घणी दूर से दोड़्यो थारी गाडुली के लार भजन लिरिक्स

घणी दूर से दोड़्यो थारी गाडुली के लार भजन Gani Door Se Dodyo Thari Gaduli

 
घणी दूर से दोड़्यो थारी गाडुली के लार भजन Gani Door Se Dodyo Thari Gaduli

घणी दूर से दोड़्यो थारी गाडुली के लार भजन

घणी दूर से दोड़यो थारी गाडुली के लार,
गाड़ी में बिठाले रे बाबा,
जाणों है नगर अंजार।

नरसी बोल्यो म्हारे सागे के करसी,
ओढ़न कपडा नाही बैठसि यां मरसि,
बूढ़ा बैल टूटेड़ी गाडी पैदल जावे हार,
गाड़ी में बिठाले रे बाबा,
जाणों है नगर अंजार।
 ज्ञान दासजी कहवे गाडुली तोड़ेगा,
ज्ञान दासजी कहवे तुमड़ा फोड़ेगा,
घणी भीड़ में टूट जावे म्हारे ईकतारा रो तार,
गाड़ी में बिठाले रे बाबा,
जाणों है नगर अंजार।

नानी बाई रो भात देखबा चालूगो,
पूर्ण पावलो थाली में भी डालूँगो,
दोए चार दिन चोखा चोखा जीमूँ जीमनवाल,
गाड़ी में बिठाले रे बाबा,
जाणों है नगर अंजार।

जोड़े ऊपर बैठ हाकसूं में नारां,
थे करज्यो आराम दाबसू पग थारां,
घणी चार के तड़के थाने पहुचा देऊँ अन्जार,
गाड़ी में बिठाले रे बाबा,
जाणों है नगर अंजार।

टूट्योड़ी गाडी भी आज विमान बणी,
नरसी गावे भजन सुने खुद श्याम धणी,
सूरा सगळा पीठ थपे अरेरे जीवतो रे मोट्यार,
गाड़ी में बिठाले रे बाबा,
जाणों है नगर अंजार।


 
नरसी जी का मायराश्री कृष्ण भाव के भूखे हैं। श्री कृष्ण भक्ति के लिए नरसी मेहता प्रसिद्ध है। नरसी भक्त गुजरात के जूनागढ़ प्रान्त से संबंध रखते हैं। नरसी जी गरीब ब्राह्मण थे लेकिन भात भरना उनकी हैसियत में नहीं था। उनका भात श्री हरी ने भरा जो एक मिसाल है। नरसी जी की पुत्री का नाम नानकी था जिसे नानी बायीं के नाम से जाना जाता है। नानी बाई का विवाह नरसी भक्त ने बड़े ही जतन से पूर्ण किया।

कुछ समय बाद नरसी भक्त के दोहिती की शादी के लिए भात भरने का मौका आया। उनकी पुत्री का ससुराल शहर अंजार था। भक्त नरसी की माली हालत कमजोर थी भात भरने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं था। नरसी जी ने अपनी पुत्री को कहा की बेटा मैं आऊंगा तो जरूर लेकिन मेरे पास भात भरने के लिए कुछ नहीं है, मैं तो हरी का नाम लूंगा। 

नरसी जी भात भरने के उद्देश्य से चल पड़े, पास था तम्बूरा, हरी का नाम और एक टूटी हुई गाड़ी। भजन भाव करते हुए नरसी जी चल पड़े। रास्ते में श्री कृष्ण जी का नाम लेते हुए, नरसी जी के एक ही ख्याल था की भात में दूंगा क्या पास में तो कुछ भी नहीं है। रस्ते में नरसी जी भात भरने की सारी जिम्मेदारी श्री हरी को सौंप दी और भजन भाव करने लगे।

गाडी की हालत भी नाजुक थी। रास्ते में गाडी की का पहिया टूट कर निकल गया। नरसी जी ने कृष्ण जी का सुमिरन किया और कृष्ण जी ने खाती का रूप बनाकर गाडी का पहिया ठीक कर दिया। खाती जी जो श्री कृष्ण जी थे उन्होंने नरसी जी को कहा की मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा। मैं स्वंय गाडी हाँक लूंगा। नरसी जी ने खाती को कहा की भाई मेरे साथ कहा चलोगे मेरे पास तो स्वंय कुछ भी नहीं है। श्री हरी कहते हैं की मैं भी भात में चलूँगा और पकवान खाऊंगा। श्री हरी गाडी चलाने लगे और नरसी जी भजन गाने लगे। नरसी जी को पूरा यकीन था की श्री हरी उसकी लाज जरूर रखेंगे। 

जब बाई के घर पर नरसी जी बहुचे तो उसके घर वालों ने उसको बाई से मिलने नहीं दिया और ताना देते हुए कहा की पहले मायरो का इंतजाम करो, नहीं तो नानी बाई को वापस अपने साथ ले चलो। नानी बाई सारी बातें छुपकर सुन रही थी। लाज के कारण नानी बाई ने सामने आकर जवाब नहीं दिया। नानी बाई जानती थी की उसके पिता के पास देने को कुछ नहीं है और उसका भाई जो भात भरता कब का स्वर्ग सिधार चुका है। नानी बाई उदास होकर दुखी मन से निर्णय करती हैं की वापस तो नहीं जाना भले ही अपनी जान ही चली जाय। नानी बाई कुए की और बढ़ती है। जैसे ही नानी बाई कुए में कूदने वाली थी श्री कृष्ण प्रकट होकर उनका हाथ पकड़ कर उसे रोक कर कहते हैं की मैं तुम्हारा भात भरूंगा। भात भरने के लिए श्री कृष्ण स्वंय आते हैं और साथ में रुक्मिणी और अन्य रानिया आती है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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