मैनें श्याम से अर्जी लगाई किसी से अब क्यों कहना भजन
मैनें श्याम से अर्जी लगाई किसी से अब क्यों कहना
मैनें श्याम से अर्जी लगाई किसी से अब क्यों कहना,श्याम करता है सुनवाई किसी से अब क्यों कहना,
ज़माना हँसा मुझपे कहा कुछ नहीं तुझसे,
तेरी सुनी सी बहुत बड़ाई,मेरी भी कर सुनवाई,
तुझसे ही आस लगाई किसी से अब क्यों कहना,
मैंने शयम से अर्जी लगाई किसी से अब क्यों कहना,
जहा की ख़ुशी देदे लवो पे हंसी देदे,
जब मोर छड़ी लेहराई हर विपदा दूर हटाई,
अब तुझपे लोह है लगाई किसी से अब क्यों कहना,
मैंने श्याम से अर्जी लगाई किसी से अब क्यों कहना,
मेरी भी झोली बार दी,जब राज तेरे दर आया,
तुझे दिल का हाल सुनाया,तब तूने पकड़ी कलाही,
अब सही न जाए जुदाई किसी से अब क्यों कहना,
मैंने श्याम से अर्जी लगाई किसी से अब क्यों कहना,
ज़माना हँसा मुझपे कहा कुछ नहीं तुझसे,
तेरी सुनी सी बहुत बड़ाई,मेरी भी कर सुनवाई,
तुझसे ही आस लगाई किसी से अब क्यों कहना,
मैंने शयम से अर्जी लगाई किसी से अब क्यों कहना,
जहा की ख़ुशी देदे लवो पे हंसी देदे,
जब मोर छड़ी लेहराई हर विपदा दूर हटाई,
अब तुझपे लोह है लगाई किसी से अब क्यों कहना,
मैंने श्याम से अर्जी लगाई किसी से अब क्यों कहना,
मेरी भी झोली बार दी,जब राज तेरे दर आया,
तुझे दिल का हाल सुनाया,तब तूने पकड़ी कलाही,
अब सही न जाए जुदाई किसी से अब क्यों कहना,
मैंने श्याम से अर्जी लगाई किसी से अब क्यों कहना,
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सुन्दर भजन में पूर्ण समर्पण और अखंड विश्वास का उदगार मिलता है। जब जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, तो मनुष्य अक्सर इधर-उधर सहारा खोजता है, लेकिन जब आत्मा श्रीकृष्णजी के चरणों में अर्जी लगा देती है, तो बाहरी सहारे की आवश्यकता शेष नहीं रहती। संसार चाहे उपहास करे, चाहे कोई साथ न दे, लेकिन जो मन से श्रीकृष्णजी को पुकारता है, उसकी सुनवाई अवश्य होती है।
सच्चे प्रेम और श्रद्धा से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती। जब भी मनुष्य अपने अंतर की बात प्रभु से साझा करता है, तो उसके कष्ट दूर होते हैं और जीवन में खुशियाँ लौट आती हैं। श्रीकृष्णजी की कृपा से विपत्तियाँ भी मोर छड़ी की लहर से छंट जाती हैं।
भक्ति का मार्ग यही सिखाता है कि जब एक बार प्रभु पर भरोसा हो जाए, तो फिर किसी अन्य से आशा या शिकायत करने की आवश्यकता नहीं रहती। मन की झोली जब श्रीकृष्णजी के द्वार पर भर जाती है, तो संसार की तुच्छ इच्छाएँ स्वतः ही शांत हो जाती हैं। प्रभु के साथ जुड़ाव में जो आनंद और संतोष मिलता है, वह किसी अन्य साधन या व्यक्ति से नहीं मिल सकता।
सच्चे प्रेम और श्रद्धा से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती। जब भी मनुष्य अपने अंतर की बात प्रभु से साझा करता है, तो उसके कष्ट दूर होते हैं और जीवन में खुशियाँ लौट आती हैं। श्रीकृष्णजी की कृपा से विपत्तियाँ भी मोर छड़ी की लहर से छंट जाती हैं।
भक्ति का मार्ग यही सिखाता है कि जब एक बार प्रभु पर भरोसा हो जाए, तो फिर किसी अन्य से आशा या शिकायत करने की आवश्यकता नहीं रहती। मन की झोली जब श्रीकृष्णजी के द्वार पर भर जाती है, तो संसार की तुच्छ इच्छाएँ स्वतः ही शांत हो जाती हैं। प्रभु के साथ जुड़ाव में जो आनंद और संतोष मिलता है, वह किसी अन्य साधन या व्यक्ति से नहीं मिल सकता।
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Author - Saroj Jangir
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