कल्कि और काली Rap Narci Kalki Aur Kali Bhajan

कल्कि:
मुझे देख कर अचंभित मत हो,
मैं तुम्हारा ही सत्य हूँ,
मैं आप सबको नैतिकता के,
उस अंधकार से,
मुक्ति दिलाने आया हूँ,
जो आपको जीवन के,
सुखों से वंचित रखता है,
आपको लगता है ईश्वर है,
और वो आपकी रक्षा करेगा,
परंतु कलयुग में जीवन और मृत्यु की,
डोर केवल काली के हाथों में है।
काली:
नाम मेरा छोटा पर काम है प्रचंड,
पुण्य पाप के बनाता मैं मनों में द्वंद,
हाज़िरी है तेरी पर फिर भी मुझको मानते,
हारी मेरी बातें क्या दे रही हैं रंज,
तू आया सारे युगों में मिटाने कई धूर्त,
अभी तू है नीचे और थामी मैंने ऊंच,
ना कालनेमी, कंस, ना रक्तबीज, रावण,
सारे दुर्जन सा हूँ नहीं मैं मूर्ख,
तेरी प्राणी तेरा नाम लेके हां बवाल करे,
तेरे प्राणी तेरी धरा क्रूरता से लाल करे,
तेरे प्राणी तेरा नाम लेके मैली चाल चले,
तेरे प्राणी तेरे ही वजूद पे सवाल करे,
धर्म की ये नौका खड़ी बीच में ही तेरी,
दिल पे सारी बातें प्राणी खींच रहे मेरी,
ये सारे मेरे पार्थ और इनका मैं सारथी,
स्वयं ही बता दे क्या ये जीत नहीं मेरी।
कल्कि:
बातें बड़ी बोलके तो स्वयं बना मुनि,
स्वयं बातें बोली सौ, मेरी नहीं सुनी,
खुद ही सवाल और खुद ही जवाब,
अनूठी तूने काली भला क्रिया क्या ही चुनी,
युगों वाली यात्रा का तूने क्यों है भार पाला,
लीला की कहानियों को जानता संसार सारा,
बाद सेतु पूर्ति के मिला था लंकेश से,
पर सही समय पर उसको भी मार डाला,
झूठा नाम लेने वाले घूमे सरेआम हैं,
राजनीति खेलेंगे ये माना मेरे नाम पे,
स्वांग भी तो रचेंगे, पैसा भी कमाएंगे,
वेद पेश करेंगे ये अपने ही नाम से,
नौका में विराम है ये भूल तूने पाली,
काली तेरे पार्थ भी हैं तेरी तरह खाली,
नौका की तू बात करे भूल कैसे गया पर,
मत्स्य ने कैसी थी नौका वो संभाली।
काली:
तथ्यों पे आता हूँ मैं बाकी बातें छोड़,
आधुनिक भाषा के सुनाता हूँ मैं बोल,
आज की ये पीढ़ी कैसे करती है बात,
उन्हीं बातों का हां हरी अब सुनेगा तू शोर,
विकास लाया सृष्टि में नाम नया नेट,
पर वर्ल्ड वाइड वेब ही ये बन चुका है जाल,
त्रेता में रिश्तों का देखा था सम्मान,
पर आज तेरे प्राणी यहाँ ढूंढते इन्सेस्ट,
डार्क वेब साइट का तो सुना होगा नाम ये,
मांस अपना चीरते हैं फेंके हुए दाम पे,
मानव तस्करी से लेकर होते मैले काम हैं,
मानवता है कहाँ अब बोल तेरे स्थान में,
दिल बहलाने हेतु बच्चों को यातना,
रक्तपात बिना कोई चाहता नहीं वासना,
कहाँ तेरी गीता और कहाँ उपदेश है,
काले इस सत्य से हरि अब भाग ना।
कल्कि:
धरा में क्या हो रहा है मैं नहीं अनजान हूँ,
तथ्यों का भारी क्यों दे रहा है ज्ञान तू,
बातें करे ऐसे जैसे चिंता है सृष्टि की,
मानवों पे छोड़ रहा पाप भरे बाण तू,
विकास के तो होते हैं पक्ष और विपक्ष,
कोई बस पापों को बना लेता है लक्ष्य,
पुष्पक का ले ले तू फिर ज़रा उदाहरण,
विमान कैसे कार्यों को ले गया था दुष्ट,
मानवता की सीमा यहाँ लांघ चुके प्राणी हैं,
लीला विध्वंस की तो अभी और आनी है,
ज्ञानी यहाँ होने को तो सब दावा करेंगें,
पर वही लगेगा जो सत्य में ज्ञानी है,
अठारह दिनों तक क्यों लड़ा भला युद्ध,
जब कुछ ही पलों में रोक सकता था खुद,
लीला मेरी काली तेरी सोच से है परे,
अब देवदत्त होगा मेरा युद्ध में गरुड़।
काली:
क्या बातें मेरी बाणों जैसी चुभ रही तीव्र,
प्राणी और दोगले भी बनेंगे हां शीघ्र,
धार्मिक स्थलों पे ये नाचें तेरा नाम ले,
भक्ति से ज्यादा इन्हें व्यूज़ की है फिक्र,
फूंकते हैं गांजा ये नाम लेके भोले का,
रील्स में तो राधे राधे हर प्राणी बोलेगा,
पूछ लो सवाल आध्यात्मिक एक इन्हें,
ढोंगियों में मुँह फिर कोई नहीं खोलेगा,
धर्म को मिटाने की शक्ति है वैसे,
काली जैसी सोच अब सबकी है वैसे,
भक्तों के मुँह से सुना कल्कि तो वैसे,
दिखावे को जो होती वो भक्ति है कैसे,
अरे जा, बात जमती ना वैसे,
सोच तेरे प्राणियों की हल्की है वैसे,
जन तेरे चल पड़े धर्म के विरुद्ध तो,
धर्म की लड़ाई हुई कल्कि ये कैसे।
कल्कि:
सारे लगे काली तुझे क्योंकि तू अधर्मी,
भक्ति ना बची काली ये है तेरा भ्रम ही,
टूटेगा ये भ्रम सारा समय का है खेल,
अंततः मैं जीतूंगा देखना हां धर्म ही,
देखते हैं रुद्र प्राणियों की त्रुटि,
लीला हरि हर की तो वैसे है अभूति,
जो करते हैं ढोंग वो स्वयं भी ना जानते,
हृदय वाली भक्ति ही नारायण को छूती,
धर्म तू मिटा दे, नहीं तेरे में है साहस,
मानवों के मन तू करना जाने आहट,
उन्हें कैसे करेगा काबू तू बता,
जिन्हें सुनते नहीं हैं तेरे लोभ के पखावज,
चाहे बहला ले या कपटी कोई चाल चले,
आएंगे ना जन मेरे कभी तेरे जाल तले,
धर्म को मिटाएगा तू कैसे भला काली,
मेरे प्रिय भक्त धर्म की है ढाल बने।
काली:
जिस सुरक्षा और न्याय व्यवस्था पर,
तुम विश्वास रखते हो,
जिन कायरों को तुमने नायक बना दिया है,
वो इन्हीं स्थानों पर उपस्थित हैं,
परंतु वो भी लाचार होकर काली की,
लिखी हुई नियति को पूरा होते देखेंगे।
भय लाया मेरा अब चारों दिशा जान जाए,
दल में ना मेरे हैं जो सारे शमशान जाए,
जीत मेरी तय चाहे युद्ध घमासान आए,
सात चिरंजीवी या चाहे हनुमान आए,
प्राणी तेरे छोड़ेंगे ना लोभ की ये त्रुटि,
वासना बुझाने को तो आबरू भी लूटी,
मदिरा की लत बोल कितनों की छूटी,
सोने को हां देख कभी आत्मा ना रूठी,
कल्कि तू बातें वैसे करता है भारी,
द्वापर में जुए की भी चली थी ना आरी,
तेरे पाँच पांडवों ने क्यों खेला जुआ और,
जुए में लगा डाली थी स्वयं की ही नारी,
मैं जैसा करवाऊंगा ये वैसा ही तो करेंगे,
भक्ति के रास्ते पे दो ही दिन चलेंगे,
स्वयं चाहे देख लेना हाल तेरे प्राणियों के,
मेरी फेंकी आदतों पे प्राणी तेरे पलेंगे।
कल्कि:
सोने से तबाही काली तूने ही तो लाई थी,
वासना की आग ज्यादा तूने ही लगाई थी,
स्वर्ण से बनी थी ना लंका वो पूरी,
याद कर ज़रा सारी किसने जलाई थी,
धर्म छोड़ यदि कोई तेरे पीछे आएगा,
भक्त को बचाने मेरा रूप आड़े आएगा,
बात यदि माना तो साथ मेरे जाएगा,
माना नहीं यदि तो वो स्वयं पछताएगा,
भूल कर पांचों परिणाम आगे पेश थे,
धर्म के वो रास्ते पे चल रहे थे वेग से,
साक्षी है युद्ध महाभारत का बाकी,
कौन वहाँ मरे और कौन वहाँ शेष थे,
सृष्टि में माना फैले छल अभी तेरे सब,
खोखले ही प्राणी तेरे ले रहे हैं फेरे सब,
समय ही दिखाएगा तुझे सच्चा आईना,
ताज तेरा पड़ा होगा चरणों पे मेरे तब।
काली:
काली ही रहेगा अब फिर से ना त्रेता होगा,
आगे मेरे हरि तेरा भक्त भी तो लेता होगा,
दशम अवतार तेरा सर थामे बैठा होगा,
इस बार पर धर्म ना विजेता होगा।
कल्कि:
युद्ध ऐसा देखेगा जो कभी भी ना देखा होगा,
तेरा यही भ्रम तब तोड़ के ही फेंका होगा,
बात करे क्या ही तू काली इस बार की,
आने वाले युगों में धर्म ही विजेता होगा।
कल्कि:
सामने आने की हिम्मत नहीं हुई,
मुझे लगा आज तुम सामने आओगे।
काली:
मैं छुपा नहीं हूँ,
मेरा सत्य तो सभी जानते हैं,
पर आज विश्व तुम्हारा सत्य देखेगा,
आज सबको पता चल जाएगा,
तुम अवतार हो या,
किसी का रचाया एक ढोंग।
जो मार्ग मैंने चुना है,
वो न्याय का है।
कल्कि:
निर्दोषों को मारना,
कभी न्याय नहीं हो सकता।
Kalki Aur Kali | Narci | Hindi Rap (Prod. By Narci)
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Song: Kalki Aur Kali
Rap: Narci
Lyrics: Narci
Music, Mixing & Mastering: Narci
Artwork/Poster & Visuals: iKillGraphix
Voice(s) used in the song: Asur (Television series)
Visuals used in the song: The Legend of Hanuman & Bramayugam
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Author - Saroj Jangir
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