जरा इतना बता दो राधा श्याम तुम्हें भजन

जरा इतना बता दो राधा श्याम तुम्हें कैसे मिला

(मुखड़ा)
ज़रा इतना बता दो राधा, श्याम तुम्हें कैसे मिला।
ज़रा इतना बता दो राधा, श्याम तुम्हें कैसे मिला।

(अंतरा)
आता नहीं वो किसी के वश में,
सारी दुनिया उसके वश में।
आता नहीं वो किसी के वश में,
सारी दुनिया उसके वश में।

कैसे तुमने किया वश में, श्याम तुम्हें कैसे मिला।
ज़रा इतना बता दो राधा, श्याम तुम्हें कैसे मिला।

बात बात पर रूठ जाता है,
नखरे कितने दिखलाता है।
बात बात पर रूठ जाता है,
नखरे कितने दिखलाता है।

कैसे रीझ गया तुमपे, श्याम तुम्हें कैसे मिला।
ज़रा इतना बता दो राधा, श्याम तुम्हें कैसे मिला।

मना मना कर मैं तो हारी,
फिर भी ना माना वो बनवारी।
मना मना कर मैं तो हारी,
फिर भी ना माना वो बनवारी।

कैसे मान गया तुमसे, श्याम तुम्हें कैसे मिला।
ज़रा इतना बता दो राधा, श्याम तुम्हें कैसे मिला।

अंखियों में अंखिया डाल के मैंने,
कह दिया तुम हो प्रियतम मेरे।
अंखियों में अंखिया डाल के मैंने,
कह दिया तुम हो प्रियतम मेरे।

फिर मान गया कान्हा, श्याम मुझे ऐसे मिला।
(पुनरावृति)
सखी कैसे बताऊँ तुम्हें, श्याम मुझे ऐसे मिला।


जरा इतना बता दो राधा ।। श्याम तुम्हें कैसे मिला ।। #radhe #radha #radhakrishna #krishna #shyam

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Bhajan Lyrics - Jay Prakash Verma, Indore,
 
राधा और श्याम का मिलन कोई साधारण घटना नहीं, यह प्रेम की पराकाष्ठा है, जहाँ आत्मा परमात्मा से एकाकार हो जाती है। राधा का हृदय श्याम के प्रति ऐसी भक्ति से भरा था कि वह दुनिया को वश में करने वाले को अपने प्रेम में बाँध लेती है। यह प्रेम न तो बाहरी दिखावे का मोहताज है, न ही नियमों का गुलाम। जैसे कोई प्यासा कुएँ तक पहुँचने के लिए रास्तों की परवाह नहीं करता, वैसे ही राधा का प्रेम श्याम तक सीधे पहुँचा।

श्याम, जो सृष्टि के स्वामी हैं, उनके नखरे, उनका रूठना, सब उनके प्रेम का खेल है। वह रूठते हैं, ताकि भक्त का प्रेम और गहरा हो। राधा ने इस खेल को समझा और अपनी अखियों में प्रेम की ऐसी भाषा बोली कि श्याम स्वयं उनके सामने नतमस्तक हो गए। यह प्रेम की विजय है, जहाँ हार-जीत का कोई अर्थ नहीं रहता। राधा ने श्याम को नहीं जीता, बल्कि अपने हृदय को उनके चरणों में समर्पित कर दिया।

सच्चा प्रेम वही है, जो बिना शर्त, बिना अपेक्षा के हो। जैसे नदी सागर में मिलने के लिए अपनी पहचान मिटा देती है, वैसे ही राधा ने अपने अहं को श्याम में विलीन कर दिया। यही सीख है—प्रेम में समर्पण ही मिलन का मार्ग है। जो मन से मन को पुकारे, वह श्याम को अवश्य पा लेता है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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