राग अल्हैया बिलावल परिचय विशेषताएं

राग अल्हैया बिलावल परिचय विशेषताएं

राग अल्हैया बिलावल भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक प्रमुख राग है, जो बिलावल थाट से उत्पन्न होता है। इस राग में सभी स्वर शुद्ध होते हैं, केवल अवरोह (उतरते हुए स्वर) में कोमल निषाद (नी) का प्रयोग किया जाता है। आरोह (चढ़ते हुए स्वर) में मध्यम (म) का प्रयोग वर्जित है, जिससे इसकी जाति षाडव-संपूर्ण मानी जाती है। इस राग का वादी (मुख्य स्वर) धैवत (ध) और सम्वादी (सहायक स्वर) गंधार (ग) होता है। राग अल्हैया बिलावल का समय प्रातः का प्रथम प्रहर (6 बजे से 9 बजे तक) होता है।

स्वरक्रम:
आरोह: सा रे ग प ध नि सा'
अवरोह: सा' नि ध प म ग रे सा

मुख्य विशेषताएँ:
वादि: धैवत (ध)
सम्वादी: गंधार (ग)
न्यास स्वर: सा, ग, प
जाति: षाडव-संपूर्ण (आरोह में 5 स्वर, अवरोह में 7 स्वर)
पकड़: ग प ध नि ध प, प ध ग, रे ग प म ग रे सा
समय: प्रातः का प्रथम प्रहर (6 बजे से 9 बजे तक)
थाट: बिलावल

राग अल्हैया बिलावल का मूड शांत और उत्साहवर्धक होता है, जो प्रातः के समय में विशेष रूप से उपयुक्त है। इस राग में कोमल निषाद का प्रयोग अवरोह में वक्रता (वक्रता का अर्थ है स्वर का वक्र मार्ग से चलना) के साथ किया जाता है, जिससे राग की विशेषता और भी बढ़ जाती है।

इस राग में ख्याल, तराना, ध्रुपद आदि गायन शैलियाँ प्रचलित हैं। राग अल्हैया बिलावल की विशेषता इसकी मींड (स्वरों के बीच की लयबद्ध गति) में धैवत और गंधार की संगति है, जो राग को और भी मधुर बनाती है।

राग अल्हैया बिलावल का गायन प्रातः के समय में किया जाता है, जिससे यह राग श्रोताओं को शांति और आनंद प्रदान करता है।


Manas Kumar: Raag Alhaiya Bilawal

राग अल्हैया बिलावल, राग बिलावल का एक रूपांतर है जिसमें कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है। इस राग में आरोह में मध्यम वर्ज्य होता है, जबकि निषाद दोनों प्रकार के होते हैं। इसकी जाति षाढव - सम्पूर्ण है और थाट बिलावल है। वादी स्वर धैवत है, जबकि संवादी स्वर गंधार है। इस राग का समय दिन के प्रथम प्रहर (6AM से 9AM) के बीच होता है। विश्रांति स्थान सा; ग; प; - सा'; प; ग; हैं। मुख्य अंग में ग रे ग प; ध नि१ ध प; म ग रे; ग प ध नि सा'; सा' रे' सा'; सा' नि ध प; ध नि सा'; सा' नि ध प; ध नि१ ध प; ध ग म ग रे सा' स्वर संगतियाँ शामिल हैं।

राग अल्हैया बिलावल उत्तरांग प्रधान राग है, जिसका चलन और विस्तार तार सप्तक में अधिक होता है। इस राग की प्रकृति में करुण रस का आभास होता है। इसमें ख्याल, तराने, ध्रुवपद आदि गाए जाते हैं।

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