मन मोहन श्याम सुंदर रूप राग बागेश्वरी Rag Bageshwari Man Mohan Shyam Sundar

मन मोहन श्याम सुंदर रूप राग बागेश्वरी Rag Bageshwari Man Mohan Shyam Sundar

स्थाई - मन मोहन श्याम सुंदर रूप,
मनोहर सोहत अधर मुरलिया ||
अंतरा - मोर मुकुट माथे तिलक,
गले बैजंती, कटी पितांबर,
निरख भयी अब बांवरियां ||
स्थाई - झगरा करत पकर लिनी बैंयां मरोरी,
अपनी गरज पकर लिनी बैंयां मरोरी ||
अंतरा - जमुना के केवल धाम मांगत है जौबन दान,
भाग आयी दौड आयी बैंयां मरोरी ||
राग बागेश्री (Rag Bageshwari) हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक राग है जो बहुत ही प्रशिद्ध राग है। राग बागेश्री की उत्पत्ति काफी थाट से हुई है। गाने या बजाने का समय रात का दूसरा प्रहर श्रेष्ठ माना जाता है। थाट से आशय है की उस राग का प्रणेता (पिता) जहाँ से राग की उत्पत्ति होती है। इस राग की जाती ओडव सम्पूर्ण है जिससे भाव है की इसमें छह से सात स्वरों का ही उपयोग प्रधानता से किया जाता है।

स्वर : इस राग में गंधार (ग) और निषाद (नि) कोमल है। इस राग में आरोह में पंचम (प) रिषभ (रे) वर्जित है। कुछ लोग अवरोह में थोडा पंचम लगाते हैं।
आरोह : नि़ सा ग॒ म, ध नि॒ सां।
अवरोह : सां नि॒ ध,म प ध, ग म ग॒ रे सा।
वादी और संवादी : इस राग का वादी स्वर मध्यम (म) और संवादी स्वर षड्ज (सा) है।
पकड़ : ध नि सा,म ध नि ध ग॒ म म प, ध,ग म रे सा। 
 
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