राग मालकौंस (Raga Malkauns) परिचय उदाहरण

राग मालकौंस परिचय Raag Malkauns

राग मालकोश में भजन।
मन तड़पत हरि दर्शन को आज,
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज,
विनती करत हूँ रखियों लाज़।

तुम्हरे द्वार का मैं हूँ जोगी,
हमरी ओर नज़र कब होगी,
सुन मोरे व्याकुल मन का बात,
मन तड़पत, हरि दर्शन को आज।

बिन गुरू ज्ञान कहाँ से पाऊँ
दीजो दान हरी गुन गाऊँ
सब गुनी जन पे तुम्हारा राज
मन तड़पत, हरि दर्शन को आज।

मुरली मनोहर आस न तोड़ो
दुख भंजन मोरा साथ न छोड़ो
मोहे दरसन भिक्षा दे दो आज,
मन तड़पत, हरि दर्शन को आज। 
 
राग मालकौंस (Raga Malkauns) परिचय हिंदी Learn More About Raag Malkauns
 
राग मालकौंस (Raga Malkauns) एक उत्तर भारत प्रचलित शास्त्रीय (हिन्दुस्तानी संगीत ) राग है जिसे मालकंस, मालकोस आदि नामों से भी जाना जाता है। माना जाता है की यह राग भैरवी थाट से उत्पन्न हुई है। राग मालकोश को दक्षिण भारत में हिंडोलम (Hindolam) के नाम से जाना जाता है। इसमें गंधार, धैवत और निषाद तीनों स्वर कोमल कार्य में लिए जाते हैं। 

राग मालकौंस (Raga Malkauns) सामान्य जानकारी

आरोह– सा ग म, ध नि सां।
अवरोह– सां नि ध म, ग म ग सा।
पकड़– ध नि स म, ग म ग सा।
कोमल स्वर -ग ध नी तथा अन्य स्वर शुद्ध है (गंधार (ग), धैवत (ध) और निषाद (नि) )
वादी -मा,
संवादी-सा,
ठाट-भैरवी
वर्जित स्वर - रे, प,
जाति औडव-औडव
गायन का समय : रात के तीसरा प्रहर।
यह गंभीर प्रकृति का राग है तथा यह एक पुरूष राग है, इसका समप्राकृतिक राग चन्दकोष है । 
राग मालकौंस बंदिश : Raag MaalKauns Bansish बंदिश से तात्पर्य हिन्दुस्तानी गायन/वादन एक निश्चित सुर सहित रचना से होता है। बंदिश किसी विशेष राग में निर्मित होती है। राग विशेष बंदिश को गाने/बजाने के साथ तबला या पखावज द्वारा ताल मिलाकर सारंगी, वायलिन अथवा हारमोनियम आदि द्वारा सुस्वरता प्रदान की जाती है। गायन में 'बंदिश' को 'चीज़' कहते हैं। राग विस्‍तार करने हेतु बन्दिश मार्गदर्शक का भी कार्य करती है। 

राग मालकौंस की विशेषताएं

  • राग मालकोंस की चलन तीनों सप्तको में एक समान रूप से होती है।
  • राग मालकौंस ख्याल, छोटा ख्याल, ध्रुपद, धमार, तराना, मसीतखानी गत रज़ाखानी गत सभी गाये बजाये जाते है तथा राग मालकोश में ठुमरी गाने का विधान नहीं है।
  • राग मालकौंस में केवल नि शुद्ध कर देने से राग चंद्रकोश हो जाता है।
  • पंचम वर्जित होने के कारण जब इस मालकौंस गाते हैं तो तानपुरे में पहले तार को मंत्र मध्यम (म) में मिलाते हैं।
  • राग मालकौंस गंभीर और शांत प्रकृति का राग है। ऋषभ (रे) और पंचम (प) इस राग में वर्जित हैं।
न्यास के स्वर– सा, ग और म।
समप्रकृति राग– चंद्रकोश।

राग मालकौंस विशेष स्वर संगतियाँ
  • ध नि सा म, ग म ग सा,
  • म ग, म ग सा,
  • ग म, ध नि सां,
  • सां नि ध नि ध म।
आज मोरे घर आइल बलमा
करूंगी अदारंग सो रंगरलियाँ
अतर अरगजा सुगंध बसन पेहेरूं
फुलवन सेज बिछाऊँ चुन चुन कलियाँ

मुख मोर मोर मुसकात जात
अति छबीली नार चली पत संगात
काहू की अखियाँ रसीली मन भाई
या बिध सुन्दर बा उखलाई
चली जात सब सखियाँ साथ

पायल बाजन लागी रे अब
कैसे कर आऊं तुम्हरे पास अब
सास ननद मोरी जनम की बैरन
मैं तो तुम्हरी दास अब

कोयलिया बोले अम्बुवा डाल पर
रुत बसंत को देत संदेसवा
रुत बसंत को देत संदेसवा
नव कलियन में गुंजत भंवरा
उनके संग करत रंग रलियाँ
यही बसंत को देत संदेसवा
यही बसंत को देत संदेसवा

पग लागन देरे
मोरे महाराज कुंवरा
सदा रंगीले पीत
मुझे पावन दे

पगवा लागन गुरु के
अरिये निरगुनी कछु गुन न जाने
बेगुनी का गुन की सुध जाने
गुरु की सेवा उत्तम माने
तब सकल भेद गुन ज्ञान जाने
स्थाई : मैं को सो बताऊँ,
अंतर मन कि बिथा,
ना जानू कब होवे सुर के दर्शन,
अंतरा : मार्ग ना सुझे दस दिस मे,
कब आवे प्रभु मन अंधियार,
कब होवे सुर के दर्शन,
स्थाई : मैं को सो बताऊँ,
अंतर मन कि बिथा,
ना जानू कब होवे सुर के दर्शन,
अंतरा : मार्ग ना सुझे दस दिस मे,
कब आवे प्रभु मन अंधियार,
कब होवे सुर के दर्शन, 
 
राग मालकौन्स रात्रि के रागों में एक प्रसिद्ध राग है, जो विभिन्न रागों में अपना महत्त्व रखती है। इस राग के युगल स्वरों के बीच में गहरा संवाद होने से उसमें मधुरता अधिक होती है। इस राग का मुख्य उपयोग मध्यम स्थानित स्वरों पर होता है। मध्यम स्थानीय निषाद, धैवत, और गंधार स्वरों के साथ मींड स्वर का संयोजन राग की विशेषता बनाता है। इस राग का संवाद तीन सप्तकों में बराबर रूप में होता है। इस राग की प्रकृति शांत और मनोहर होती है। राग मालकोश के स्वर हैं -

ग१ ग१ म ; ,ध१ ,नि१ सा म ; ग१ म ग१ ; ग१ म ग१ सा ; म म ; ध१ ध१ नि१ नि१ ध१ म ; ग१ ग१ म ग१ सा ; ,नि१ ,नि१ सा ग१ ; सा ग१ म ध१ म ; म ध१ नि१ ध१ म ; ग१ म ध१ नि१; म ध१ नि१ ; नि१ सा' ; नि१ नि१ सा' ; ग१' म' ग१' सा' ; नि१ सा' ध१ नि१ ध१ म ; ग१ म ग१ नि१ ; नि१ ध१ ; ध१ म ग१ ग१ म ; ग१ सा; 

राग मालकौंस की उत्पत्ति ठाठ भैरवी से उत्पन्न हुई है और इस राग का प्रकार औडव है।
राग की जाति : औडव है और रे व प वर्ज्य स्वर होता है।
राग का गायन समय : रात्री का तीसरा प्रहर।
वादी : म।
संवादी: सा
विशेष : राग मालकोश में ग, ध, व नि कोमल लगते हैं

आरोह- सा ग॒ म ध॒ नि॒ सां
अवरोह- सां नि॒  म ग॒  सा
पकड़- ध़॒ नि़॒॒॒ सा म, ग़॒ म ग़॒ सा  
 

Beautiful Rendition of Raag MalkaunsMan Tarpat Hari Darsan ko Aaj Movie/Album: बैजू बावरा (1952)
Music By: नौशाद अली
Lyrics By: शकील बदायुनी
Performed By: मो.रफ़ी

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