अनुवाद: जो अंजनासुत हनुमान जी के द्वारा नित्य सेवित हैं, जनक किशोरी भगवती सीता जी को सदा आनन्द प्रदान करतें हैं, जो देवशत्रु असुरवृन्द का मर्दन करने वाले हैं, जिनकी रूप की मनोहर छटा ऐसी है मानो अनन्त जुगनूओं के समान कामदेवों के सम्मुख रश्मि के सागर भगवान सूर्य जिनका त्रिभुवन विख्यात प्रताप देव नायक इन्द्र को भी निष्प्रभ कर देता हैं, मैं उन खंजनसम मृदु नेत्रधारी भगवान श्रीरामचन्द्र को भजता हूं जिनसे यह समग्र ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुआ हैं।
अनुवाद: जो विघ्नहर्ता गजानन के द्वारा नित्य पूजित हैं, जिनकी स्तुति पद्मसम्भव ब्रह्मा भी करतें हैं, जो देहरूप पिंजरा को नष्ट करनेवाले सूर्य नन्दन यमराज के द्वारा नित्य आराधित हैं, जिन्होने भगवान शिव की क्रोधाग्नि से भस्मीभूत कामदेव को पुनः देह प्रदान किया, मैं उन प्रमोदवन के कुंजविहारी भगवान श्रीरामचन्द्र को भजता हूं जिनके मुखारविन्द में सदा ही एक मनोहर मुस्कान विद्यमान हैं।
अनुवाद: जिनके श्रीशरीर की शोभा नवदूर्वादल के समान श्यामल हैं, जिन्होने अति विक्रम सहित त्रिशूलधारी महादेव की पिनाक धनुष का खण्डन किया, "राम" जिनका यह दो अक्षरी नाम साक्षात् भवबन्धनहारी तारकब्रह्म महामंत्र हैं, मैं उन्हीं भगवान श्रीसाकेतपति का चिंतन करता हूं जो दानवकुल के एकमात्र तारणहार हैं।
अनुवाद: जो कौशल नरेश की कन्या महारानी कौशल्या जी के प्रिय पुत्र हैं, चक्रवर्ती सम्राट दशरथ जी के हृदय को आनन्ददायी शीतल चंदन हैं, रावण के भय से आतुर क्रन्दनार्त देवताओं को आनन्द प्रदाता उन मारुति वाहन भगवान श्रीरामचन्द्र को मैं भजता हूं जो भक्ति से किए जानेवाले वन्दनाओं से सदा आनन्दित होते हैं।
अनुवाद: जिन्होने दर्पी समुद्रदेव के मन में भय का संचार किया, खर ओर दूषण का वध किया, जिनके पद सरोज का चिन्तन हलाहलपायी स्वयं देवाधिदेव महादेव भी करते हैं, जिन्होने यक्ष का स्वरूप धारण कर देवताओं के अहंकार रूपी ज्वर का हरण किया, निशाचरों के संहारक मैं उन सीतावल्लभ भगवान श्रीरामभद्र को प्रणाम करता हूं।
अनुवाद: जो शत्रुघ्न जी के सहोदर हैं, वामभाग में स्थिता भगवती जानकी जी को धारण किए हुए हैं, जिनके करकमल में असुरकुल का भेदन करनेवाला बाण विद्यमान हैं, तथा जिन्होने रावण के भयसे संत्रस्त संसार का भयनाश किया हैं, मैं उन नरकुलपति भगवान श्रीराघवेन्द्र को प्रणाम करता हूं जिनकी वन्दना स्वयं देवनाथ इन्द्र भी करते हैं।
अनुवाद: यह सर्वेष्टदायी वाक्कुसुममालिका शङ्खदीप नामक माली के शुभ बुद्धि स्वरूप सुई के द्वारा प्रस्तुत किया गया हैं। सूर्ययुगलसमप्रभ (२४ अक्षरान्वित) छः पद्म रूपी श्लोकों से युक्त यह मालिका स्रग्विणी छन्द स्वरूप धागे के द्वारा ग्रथित हैं।
अनुवाद: इस प्रकार शङ्खदीप-दास विरचित श्रीमज्जानकीराघवषट्कम् सम्पूर्ण हुआ।
'जानकीराघव षट्कम्' भगवान श्रीराम की महिमा का वर्णन करने वाला एक स्तोत्र है, जिसमें उनके विभिन्न गुणों और लीलाओं का उल्लेख है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान राम के प्रति श्रद्धा और भक्ति से भर देता है, जिससे वे उनके चरणों में शरण पाकर जीवन के कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं। भगवान राम के श्यामल शरीर, उनकी वीरता, ज्ञान, और करुणा का वर्णन इस स्तोत्र में किया गया है, जो भक्तों को आध्यात्मिक राह पर बढ़ने की शक्ति देता है।
जानकीराघव षट्कम l Janki Raghav Shatakam l Madhvi Madhukar Jha
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