जामवंत कहे रामभक्त हनुमान सुंदरकांड

जामवंत कहे रामभक्त हनुमान सुंदरकांड RAP


जामवंत कहे रामभक्त हनुमान,
वक्त है आप सत्य का ज्ञात,
तथ्य करो याद आज,
था रहस्य यह राज,
सुनो।

तुम तो संस्कृत के अधिकारी,
प्रभु रहस्य के ज्ञाता हो,
सर्व शास्त्र है ज्ञात साथ ही,
मन्‍त्रों के निर्माता हो।

वेद विहित व्याकरण शुद्ध,
रस भरी तुम्हारी वाणी है,
ह्रस्व दीर्घ झंकृत उच्चारण,
कथन शक्ति कल्याणी है।

गरुड़ू पंख में जो बल है,
वही बल है पुष्ट भुजाओं में,
पवन देव के प्रबल वेग है,
कठिन तुम्हारे पांवों में।

यह समुद्र क्या बचपन में ही,
सूर्य लोक से आये हो,
इन्द्र वज्र सह लिया मगर,
अपनी हनु को खो आये हो।

वामन समान त्रिलोक नाप,
सकते हो यदि तुम चाहो तो,
धरा उठाकर उड़ सकते हो,
अपनी शक्ति जगायो तो।

उठो गरजते सिन्धु लांघ कर,
हम सब का उद्धार करो,
जगदम्बा का पता लगाकर,
रघुकुल का उपकार करो।

स्तूयमान हनुमान गरज कर,
उठे रोम भरभरा उठे,
कपि-गर्जन की भीम नाद,
जंगल पहाड़ हरहरा उठे।

किया गात विस्तार सिंह सम,
बारं बार जंभाई ली,
तैर गया लोहू आंखों में,
गरज गरज अंगड़ाई ली।

एक बार हुंकार किया फिर,
वातावरण कराह उठा,
वीर वानरों का समूह मिल,
वाह-वाह कर वाह उठा।

पलक उछल कर पर्वत पर,
पर आकर धमके बजरंग बली,
अचल हिला तो फूल भी जड़ कर,
बिखर गये गिरि गली गली।

अद्रि कम्प से टूट टूट कर,
बड़े बड़े पाषाण गिरे,
फसे बेचारे वन्‍य जीव,
मानो लक्ष्मण के बाण गिरे।

दंश मारने लगे विषैले,
सर्प गिरि चट्टानों को,
चटक चटक चट्टानें टूटीं,
तो भय हुआ महानों को।

पवन तनय पर्वत पे पर,
पुरजोर पसारे खड़े हुए,
तेजस्वी तन रूप देख कर,
वानर हर्षित बड़े हुए।

हनुमान किल किला गरज कर,
चकित वानरों से बोले,
एक एक हुंकार घोष पर,
पर्वत के कण कण डोले।

वीर वानरों करो प्रतीक्षा,
राम बाण बन जाऊंगा,
जगदम्बा का समाचार,
आनन फानन में लाऊंगा।

कौन समंदर तैरे मैं तो,
आसमान से ही जाऊंगा,
तेज गति से चले विमान,
उड़ पक्षियों को दहलाऊंगा।

इन्द्र-हाथ से वज्र छीन कर,
कहो तो लाऊं मैं,
देख रहा हूं जगदम्बा को,
बोलो तो उड़ जाऊं मैं।

सब की सम्मति हो तो मैं,
लंका को यहीं उठा लाऊं,
और नहीं तो आज्ञा दें,
मैं जाके आग लगा आऊं।

यह कह कर गरजे नागिन सी,
पूंछ उछाली अम्बर में,
भाव वेग से तन झक झोरा,
उठीं तरंगें अन्तर में।

लगे गरजने बार बार गिरि,
हिला निवासी कांप उठे,
एक साथ ही मृत्यु आ गई,
सबकी सब जन भांप उठे।

तन समेट कर बड़े वेग से,
उछले सबको दहलाते,
हनुमान सच गरुड़ बन गये,
उड़े गगन में लहराते।

नील गगन में फील पवन सी,
लम्बी पूंछ फहरती थी,
अगल बगल से हवा निकल कर,
बादल वानी गरजती थी।

कठिन वेग से खींच बादलों,
को नभ में छितराते,
बड़ी बड़ी लहरें उठतीं,
हनुमान गरजते जाते।

चली देव प्रेरित सुरसा फिर,
राह रोक कर खड़ी हुई,
बोली भूखी इंतजार में,
यहीं युगों से अड़ी हुई।

भूख लगी है तुमको खाकर,
अपनी भूख बुझाऊंगी,
बड़े लागे स्वादिष्ट मुझे तुम,
ठहरो भोग लगाऊंगी।

हनुमान सुरसा से बोले,
मां क्षण करो प्रतीक्षा तुम,
राम कार्य मैं कर आऊं,
दो जरा समय की भिक्षा तुम।

राम लोक प्रिय साधु यशस्वी,
नामी महिमा वानों में,
साधु कार्य में बाधक की,
निन्‍दा होती विद्वानों में।

नहीं मैं कुछ नहीं मानती,
बनी विशाल सी फैलाया माया से,
अपने शरीर तो दो गुणे।

जैसे जैसे बदन बढ़ा,
वैसे वैसे कपि देह बढ़ी,
हनुमान के अंग अंग पर,
एक भयंकर ज्योति चढ़ी।

नरक द्वार की तरह भयावह,
जब सुरसा का बदन हुआ,
एक होठ पानी में दिखता,
और दूसरा गगन छुआ।

तब लघु तन बन गये पवनसुत,
मन में कुछ कलबल आये,
मुंह में घुसकर कर्ण रन्ध्र से,
बाहर तुरत निकल आये।

और प्रणाम किया सुरसा को,
वह भी बहुत प्रसन्न हुई,
आशीर्वाद दिया उसके पश्चात,
सयत वो धन्य हुई।

पुनः चले आकाश तैरते,
विद्युत गति से कपि नाहर,
विस्मित देव उड़ान देखते,
निकल-निकल घर से बाहर।

अभी न दूर गये थे तब तक,
मिली सिंहिका मतवाली,
नभचारी जीवों की छाया,
झपट पकड़ लेने वाली।

उसने उड़ते मारुति की भी,
परछाईं को पकड़ लिया,
खा जाने को मुंह बाया,
दोनों हाथों से जकड़ लिया।

परेशान फिर हनुमान जब,
एक हाथ भी बढ़ न सके,
लोहे की जंजीर में जकड़े,
अकड़े आगे बढ़ न सके।

तभी गरजती हुई सिंहिका,
सागर के ऊपर उछली,
देख राक्षसी का दुःसाहस,
क्रुद्ध हुए बजरंगबली।

मुंह में घुसकर तेज नाखूनों से,
बीच पेट को चीर दिया,
जा कर के सागर के जल में,
उसका फेंक शरीर दिया।

बिना रुके रघुनाथ कार्य के,
लिये पुनः ऊपर उछले,
नभ को अपनी ओर खींचते,
पक्षिराज की तरह चले।

फूलों की वर्षा की सब,
देवों ने आशीर्वाद दिया,
मार सिंहिका को तुमने,
हम सब के हित का कार्य किया।

होगा सिद्ध अभीष्ट तुम्हारा,
जाओ पथ मंगल मय हो,
रावण पालित लंका में,
हुंकार तुम्हारा निर्भय हो।

विघ्न ठेलते धमक गये,
हनुमान लक्ष्य की छाती पर,
लघु तन किया कि भेद प्रगट हो,
कहीं न सुर नर घाती पर।

लंका के रक्षक पर्वत के,
एक शिखर के वृक्ष तले,
सोच समझ के कर प्रवेश,
थे सावधान हनुमान चले।
सुंदरकांड में भगवान हनुमान जी की अद्भुत शक्ति, उनकी अटूट भक्ति और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के प्रति उनकी सेवा भावना को दिखाया गया है।
सुंदरकांड का पाठ करने से हमारे जीवन में आत्मविश्वास बढ़ता है तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस पाठ से हर प्रकार की नकारात्मकता दूर होती है। सुंदरकांड का नियमित पाठ हमारे जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता लाता है।


सुंदरकांड EPIC HINDI RAP | जाग उठे हनुमान | Episode 01 ‪@djinkarnate‬

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