तेरी चौखट पे अपना दम तोड़ जाऊंगा
तेरी चौखट पे अपना दम तोड़ जाऊंगा
तेरी चौखट पे अपना,
दम तोड़ जाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
औक़ात से ज़्यादा,
बिन मांगे दिया तुमने,
ना जाने ऐसा क्या,
तूने देखा मुझमें,
मैं मर के भी बाबा,
वादा ये निभाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
गर्दिश के दिनों में जब,
कोई ना था मेरा,
मुझे इतना प्यार दिया,
हमदर्द बना मेरा,
फिर मैं क्यों इधर-उधर,
प्रभु ठोकर खाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
जाने-अनजाने में,
हैं कितने पाप किए,
फिर भी तूने बाबा,
सब के सब माफ किए,
तेरी इस दातारी का,
डंका मैं बजाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
दिल को है भरोसा ये,
वो दिन भी आएगा,
पल होगा आख़िरी जब,
मुझे लेने तू आएगा,
आंखों में छबी होगी,
उस पल मुस्कराऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
शानू ने लिखी अरज़ी,
प्रभु गौर ज़रा करना,
हैं सांसे मेरी जब तक ये,
ना खुद से अलग करना,
खो कर के तुझे बाबा,
मैं जी ना पाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
तेरी चौखट पे अपना,
दम तोड़ जाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
दम तोड़ जाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
औक़ात से ज़्यादा,
बिन मांगे दिया तुमने,
ना जाने ऐसा क्या,
तूने देखा मुझमें,
मैं मर के भी बाबा,
वादा ये निभाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
गर्दिश के दिनों में जब,
कोई ना था मेरा,
मुझे इतना प्यार दिया,
हमदर्द बना मेरा,
फिर मैं क्यों इधर-उधर,
प्रभु ठोकर खाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
जाने-अनजाने में,
हैं कितने पाप किए,
फिर भी तूने बाबा,
सब के सब माफ किए,
तेरी इस दातारी का,
डंका मैं बजाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
दिल को है भरोसा ये,
वो दिन भी आएगा,
पल होगा आख़िरी जब,
मुझे लेने तू आएगा,
आंखों में छबी होगी,
उस पल मुस्कराऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
शानू ने लिखी अरज़ी,
प्रभु गौर ज़रा करना,
हैं सांसे मेरी जब तक ये,
ना खुद से अलग करना,
खो कर के तुझे बाबा,
मैं जी ना पाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
तेरी चौखट पे अपना,
दम तोड़ जाऊंगा,
मैं खा के कसम कहता,
कहीं और ना जाऊंगा,
दुख मिले या सुख मिले,
ग़म नहीं,
जो मिला रहमत से,
वो कम नहीं।।
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Author - Saroj Jangir
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