अराधना करता हूँ मेरे श्याम के लिए
अराधना करता हूँ मेरे श्याम के लिए
अराधना करता हूँ , मेरे श्याम के लिए,
मैंने रंगा केसरी चोला , लखदातार के लिए,
है कलयुग के अवतारी ,तेरे नाम की महिमा भारी,
तेरे दर पे आन पड़ा हूँ , दर्शन का बन के भिखारी,
घुट घुट कर तरस रहा हूँ , दीदार के लिए,
मैंने रंगा केसरी चोला......
स्वारथ ने मुझको घेरा ,लालच ने डाला डेरा,
प्रभु मोह माया में पड़कर , मैं भूल गया दर तेरा,
मुझे अब तो राह दिखादे, भव पार के लिए ,
मैंने रंगा केसरी चोला......
ओ बाबा शीश के दानी , तेरी शक्ति सबने जाणी,
प्यासी आँखों में भर दे , सूरत तेरी मस्तानी,
मेरा आवागमन मिटा दे, हर बार के लिए,
मैंने रंगा केसरी चोला......
वो जीवन भी क्या जीवन ,जिसने दरबार न देखा,
वी स्वामी भक्त नहीं , जिसने माथा नहीं टेका,
खाटू में मुझे बसा ले , तेरे प्यार के लिए,
मैंने रंगा केसरी चोला......
मैंने रंगा केसरी चोला , लखदातार के लिए,
है कलयुग के अवतारी ,तेरे नाम की महिमा भारी,
तेरे दर पे आन पड़ा हूँ , दर्शन का बन के भिखारी,
घुट घुट कर तरस रहा हूँ , दीदार के लिए,
मैंने रंगा केसरी चोला......
स्वारथ ने मुझको घेरा ,लालच ने डाला डेरा,
प्रभु मोह माया में पड़कर , मैं भूल गया दर तेरा,
मुझे अब तो राह दिखादे, भव पार के लिए ,
मैंने रंगा केसरी चोला......
ओ बाबा शीश के दानी , तेरी शक्ति सबने जाणी,
प्यासी आँखों में भर दे , सूरत तेरी मस्तानी,
मेरा आवागमन मिटा दे, हर बार के लिए,
मैंने रंगा केसरी चोला......
वो जीवन भी क्या जीवन ,जिसने दरबार न देखा,
वी स्वामी भक्त नहीं , जिसने माथा नहीं टेका,
खाटू में मुझे बसा ले , तेरे प्यार के लिए,
मैंने रंगा केसरी चोला......
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यह सुन्दर भजन आत्मसमर्पण, भक्ति और श्रीश्यामजी की कृपा के प्रति गहरी लालसा का भाव प्रकट करता है। जब कोई साधक उनके दरबार में श्रद्धा से उपस्थित होता है, तब उसकी आत्मा इस अनुराग में पूर्ण रूप से रम जाती है।
यह भाव बताता है कि सांसारिक स्वार्थ और मोह मानव को भटकाते हैं, परंतु जब कोई भक्त इस भ्रम को त्यागकर प्रभु की शरण में आता है, तब उसे सच्ची राह प्राप्त होती है। यह समर्पण केवल बाहरी नहीं, बल्कि अंतर्मन से जन्म लेने वाला वह अनुरोध है, जहां साधक स्वयं को पूर्ण रूप से प्रभु की कृपा में अर्पित कर देता है।
प्रार्थना का यह स्वर साधक के भीतर छिपे विश्वास को दर्शाता है। जब प्रेम अटूट हो जाता है, तब श्रीश्यामजी के प्रति यह पुकार केवल एक याचना नहीं, बल्कि आत्मा की उस गहरी अनुभूति का प्रमाण बन जाती है। दर्शन की इच्छा, समर्पण की प्रबलता और कृपा का अनुरोध—all यह प्रेम की उस अवस्था को दर्शाते हैं, जहां भक्ति ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य बन जाती है।
यह भाव बताता है कि जो जीवन प्रभु के चरणों में समर्पित नहीं हुआ, वह अधूरा रह जाता है। जब कोई साधक श्रीश्यामजी के प्रेम में रम जाता है, तब उसका अस्तित्व केवल भक्ति की गहराइयों में बहता है। यही वह दिव्यता है, जहां सांसारिक सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं और भक्त केवल प्रभु के प्रेम की मिठास में लीन हो जाता है।