मैंनूं तेरे कोल रेहण दा चाह भजन
मैंनूं तेरे कोल रेहण दा चाह सतगुरु भजन
मैंनूं तेरे कोल रेहण दा चाह,
कर ले कबूल अर्ज़ी,
भावे रख ले ते भावे ठुकरा,
कर ले कबूल अर्ज़ी।
तेरे द्वार आई हां मैं,
सारा जग छड के,
होर कित्थे जावां हुन,
खाली झोली अड के,
मेणू प्यार वाली खैर तू पा,
कर ले कबूल अर्ज़ी।
भगवाले होंदे ने,
जिन्हूं तू बुलांदा ए,
कर्मा वाले होंगे जिन्हूं,
गल नाल लाणा ए,
कस्सी सानूं वी कोल बिठा,
कर ले कबूल अर्ज़ी।
सोहनी तेरी नगरी,
ते रौनका तू लइया ने,
प्यार तेरा पाण लई,
संगता ए आईया ने,
साडे दिल वाली नगरी वसा,
कर ले कबूल अर्ज़ी।
मैंनूं तेरे कोल रेहण दा चाह ,
कर ले कबूल अर्ज़ी,
भावे रख ले ते भावे ठुकरा,
कर ले कबूल अर्ज़ी।
SSDN BHAJAN ।। Bhajan: मेनू तेरे कोल रहन दा चाह ।। Lyrics in Description
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Kar le kabul arzi
Bhave rakh le te bhave thukra
Kar le kabul arzi
यह रचना परम भक्ति की उस सरल और सच्ची भावना को प्रकट करती है, जिसमें मनुष्य अपने भगवान से किसी तर्क, किसी शर्त के साथ नहीं, बल्कि पूर्ण समर्पण के साथ संवाद करता है। यह किसी प्रार्थना से अधिक एक आत्मीय निवेदन है—“मुझे अपने पास रख लो।” यहाँ कोई लौकिक माँग नहीं, केवल नज़दीकी की चाह है। संसार की थकान, अपेक्षाओं और निराशाओं के बीच यह आत्मा अपने विश्वासी से एक ही प्रार्थना करती है कि “अब कहीं नहीं जाना, बस तेरे चरणों में ठहर जाना है।” यही वह भाव है जहाँ प्रेम पूजा बन जाता है और भक्त प्रार्थक नहीं, परिवारिक समर्पित बन जाता है।
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