धोरां किण रा अहसांन राखै Dhora Kin Ra Ahsan Rakhe
अर्थ (हिंदी): इस कहावत का अर्थ है कि योग्य और बड़े व्यक्ति किसी पर निर्भर नहीं रहते और दूसरों का अहसान नहीं लेते। वे आत्मनिर्भर रहते हैं और अपनी मेहनत से सब कुछ हासिल करते हैं। राजस्थान में धोरा का अर्थ टिब्बा, मरुस्थलीय रेट के टीले होता है जिसे इस कहावत में बड़ा और महान के रूप में लिया गया है। इसका उदाहरण किसी व्यक्ति से जोड़ कर लिया जाता है और घोषित किया जाता है की जैसे टीले बड़े होते हैं ऐसे ही बड़ा व्यक्ति भी किसी का एहसान नहीं रखता है। वह प्रतिउत्तर में दूसरे कार्य से एहसान को चूका देता है।
This proverb means that capable and great individuals do not rely on others or owe favors. They are self-reliant and achieve everything through their own efforts.
रामू ने कालू सै मदद मांगी, पण कालू ने जवाब दियो, "धोरां किण रा अहसांन राखै।"
जीवा ने खुद मेहनत करी और कह्यो, "धोरां किण रा अहसांन राखै।"
थारै घरां बाड़ा छोरा ने समझायो, "बेटा, धोरां किण रा अहसांन राखै।"
जब सावलाल ने काम रो भरोसों खुद पर राख्यो, तो हर कोई कह्यो, "धोरां किण रा अहसांन राखै।"
बंशीलाल ने साबित कर दिखायो कि "धोरां किण रा अहसांन राखै।"
योग्य व्यक्ति दूसरों की सहायता पर निर्भर नहीं होते। वे अपनी मेहनत, लगन, और आत्मविश्वास से जीवन में आगे बढ़ते हैं। यह कहावत आत्मनिर्भरता और मेहनत के महत्व को बताती है।
Capable individuals do not rely on others or accept favors. They build their path with hard work, dedication, and self-confidence. This proverb emphasizes the value of self-reliance and persistence.
The proverb "धोरां किण रा अहसांन राखै" metaphorically refers to the resilience and independence of capable individuals. It implies that such people are like the mighty desert camels who traverse harsh conditions without relying on external help. This phrase encourages self-sufficiency and highlights the dignity of labor.
राजस्थानी कहावत अर्थ / आत्मनिर्भरता पर कहावत / मेहनत का महत्व राजस्थानी कहावत / राजस्थानी मुहावरों का अर्थ
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योग्य व्यक्ति दूसरों की सहायता पर निर्भर नहीं होते। वे अपनी मेहनत, लगन, और आत्मविश्वास से जीवन में आगे बढ़ते हैं। यह कहावत आत्मनिर्भरता और मेहनत के महत्व को बताती है।
Capable individuals do not rely on others or accept favors. They build their path with hard work, dedication, and self-confidence. This proverb emphasizes the value of self-reliance and persistence.
The proverb "धोरां किण रा अहसांन राखै" metaphorically refers to the resilience and independence of capable individuals. It implies that such people are like the mighty desert camels who traverse harsh conditions without relying on external help. This phrase encourages self-sufficiency and highlights the dignity of labor.
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Author - Saroj Jangir
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