साई की नगरिया जाना है रे बंदे भजन

साई की नगरिया जाना है रे बंदे भजन हरी ओम शरण

शिरडी के साईं बाबा भारत की समृद्ध संत परंपरा में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं। उनकी अधिकांश उत्पत्ति और जीवन अज्ञात है, लेकिन वह हिंदू और मुस्लिम दोनों भक्तों द्वारा आत्म-साक्षात्कार और पूर्णता के अवतार के रूप में साई को स्वीकारते हैं। भले ही साईं बाबा ने अपने व्यक्तिगत व्यवहार में मुस्लिम प्रार्थनाओं और प्रथाओं का पालन किया, लेकिन वे खुले तौर पर किसी भी धर्म के कट्टरपंथी व्यवहार से घृणा करते थे। इसके बजाय, प्रेम और न्याय के संदेशों के माध्यम से, वह मानव जाति के जागरण में विश्वास करते थे।
 
साई की नगरिया जाना है रे बंदे
जाना है रे बंदे

जग नाही अपना, जग नाही अपना,
बेगाना है रे बंदे
जाना है रे बंदे, जाना है रे बंदे

साई की नगरिया, जाना है रे बंदे,
जाना है रे बंदे
पत्ता टूटा डारि से,
ले गयी पवन उड़ाय।
अब के बिछुड़े ना मिलें,
दूर पड़ेंगे जाए॥

माली आवत देखि के
कलियन करी पुकार।
फूले फूले चुन लिए,
काल हमारी बार॥

साई की नगरिया, जाना है रे बंदे,
जाना है रे बंदे

चलती चाकी देखि कै,
दिया कबीरा रोय।
दुइ पाटन के बीच में,
साबुत बचा ना कोय॥

लूट सके तो लूट ले,
सत नाम की लूट।
पाछे फिर पछताओगे,
प्राण जाहिं जब छूट॥

साई की नगरिया, जाना है रे बंदे,
जाना है रे बंदे

माटी कहे कुम्हार से,
तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आयेगा,
मैं रौन्धुगी तोय॥

लकड़ी कहे लुहार से,
तू मत जारै मोहि।
एक दिन ऐसा होयगा,
मैं जारुंगी तोहि॥

साई की नगरिया, जाना है रे बंदे,
जाना है रे बंदे

बंदे तू कर बंदगी,
तो पावै दीदार।
अवसर मानुस जन्म का,
बहुरि ना बारंबार॥

कबीरा सोया क्या करै,
जाग ना जपै मुरारि।
एक दिना है सोवना,
लंबे पाँव पसारि॥

साई की नगरिया, जाना है रे बंदे,
जाना है रे बंदे

साई की नगरिया, जाना है रे बंदे,


Sai Ki Nagariya Jana Hai Re Bande

Sai Ki Nagariya Jana Hai Re Bande · Hari Om Sharan
Kahat Kabir Suno Bhai Sadho

जीवन की नश्वरता का बोध कराता यह भजन हमें साई की नगरिया की ओर प्रेरित करता है, जहाँ सत्य और प्रेम का आलम है। यह दुनिया क्षणभंगुर है—जैसे पत्ता डाल से टूटकर हवा में उड़ जाए, वैसे ही हमारा जीवन अनिश्चित है। कोई माली फूल चुन लेता है, कोई चक्की के पाटों में पिस जाता है। ये दृश्य सिखाते हैं कि समय निर्दयी है, जो किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।

संत की तरह यह भजन पुकारता है—हे बंदे, सतनाम की लूट ले, क्योंकि यही सच्चा धन है। माटी और लकड़ी का दृष्टांत चिंतक की भाँति कहता है कि जो आज रौंदता है, वह कल स्वयं रौंदा जाएगा। अहंकार छोड़, विनम्र बन, क्योंकि यह देह मिट्टी में मिल जाएगी।

धर्मगुरु की सीख है कि बंदगी कर, साई के दर्शन पा। यह मानव जन्म अनमोल है, बार-बार नहीं मिलता। जैसे कबीर जागने की पुकार देते हैं, वैसे ही यह भजन कहता है—सोया मत रह, मुरारी का नाम जप। उदाहरण लें तो, जैसे कोई राहगीर रास्ते में सोने की थैली पाकर भी अनदेखा कर दे, वही हाल हमारा है जब हम भक्ति का अवसर गँवा देते।

साई की नगरिया वह ठिकाना है, जहाँ प्रेम और भक्ति में डूबकर आत्मा को शांति मिलती है। यह भजन चेतावनी भी है और निमंत्रण भी—जाग जा, समय कम है, साई के चरणों में चल।
 

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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