मेरे दिल नू करार नहीं आंदा भजन

मेरे दिल नू करार नहीं आंदा भजन

मेरे दिल नू करार नहीं आंदा,
तू घर मेरे आजा दातिया।

मोड़ लया मुख मेथों केड़ी गलों दातिया,
छेती छेती आजा, हुण कित्थे डेरे लाए नी।
ओ इस झल्ली नू गल नहीं लांदा,
तू घर मेरे आजा दातिया।
मेरे दिल नू करार नहीं आंदा,
तू घर मेरे आजा दातिया।

तेरा दर छड्ड हुण केड़े दर जावां मैं,
दिल वाला हाल हुण किसनूं सुनावां मैं।
हाल दिल वाला तैनूं ही सुनाना,
तू घर मेरे आजा दातिया।
मेरे दिल नू करार नहीं आंदा,
तू घर मेरे आजा दातिया।

तक तक राहां हुण थक गई अखियां,
होएगा दीदार कदो — आसां एहो रखियां।
हाथ जोड़ के तैनूं मैं बुलावा,
तू घर मेरे आजा दातिया।
मेरे दिल नू करार नहीं आंदा,
तू घर मेरे आजा दातिया।

आसां ते मुरादां लेके जोत मैं जगाई ऐ,
मैं तां हर पल तेरी करज़ाई वे।
सोणे फूलां वाले हार पिरोवा,
तू घर मेरे आजा दातिया।
मेरे दिल नू करार नहीं आंदा,
तू घर मेरे आजा दातिया।


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दातिया के बिना मन को चैन नहीं, जैसे कोई प्यासा बिना जल के तड़पे। उनका दर छोड़कर भक्त कहीं और नहीं जा सकता, क्योंकि दिल का हाल केवल वही समझते हैं। आँखें उनकी राह तकते-तकते थक गईं, पर आस बंधी है कि उनका दीदार जरूर होगा। यह पुकार प्रेम और विश्वास की गहराई है, जो हाथ जोड़कर उन्हें बुलाती है। जैसे कोई ज्योत जलाकर मुराद माँगे, वैसे ही भक्त हर पल उनकी कृपा की कर्जदार है। सोने-फूलों का हार अर्पित कर, वह केवल उनके आने की प्रार्थना करता है। यह भक्ति का रस है, जो मन को उनके घर आने की आस में बाँधे रखता है, और उनकी शरण में ही सच्ची शांति और करार का वादा देखता है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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