मेरे तो मन भा गयो रे यो खाटू को बाबो श्याम

मेरे तो मन भा गयो रे यो खाटू को बाबो श्याम

मेरे तो मन भा गयो रे यो खाटू को बाबो श्याम
यो खाटू को बाबो श्याम,यो खाटू को बाबो श्याम
मेरे तो मन भा गयो रे........

मोर मुकुट की छटा रे निराली
तिरछे चरण ठाडो बनमाली
मुरली मधुर बजा गयो रे यो खाटू को श्याम
मेरे तो मन भा गयो रे........

ग्वाल बाल संग धेनु चरावे
लूट लूट दही माखन खावे
माखन चोर कहा गयो रे यो खाटू को श्याम
मेरे तो मन भा गयो रे........

मीठी मीठी कान्हो बंसी बजावे
बंसी की धुन सुन सखी चली आवे
मधुवन रास रचा गयो रे यो खाटू को श्याम
मेरे तो मन भा गयो रे........

हरस हरस था मन्नू गुण गावे
सांवरी सूरत वालो मेरे मन भावे
महारे नैना माहि समां गयो रे यो खाटू को श्याम
मेरे तो मन भा गयो रे........
Lyrics
ओ खाटू वाले श्याम मेरे मन को तू ही भा गया
ओ मुरली वाले श्याम मेरे मन को तू ही भा गया
तोड़ के मोह माया के बंधन शरण तेरी मैं आ गया
ओ खाटू वाले श्याम.....................

पथ भटके को बाबा तूने ही रस्ता दिखलाया है
मेरे सुन्दर श्याम तूने अपने दर पे बुलाया है
तन मन पे मेरे अब तो श्याम तू ही छा गया
ओ खाटू वाले श्याम................

अजब निराली माया तेरी सच्चा तेरा दरबार है
तेरे दर पे आने से बाबा मिलता तेरा प्यार है
बीच पड़ी मंझधार नैया को तू ही पार लगा गया
ओ खाटू वाले श्याम................

त्रिभुवन प्रबोध ने तेरी महिमा गए श्याम है
शाम सवेरे बंसी वाले जपता तेरा नाम है
हम भक्तों का खोल नसीबा सोनू अर्ज़ लगा रहा
ओ खाटू वाले श्याम................ 

 
यह सुन्दर भजन श्रीश्यामजी के प्रति अखंड प्रेम, श्रद्धा और उनके अलौकिक सौंदर्य की अनुभूति को प्रदर्शित करता है। जब भक्त उनके दिव्य स्वरूप की कल्पना करता है, तब उसका हृदय प्रेम और भक्ति की मधुर धारा में बह जाता है।

मोर मुकुट की छटा, बंसी का मधुर स्वर, और चरणों की दिव्यता—all यह प्रेम के उस गहरे भाव को दर्शाते हैं, जहां भक्त केवल उनकी आराधना में लीन हो जाता है। यह अनुभूति मात्र बाहरी नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई में उतरने वाली वह अनुभूति है, जहां श्रीश्यामजी का नाम हर क्षण भक्त के मन में गूंजता है।

भक्त के लिए श्रीश्यामजी केवल आराध्य नहीं, वे उसके समस्त जीवन का केंद्र हैं। जब वह उनकी भक्ति में रम जाता है, तब सांसारिक मोह की सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं और केवल प्रेम की दिव्य अनुभूति शेष रहती है। यह भाव यह भी बताता है कि जब श्रद्धा पूर्ण होती है, तब वह भक्ति के सर्वोच्च स्वरूप में परिवर्तित हो जाती है—जहां साधक स्वयं को प्रभु की कृपा में संपूर्ण रूप से अर्पित कर देता है।

यह भजन सिखाता है कि सच्ची भक्ति केवल शब्दों से नहीं, बल्कि हृदय की उस गहराई से जन्म लेती है, जहां साधक स्वयं को पूर्ण रूप से प्रभु के प्रेम में समर्पित कर देता है। यही वह दिव्य मार्ग है, जहां भक्ति, प्रेम और समर्पण एक साथ मिलकर साधक को शांति और आनंद की पराकाष्ठा तक ले जाते हैं।
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