लेवण गई पूत गमा आई खसम / पूत लेबा गई और खसम गुमा आई राजस्थानी कहावत/Rajasthani Phrase
लेवण गई पूत गमा आई खसम/पूत लेबा गई
और खसम गुमा आई :- लाभ के बदले पूँजी भी गंवा देना, छोटे लाभ के चक्कर में
बड़ा नुक्सान करवा बैठना। यह कहावत उन परिस्थितियों को दर्शाती है जब कोई व्यक्ति छोटे लाभ के लोभ में इतना उलझ जाता है कि वह अपनी बड़ी पूंजी और महत्वपूर्ण चीजें भी खो बैठता है। राजस्थानी समाज में इस कहावत का उपयोग उन लोगों के लिए किया जाता है जो जल्दबाजी या लालच में अपनी समझदारी को भूल जाते हैं। यह कहावत सिखाती है कि हमेशा छोटे लाभ की बजाय दीर्घकालिक परिणामों पर ध्यान देना चाहिए।
This phrase refers to a situation where someone, in pursuit of small gains, ends up losing something much more valuable. It teaches the importance of focusing on long-term benefits rather than being misled by short-term profits.
इस कहावत में सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से एक गहरी सीख दी गई है। यह उन लोगों की ओर इशारा करती है जो तात्कालिक लाभ के पीछे भागते हैं और अपने जीवन के बड़े लक्ष्यों को खो बैठते हैं। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति सस्ता सौदा करने के चक्कर में गुणवत्तापूर्ण वस्तु खरीदने का मौका गंवा देता है, या थोड़ी सी खुशी के लिए अपने परिवार या व्यवसाय को खतरे में डाल देता है। यह कहावत हमें विवेकपूर्ण और दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देती है।
The phrase conveys a deep social and economic lesson. It highlights the tendency of individuals to chase immediate, minor gains while ignoring significant, long-term objectives. For instance, someone might opt for a cheaper deal and miss out on a quality product or endanger their family or business for momentary pleasure. This phrase encourages adopting a prudent and farsighted approach in life.
इस कहावत में सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से एक गहरी सीख दी गई है। यह उन लोगों की ओर इशारा करती है जो तात्कालिक लाभ के पीछे भागते हैं और अपने जीवन के बड़े लक्ष्यों को खो बैठते हैं। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति सस्ता सौदा करने के चक्कर में गुणवत्तापूर्ण वस्तु खरीदने का मौका गंवा देता है, या थोड़ी सी खुशी के लिए अपने परिवार या व्यवसाय को खतरे में डाल देता है। यह कहावत हमें विवेकपूर्ण और दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देती है।
The phrase conveys a deep social and economic lesson. It highlights the tendency of individuals to chase immediate, minor gains while ignoring significant, long-term objectives. For instance, someone might opt for a cheaper deal and miss out on a quality product or endanger their family or business for momentary pleasure. This phrase encourages adopting a prudent and farsighted approach in life.
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
- धोरां किण रा अहसांन राखै हिंदी अर्थ
- पगां नै कुल्हाड़ी बांणौ राजस्थानी कहावत हिंदी अर्थ
- मोर्यौ नाच कूद र पगां सांमी देखै मुहावरे का अर्थ
- मूंछ्या रा चावळ राखणा राजस्थानी मुहावरा हिंदी अर्थ
- लकीर रौ फकीर होणौ राजस्थानी मुहावरे का अर्थ
- पग फूँक-फूँक र दैणौ राजस्थानी कहावत का अर्थ
Author - Saroj Jangir
इस साईट पर आपका स्वागत है, मैं राजस्थानी भाषा के मुहावरो के विषय पर यहाँ लिखती हूँ. आप राजस्थानी भाषा के शब्दों का अर्थ भी यहाँ जान सकते हैं, इसके अतिरिक्त आप राजस्थानी फोक सोंग्स का भी अर्थ यहाँ देख सकते हैं. इस साईट पर आप मेरे द्वारा लिखे लेख पढ़ सकते हैं...अधिक पढ़ें। |