुछ भूल जाती है। उसे बस अपने प्रेमी की याद सताती रहती है।आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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