मान रे मान रे पिया मोरी राग बसंत बहार Man Re Man Re Piya Mori Rag Basant Bahaar

मान रे मान रे पिया मोरी राग बसंत बहार Man Re Man Re Piya Mori Rag Basant Bahaar

 
मान रे मान रे पिया मोरी राग बसंत बहार Man Re Man Re Piya Mori Rag Basant Bahaar

मान रे मान रे पिया मोरी
बिनती करत तोसे हारी हारी

दरस पिया बिन तरस रही है
एहमद पिया तोपे वारी वारी
मान रे मान रे पिया मोरी
बिनती करत तोसे हारी हारी

Maan Re Maan Re Piya Moree
Binatee Karat Tose Haaree Haaree

Daras Piya Bin Taras Rahee Hai
Ehamad Piya Tope Vaaree Vaaree
Maan Re Maan Re Piya Moree
Binatee Karat Tose Haaree Haaree 


Raga Basant Bahar | Gantapaswini Mogubai Kurdikar | Man Re Man Re | Live at Mumbai-1967

रस बरसायो रे
उमंग भर आयो मन रिझावन सो |

मध सुगंध ले रितुराज रंगायो
बन-बन चहुँ दिस सजावन सो ||

भंवर मन गेल्यो हो रे हो रे
रितु बसंत में कलि फूलन पै |

रंग-सुरंग छायो बन-बन
सज धज बुलायो कलि फूलन पै ||
कैसी निकसी चाँदनी
शरद रैन मधुमास बिकल गयी / मदमांत बिकल भइ
पिहू पिहू टेरत भामिनी

छीन आँगन छीन जात भवन में
छीन बैठत छीन ठाड़े दौड़त
कलन परत मोहे घडी पलछिन छीन
चमकत जैसे दामिनी
नई ऋत नई फूली नई बेली बहारीया
नयो कलियन को नयो रस

नयो नयो द्रुमना के नयो नयो पतवा
तापर भंवरा भयो बंस
ऐसो कैसो आयो रीता रे
अंबुवा पे मोर ना आयो
कर्‍यो ना गुंजारे भंवरा रे

पीर बढयोरे कोयल की
रंग ना खिल्यो हे फुलवारे
 
राग बसंत बहार शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण राग है, जो वसंत ऋतु की जीवंतता और उल्लास से परिपूर्ण है। यह राग दो प्रमुख रागों, बसंत और बहार, का मेल है, और यही कारण है की इस राग को मिश्र राग भी कहा जाता है। यह राग को उस समय गाया जाता है जब सर्दी का मौसम समाप्त हो रहा होता है और वसंत का आगमन हो रहा होता है।

राग की विशेषताएं:
थाट: राग बसंत बहार काफ़ी थाट से संबंधित है।
जाति: यह षाडव-षाडव जाति का राग है, जिसका अर्थ है कि इसमें आरोह और अवरोह दोनों में 6-6 स्वरों का प्रयोग होता है।
आरोह: सा, म, ध, नी, रे, सा।
अवरोह: सा, नी, ध, म, ग, रे, सा।
वादी स्वर: म (मध्यम)
संवादी स्वर: सा (षडज)
समय: इस राग को रात के दूसरे प्रहर (9 PM - 12 AM) में गाना उचित माना जाता है।

राग की विशेष रचना:
इस राग की संरचना में राग बसंत और राग बहार के स्वरों का विशेष समन्वय देखने को मिलता है। राग बसंत के स्वर जहां गम्भीरता और स्थिरता का भाव प्रकट करते हैं, वहीं राग बहार के स्वर चंचलता और उल्लास का अनुभव कराते हैं। इस राग में शुद्ध और कोमल दोनों धैवत और निशाद स्वरों का प्रयोग होता है, जो इसे विशिष्ट बनाता है।

प्रयोग और भाव:
राग बसंत बहार को गाते या बजाते समय गायक और वादक वसंत ऋतु की सुंदरता, ताजगी और खुशहाली को प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। यह राग प्रेम, खुशी और उत्सव का प्रतीक है, और इसे सुनने से मन में प्रसन्नता और उमंग का संचार होता है।

प्रसिद्ध रचनाएँ:
राग बसंत बहार पर कई प्रसिद्ध बंदिशें और रचनाएँ आधारित हैं। इस राग का प्रयोग शास्त्रीय संगीत, उप-शास्त्रीय संगीत और कई बार फिल्मों के गीतों में भी किया गया है। इसके आलाप और तानों में विशेष चंचलता और जीवंतता होती है, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है।

इस प्रकार, राग बसंत बहार शास्त्रीय संगीत प्रेमियों के बीच अपनी विशिष्टता और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है और वसंत ऋतु की खुशहाली का प्रतीक है।
Ras Barasaayo Re
Umang Bhar Aayo Man Rijhaavan So |

Madh Sugandh Le Rituraaj Rangaayo
Ban-ban Chahun Dis Sajaavan So ||

Bhanvar Man Gelyo Ho Re Ho Re
Ritu Basant Mein Kali Phoolan Pai |

Rang-surang Chhaayo Ban-ban
Saj Dhaj Bulaayo Kali Phoolan Pai ||
Kaisee Nikasee Chaandanee
Sharad Rain Madhumaas Bikal Gayee / Madamaant Bikal Bhi
Pihoo Pihoo Terat Bhaaminee

Chheen Aangan Chheen Jaat Bhavan Mein
Chheen Baithat Chheen Thaade Daudat
Kalan Parat Mohe Ghadee Palachhin Chheen
Chamakat Jaise Daaminee
Naee Rt Naee Phoolee Naee Belee Bahaareeya
Nayo Kaliyan Ko Nayo Ras

Nayo Nayo Drumana Ke Nayo Nayo Patava
Taapar Bhanvara Bhayo Bans
Aiso Kaiso Aayo Reeta Re
Ambuva Pe Mor Na Aayo
Kar‍yo Na Gunjaare Bhanvara Re

Peer Badhayore Koyal Kee
Rang Na Khilyo He Phulavaare
 
In this rare clip, we hear Smt. Mogubai Kurdikar singing Raga Basant Bahar in a live concert at Sydenham College, Mumbai on 4th March 1967. She was accompanied by D.R. Nerurkar on the Tabla and Shri Dattaram on the Sarangi. In the earlier days, vocalists from the Jaipur Atrauli Gharana typically sang only vilambit or madhyalaya compositions and in many ragas of this gharana, drut compositions simply did not exist. Mogubai is credited to have composed several compositions in rare ragas. Let us listen to her own drut bandish in Basant Bahar - Maan Re Maan re
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