खाटू वाले भोग लगाले ये मेरी अरदास

खाटू वाले भोग लगाले ये मेरी अरदास

आज मंजूर करो,
श्याम मंजूर करो,
खाटू वाले भोग लगाले,
ये मेरी अरदास,
श्याम मंजूर करो,
खाटू वाले भोग लगा ले।

लाडू पेड़ा रसगुल्ला,
घेवर खुरमा फीणी है,
खीर चूरमो दिल खुसाल,
मजेदार या बर्फी है,
कलाकंद और रबडी ल्याया,
गरमा गर्म तैयार,
श्याम मंजूर करो
खाटू वाले भोग लगा ले।

बाजरे मोठा की खिचड़ी,
ऊपर चूंटियो घी डाल्यो
छाछ राबड़ी खट्टा की,
फोगलिया को रायतो
लेवो सबड़का श्याम धणी,
करा थी मनुहार,
श्याम मंजूर करो
खाटू वाले भोग लगा ले।

पापड़ सेव पकोड़ी है,
खस्ता बनी कचोरी है,
बालूशाही थोड़ी थोड़ी है,
या भगता दाल तलयोड़ी है,
काली मिर्च भुजिया में गेरी,
और गेरी अजवायन,
श्याम मंजूर करो
खाटू वाले भोग लगा ले।

केला आलू भिंडी,
बेंगन और तोरु जी,
कैर सांगरी,मतीरा,
मूली पालक करेलो जी,
पंचमेले को साग बनाया,
गरमा गरम तैयार,
श्याम मंजूर करो,
खाटू वाले भोग लगा ले।

कई भांत की चटनी सागे,
सांवरिया अब जीमो जी,
जल को लोटो भरयो साथ में,
के लेस्यो अब बोलो जी,
मेलो देखा महेश कहे,
अब हो जा ओ तैयार,
श्याम मंजूर करो
खाटू वाले भोग लगा ले। 

यह सुन्दर भजन प्रेम, भक्ति और श्रीश्यामजी के प्रति असीम श्रद्धा का मधुर अनुरोध प्रकट करता है। जब भक्त अपने आराध्य के समक्ष भावपूर्वक निवेदन करता है, तब यह केवल याचना नहीं रहती, बल्कि हृदय की गहरी अनुभूति में बदल जाती है।

भोग का यह स्वरूप केवल भोजन का नहीं, बल्कि भक्त की सच्ची समर्पण भावना का प्रतीक है। जब वह प्रेम से प्रभु को अर्पण करता है, तब उसकी भक्ति केवल बाह्य नहीं रहती, बल्कि यह आत्मा का गहरा निवेदन बन जाता है। हर व्यंजन, हर मिठास, और हर सुगंध केवल स्वाद की अनुभूति नहीं, बल्कि भक्ति की मिठास और दिव्यता का प्रतीक बन जाती है।

श्रद्धा का यह भाव बताता है कि जब कोई व्यक्ति सच्चे मन से श्रीश्यामजी को पुकारता है, तब उसकी भक्ति केवल शब्दों में सीमित नहीं रहती—वह उसकी चेतना का एक पावन स्वरूप बन जाती है। यह प्रसाद केवल अन्न का नहीं, बल्कि प्रेम और समर्पण का दिव्य अर्पण है। जब कोई भक्त निष्ठा से यह निवेदन करता है, तब उसकी पुकार निश्चित रूप से प्रभु तक पहुँचती है।

भक्ति का यह पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मा का एक मधुर संगीत है, जहां भक्त अपने आराध्य के चरणों में अपने प्रेम को अर्पित करता है। यही वह दिव्य अनुभूति है, जहां श्रद्धा, समर्पण और आनंद एक साथ मिलकर साधक को प्रभु की कृपा में पूर्ण रूप से रमने की प्रेरणा देते हैं। यही वह प्रेम है, जो हर बाधा को समाप्त कर देता है और भक्त को शांति एवं आनंद की पराकाष्ठा तक ले जाता है।
Next Post Previous Post