श्याम चूड़ी बेचने आया लिरिक्स Shyam Churi Bechne Aaya Lyrics
मनिहारी का भेष बनाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
छलिया का भेष बनाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
झोली कंधे धरी, उसमे चूड़ी भरी
गलियो में शोर मचाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
छलिया का भेस बनाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
राधा ने सुनी ललिता से कही,
राधा ने सुनी ललिता से कही
मोहन को तुंरत बुलाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
छलिया का भेष बनाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
चूड़ी लाल नहीं पहनु,
चूड़ी हरी नहीं पहनु
मुझे श्याम रंग है भाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
छलिया का भेष बनाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
राधा पहनन लगी,
श्याम पहनाने लगे
राधा ने हाथ बढाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
छलिया का भेष बनाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
राधा कहने लगी
तुम हो छलिया बड़े
धीरे से हात दबाया
श्याम चूड़ी बेचने आया
छलिया का भेष बनाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
मनिहारी का भेष बनाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
छलिया का भेष बनाया,
श्याम चूड़ी बेचने आया
भगवान कृष्ण और उनके बाल सखा गोकुल में खेल रहे थे। तभी, एक स्त्री आई और उसने भगवान कृष्ण से कहा, "प्रिय बालक, क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो? मैं एक गरीब विधवा हूँ और मेरे पास अपने बच्चों के लिए भोजन नहीं है। क्या तुम मुझे कुछ पैसे दे सकते हो?" भगवान कृष्ण ने स्त्री की बात सुनी और कहा, "तुम चिंता मत करो, माँ। मैं तुम्हें मदद करूँगा।"
श्री कृष्णा का मनिहारी का भेष धरना :
श्री कृष्णा श्री कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे। श्री कृष्ण ने ब्रज को छोड़ दिया तो यह सवाल उठता है की क्या श्री कृष्ण को ब्रज की याद नहीं आयी। उस ब्रज की जहाँ की गलियों में उनका बचपन बीता। जहाँ उनके बाल्य काल के सखा थे। क्या श्री कृष्ण को पिता नन्द जी और माता यशोदा की याद नहीं आयी।
श्री कृष्ण ने जब ब्रज छोड़ा तो पूरा ब्रज सुनसान सा हो गया था। ब्रज कृष्ण से ही था और है। ब्रज के कण कण में श्री कृष्ण का वास है। श्री कृष्ण के प्रिय स्थलों में गोवर्धन पर्वत, यमुना तट, करिले की कुंजे , कदम्ब के पेड़। हर जगह श्री कृष्ण का ही वास दिखाई देता है।
श्री कृष्ण अक्सर ब्रज की यादों में खोकर उदास हो जाते थे। स्वंय को कमरे में बंदकरके खिड़की से ब्रज को और झांकते रहते थे। कृष्ण अपने परम दोस्त और गुरु उद्धव से कहा करते थे की उन्हें मथुरा में आनंद नहीं आता है यहाँ कोई उन्हें लल्ला, कान्हा , पुकारकर अपनी गोद में नहीं बिठाता है। अक्सर उदास होकर हो छप्पन भोग के व्यंजन भी त्याग देते थे। वस्तुतः कृष्ण प्रेम के भूखे हैं। मथुरा में उन्हें वो आनंद नहीं मिलता था जो उन्हें ब्रज में मिला करता था।
अपने पिता और माता के विषय में वे रोज चिंतित रहा करते थे। गायों और ग्वालिनों की याद उन्हें सताती रहती थी। वे उद्धव से कहते हैं की उन्हें आत्मा से श्री राधा प्रिय हैं, गोपियाँ उनकी आत्मा में रहती हैं। वे श्री कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम से भरी हैं। उन्होंने श्री कृष्ण के लिए लोक और परलोक दोनों छोड़ दिए हैं।
श्री कृष्ण का मथुरा से ब्रज को लौटना इतना सरल भी नहीं था। उन्होंने कर्म का पाठ पढ़ाया है और कर्म के बलबूते ही उन्होंने पांडवो की जीत महाभारत के युद्ध में करवाई। धर्म की स्थापना करना ही श्री कृष्ण का ध्येय था।
ये श्री कृष्ण का ब्रज के प्रति प्रेम ही था की वो स्वंय को रोक नहीं पाए और भेष बदलकर बरसाना पहुंच गए। यहाँ हम उनके मनिहारी के भेष की बात करते हैं।श्री कृष्ण ने मनिहारी का रूप बनाया और कंधे पर रंग बिरंगी चूड़ियों के गुच्छे लिए सर पर टोकरी लिए चूड़ी बेचने बरसाना पहुंच गए। राधा और गोपिंयों को चूड़ी बेचते समय श्री कृष्ण ने देखा की सभी गोपियों का विवाह हो चूका है लेकिन वो सुहाग के रंग की चूड़ियां नहीं खरीद रही थी बल्कि काला और श्याम रंग की चूड़ियां खरीद रही थी। जब श्री कृष्ण ने राधा ललिता और विशाखा से इसका कारन पूछा तो उन्होंने सहजता से उत्तर दिया की हम लाल हरी और पिली चूड़ी नहीं पहनेंगे हमें तो श्याम रंग की चूड़ी ही भाती है।
जब श्री कृष्ण राधा जी को चूड़ी पहनाने के लिए उनके हाथ को स्पर्श करते हैं तो श्री राधा जी को आय समझते देर नहीं लगती की ये तो श्री कृष्ण ही हैं जिन्होंने छलिया का रूप धरा है। सभी गोपियाँ उनको प्रेम से भरे ताने देने लगती हैं और श्री राधा जी रूठकर यमुना जी के तट पर चली जाती हैं। श्री कृष्ण मुरली की मधुर तान से राधा जी को मनाते हैं। श्री राधे कृष्ण।
श्री कृष्ण ने जब ब्रज छोड़ा तो पूरा ब्रज सुनसान सा हो गया था। ब्रज कृष्ण से ही था और है। ब्रज के कण कण में श्री कृष्ण का वास है। श्री कृष्ण के प्रिय स्थलों में गोवर्धन पर्वत, यमुना तट, करिले की कुंजे , कदम्ब के पेड़। हर जगह श्री कृष्ण का ही वास दिखाई देता है।
श्री कृष्ण अक्सर ब्रज की यादों में खोकर उदास हो जाते थे। स्वंय को कमरे में बंदकरके खिड़की से ब्रज को और झांकते रहते थे। कृष्ण अपने परम दोस्त और गुरु उद्धव से कहा करते थे की उन्हें मथुरा में आनंद नहीं आता है यहाँ कोई उन्हें लल्ला, कान्हा , पुकारकर अपनी गोद में नहीं बिठाता है। अक्सर उदास होकर हो छप्पन भोग के व्यंजन भी त्याग देते थे। वस्तुतः कृष्ण प्रेम के भूखे हैं। मथुरा में उन्हें वो आनंद नहीं मिलता था जो उन्हें ब्रज में मिला करता था।
अपने पिता और माता के विषय में वे रोज चिंतित रहा करते थे। गायों और ग्वालिनों की याद उन्हें सताती रहती थी। वे उद्धव से कहते हैं की उन्हें आत्मा से श्री राधा प्रिय हैं, गोपियाँ उनकी आत्मा में रहती हैं। वे श्री कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम से भरी हैं। उन्होंने श्री कृष्ण के लिए लोक और परलोक दोनों छोड़ दिए हैं।
श्री कृष्ण का मथुरा से ब्रज को लौटना इतना सरल भी नहीं था। उन्होंने कर्म का पाठ पढ़ाया है और कर्म के बलबूते ही उन्होंने पांडवो की जीत महाभारत के युद्ध में करवाई। धर्म की स्थापना करना ही श्री कृष्ण का ध्येय था।
ये श्री कृष्ण का ब्रज के प्रति प्रेम ही था की वो स्वंय को रोक नहीं पाए और भेष बदलकर बरसाना पहुंच गए। यहाँ हम उनके मनिहारी के भेष की बात करते हैं।श्री कृष्ण ने मनिहारी का रूप बनाया और कंधे पर रंग बिरंगी चूड़ियों के गुच्छे लिए सर पर टोकरी लिए चूड़ी बेचने बरसाना पहुंच गए। राधा और गोपिंयों को चूड़ी बेचते समय श्री कृष्ण ने देखा की सभी गोपियों का विवाह हो चूका है लेकिन वो सुहाग के रंग की चूड़ियां नहीं खरीद रही थी बल्कि काला और श्याम रंग की चूड़ियां खरीद रही थी। जब श्री कृष्ण ने राधा ललिता और विशाखा से इसका कारन पूछा तो उन्होंने सहजता से उत्तर दिया की हम लाल हरी और पिली चूड़ी नहीं पहनेंगे हमें तो श्याम रंग की चूड़ी ही भाती है।
जब श्री कृष्ण राधा जी को चूड़ी पहनाने के लिए उनके हाथ को स्पर्श करते हैं तो श्री राधा जी को आय समझते देर नहीं लगती की ये तो श्री कृष्ण ही हैं जिन्होंने छलिया का रूप धरा है। सभी गोपियाँ उनको प्रेम से भरे ताने देने लगती हैं और श्री राधा जी रूठकर यमुना जी के तट पर चली जाती हैं। श्री कृष्ण मुरली की मधुर तान से राधा जी को मनाते हैं। श्री राधे कृष्ण।
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