सुनता नहीं धुन की ख़बर हिंदी मीनिंग Sunata Nahi Dhun Ki Khabar Meaning

सुनता नहीं धुन की ख़बर हिंदी मीनिंग Sunata Nahi Dhun Ki Khabar Meaning : Kabir Ke Pad Hindi Arth/Bhavarth Sahit

सुनता नहीं धुन की ख़बर, अनहद का बाजा बाजता।
रस मंद मंदिर बाजता, बाहर सुने तो क्या हुआ।
इक प्रेम-रस चाखा नहीं, अमली हुआ तो क्या हुआ॥
क़ाज़ी किताबें खोजता, करता नसीहत और को।
महरम नहीं उस हाल से, क़ाज़ी हुआ तो क्या हुआ॥
जोगी दिगंबर सेवड़ा, कपड़ा रँगे रंग लाल से।
वाक़िफ़ नहीं उस रंग से, कपड़ा रँगे से क्या हुआ॥
मंदिर-झरोखा-रावटी, गुल चमन में रहते सदा।
कहत कबीरा है सही हर दम में साहिब रम रहा॥
 
 
सुनता नहीं धुन की ख़बर, अनहद का बाजा बाजता मीनिंग : कबीर जी कहते हैं कि अनहद नाद हर जगह बज रहा है, लेकिन लोग उसकी धुन नहीं सुन पा रहे हैं। अनहद नाद का अर्थ है वह शाश्वत ध्वनि जो ब्रह्मांड में व्याप्त है। यह वह ध्वनि है जो प्रेम और आनंद का प्रतीक है। कबीर साहेब की वाणी है की ब्रह्मनाद चारों तरफ बज रहा है। अनहद का बाजा बज रहा है। हृदय के मंदिर में यह नाद बज रहा है, इस नाद को शरीर से बाहर आकर सुनने से क्या फायदा है। तुमको इसकी धुन नहीं है तो बाहर इसकी ख़बर  लेने से क्या फायदा। तुम रस के प्रेमी हो/ अमली हो तो इसका क्या फायदा यदि तुम अपने हृदय के रस का पान नहीं कर पा रहे हो। 
 
काजी किताबों में इस ज्ञान को खोजने में लगा है लेकिन दूसरों को तमाम तरीके की नसीहते देता है। आशय है की वह दूसरों को नसीहते देता है लेकिन स्वंय उस पर गौर नहीं करता है। यदि मरहम (गूढ़ ज्ञान) नहीं है तो काजी होने से क्या फ़ायदा है। योगी अपने वस्त्रों को लाल रंग से रंग लेता है लेकिन वह वास्तविक ज्ञान को जान नहीं पाता है। यदि उस ज्ञान से वह वाकिफ/जानकार नहीं है तो ऐसे में कपड़ों को रंगने का क्या फायदा होने वाला है। मंदिर में बैठना, झरोखों में झाँकना, अटारियों पर ध्यान लगाना और बाग़-बग़ीचों में सैर करना कोई महत्त्व नहीं रखता है, ये सब बेकार है। कबीर साहेब कहते हैं की साहेब तो प्रत्येक सांस में रम रहे हैं। 

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