कहां मिलेंगें भोलेनाथ नंदी बोल जरा

कहां मिलेंगें भोलेनाथ नंदी बोल जरा


कहां मिलेंगे भोलेनाथ नंदी बोल जरा,
मैं तो ढूंढूं दिन और रात नंदी बोल जरा,
कहां मिलेंगे भोलेनाथ नंदी बोल जरा।

पर्वत नदियों में जाकर ढूंढा,
सागर से भी मैंने पूछा,
वो तो गंगा ले गए साथ नंदी बोल जरा,
कहां मिलेंगे भोलेनाथ नंदी बोल जरा।

नील गगन में जाकर ढूंढा,
तारों से भी मैंने पूछा,
वो तो चंदा ले गए साथ नंदी बोल जरा,
कहां मिलेंगे भोलेनाथ नंदी बोल जरा।

नाग लोक में जाकर ढूंढा,
सांपों से भी मैंने पूछा,
वो तो नागा ले गए साथ नंदी बोल जरा,
कहां मिलेंगे भोलेनाथ नंदी बोल जरा।

कीर्तन में भी जाकर ढूंढा,
भक्तों से भी मैंने पूछा,
वो तो डमरू ले गए साथ नंदी बोल जरा,
कहां मिलेंगे भोलेनाथ नंदी बोल जरा।

बागों में जाकर मैंने ढूंढा,
फूलों और कलियों से भी पूछा,
वो तो भंगिया ले गए साथ नंदी बोल जरा,
कहां मिलेंगे भोलेनाथ नंदी बोल जरा।

भोलेनाथ जी को पाने की चाह में हम दिन रात उनकी पूजा अर्चना करतें हैं। हम पर्वतों, नदियों और सागर में उन्हें ढूंढते हैं लेकिन शिव जी वहां भी नहीं मिलते हैं। अंत में हमें यही समझ आता है कि भगवान बाहर नहीं हमारी श्रद्धा और भक्ति में बसे होते हैं। जय भोलेनाथ।


कहॉं मिलेंगे भोलेनाथ नंदी बोल जरा||इस शिवरात्रि कुछ नया गाइए और कीर्तन में रौनक लगाइए ||शिवरात्रि

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