संगीत में 'राग' एक विशेष स्वर-संयोजन है, जो आरोह (चढ़ाई) और अवरोह (उतराई) के नियमों के साथ प्रस्तुत किया जाता है। यह संगीत की रचना का आधार है, जो मनुष्य के भावनाओं और वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। 'रंजयति इति राग' का अर्थ है, वह क्रिया जिससे मनरंजन होता है, उसे राग कहते हैं।
राग के प्रकार
रागों को मुख्यतः तीन जातियों में विभाजित किया जाता है: संपूर्ण राग: जिसमें सातों स्वर (सा, रे, ग, म, प, ध, नि) प्रयुक्त होते हैं। षाडव राग: जिसमें छह स्वर होते हैं, एक स्वर वर्जित होता है। औडव राग: जिसमें पाँच स्वर होते हैं, दो स्वर वर्जित होते हैं।
राग की पहचान कैसे करें: राग की पहचान उसके स्वर, आरोह-अवरोह, वादी (मुख्य) और संवादी (सहायक) स्वरों, तथा गायन या वादन के समय से की जाती है। उदाहरण के लिए, राग यमन में सभी स्वर शुद्ध होते हैं, और यह रात्रि के समय प्रस्तुत किया जाता है।
रागों पर आधारित कुछ प्रसिद्ध गीत: 'जागों मोहन प्यारे' – राग भैरव पर आधारित। 'अभी ना जाओ छोड़ कर' – राग यमन पर आधारित।
संगीत में ताल का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि यह संगीत की संरचना और प्रवाह को नियंत्रित करता है। स्वर और लय संगीत के दो मुख्य आधार हैं; स्वर से राग बनते हैं, जबकि लय से ताल का निर्माण होता है। लय के अनंत प्रवाह में असंख्य मात्राएँ हो सकती हैं, जिन्हें सुविधानुसार समूहित करके तालों का निर्माण किया गया है। प्रत्येक ताल के कुछ हिस्से होते हैं, जिन्हें विभाग कहा जाता है, और इन विभागों के लिए विशेष बोल निर्धारित किए गए हैं, जिससे गायक या वादक यह जान सकें कि वे ताल के किस मात्रा पर हैं।
Raaga Parichay
संगीत, गायन, वादन और नृत्य में ताल का महत्व संगीत की त्रिवेणी—गायन, वादन और नृत्य—में ताल का महत्वपूर्ण स्थान है। गायक और वादक को हमेशा ताल का ध्यान रखना पड़ता है। वे नई-नई कल्पनाएँ करते हैं, लेकिन ताल से बाहर नहीं जाते। जितनी सुंदरता से वे ताल में मिलते हैं, उतने ही उच्चकोटि के कलाकार माने जाते हैं।
आलाप और तालबद्ध संगीत आलाप के अतिरिक्त, संगीत की सभी चीजें तालबद्ध होती हैं। इसलिए आलाप के समाप्त होते ही ताल शुरू हो जाता है, और जब तक गायन समाप्त नहीं होता, ताल चलता रहता है। स्थाई-अंतरा, बोल-तान, तान, सरगम आदि सभी ताल में रहते हैं। गीत के प्रकारों के आधार पर विभिन्न प्रकार के तालों की रचना हुई है।
विभिन्न प्रकार के ताल ख्याल के लिए: तीनताल, एकताल, झपताल, झूमरा, तिलवाड़ा, रूपक आदि। ध्रुपद के लिए: चारताल, शूलताल, तेवरा आदि। ठुमरी के लिए: दीपचंदी, जत आदि।
इन तालों के बोल गीत की प्रकृति के अनुसार चुने गए हैं। इसलिए जब गायन या वादन के साथ तबला या पखावज बजाया जाता है, तो अधिक आनंद आता है। साधारण श्रोता को वे गीत अधिक पसंद आते हैं जो लय-प्रधान होते हैं। इसलिए लोकगीतों और फिल्मी गीतों का अधिक प्रचार है।
राग का परिचय
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